नई दिल्ली में संयुक्त किसान मोर्चा की राष्ट्रीय समन्वय समिति की बैठक हुई जिसमें कई मांगें की गई हैं। किसान संगठनों ने सरकार से अपने मांग पत्र के जरिए कुछ तात्कालिक और कुछ नीतिगत मांगें की हैं। उन्होंने इसकी एक पूरी सूची जारी की है।
संयुक्त किसान मोर्चा ने जो मांगें रखी हैं वो इस प्रकार है :
तात्कालिक मांगें
1. सभी फसलों के लिए, सी-2+50 प्रतिशत की दर से न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीदी की कानूनी गारंटी हो।
2. किसानों और खेत मजदूरों की ऋणग्रस्तता, किसान आत्महत्या और संकटपूर्ण पलायन से मुक्ति के लिए सर्वसमावेशी ऋण माफी योजना बने।
3. बिजली क्षेत्र का निजीकरण न हो, प्रीपेड स्मार्ट मीटर न लगाया जाएं।
4. उर्वरक, बीज, कीटनाशक, बिजली, सिंचाई, मशीनरी, स्पेयर पार्ट्स और ट्रैक्टर जैसे कृषि इनपुट पर कोई जीएसटी न हो। कृषि इनपुट पर सब्सिडी फिर से शुरू की जाए। सरकारी योजनाओं का लाभ बटाईदारों और काश्तकारों को भी मिले।
5. सभी फसलों और पशुपालन के लिए सार्वजनिक क्षेत्र के तहत सर्वसमावेशी बीमा कवरेज योजना बनाया जाए। कॉर्पोरेट समर्थक प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना बंद किया जाए।
6. खाद्य उत्पादक होने के नाते किसानों और खेत मजदूरों के पेंशन के अधिकार को मान्यता दी जाए तथा 60 वर्ष की आयु से 10,000 रुपये प्रतिमाह पेंशन दी जाए।
7. भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुनर्स्थापन (एलएआरआर) अधिनियम 2013 को लागू किया जाए, जिसमें हर दूसरे वर्ष सर्किल रेट में अनिवार्य संशोधन किया जाए। सार्वजनिक क्षेत्र के साथ-साथ निजी क्षेत्र की परियोजनाओं के लिए कम सर्किल रेट पर अधिग्रहित सभी भूमि के लिए मुआवजा दिया जाए। पुनर्वास और पुनर्स्थापन के बिना अधिग्रहण न किया जाए। बिना पुनर्वास के झुग्गी-झोपड़ियों और बस्तियों को न तोड़ा जाए। बुलडोजर राज को समाप्त किया जाए। बिना पूरा मुआवजा दिए कृषि भूमि पर ओवरहेड हाई वोल्टेज ट्रांसमिशन लाइनों का जबरन निर्माण न किया जाए।
8. वन अधिकार अधिनियम (एफआरए) और पंचायत (अनुसूचित क्षेत्रों में विस्तार) अधिनियम (पेसा) को सख्ती से लागू किया जाए।
9. वन्य जीवों की समस्या का स्थायी समाधान हो, जान-माल के नुकसान पर 1 करोड़ रुपये और फसलों और मवेशियों के नुकसान पर उनकी कीमतों का दुगुना मुआवजा दिया जाए।
10. भारतीय दंड संहिता और सीआरपीसी की जगह, आम जनता पर पर थोपे जा रहे 3 आपराधिक कानूनों को निरस्त किया जाए, जो संसद में बिना किसी लोकतांत्रिक प्रक्रिया के पारित किए गए हैं और असहमति और लोगों के विरोध को दबाने के लिए भारत को पुलिस राज्य बनाने के लिए बनाए गए हैं।
11. 736 किसान शहीदों की याद में सिंघु/टिकरी बॉर्डर पर उपयुक्त शहीद स्मारक का निर्माण किया जाए। लखीमपुर खीरी के शहीदों सहित ऐतिहासिक किसान संघर्ष में शहीदों के सभी परिवारों को उचित मुआवजा दिया जाए। किसान संघर्ष से जुड़े सभी मामले वापस लिए जाएं।
12. अति-धनिकों पर टैक्स लगाया जाए, कॉरपोरेट टैक्स बढ़ाया जाए, मजदूरों, किसानों और मेहनतकश लोगों के बीच धन के तर्कसंगत और न्यायसंगत वितरण के लिए वित्तीय संसाधन हासिल करने के लिए संपत्ति कर और उत्तराधिकार कर को फिर से लागू किया जाए।
इसके अलावा नीतिगत मांगें इस प्रकार हैं :
1. कृषि के लिए अलग केंद्रीय बजट हो।
2. कृषि का निगमीकरण न हो। कृषि उत्पादन, व्यापार और खाद्य प्रसंस्करण में बहुराष्ट्रीय कंपनियों का प्रवेश न हो। कोई मुक्त व्यापार समझौता (FTA) न हो। भारत को कृषि पर विश्व व्यापार संगठन समझौते से बाहर आना चाहिए।
3. जीएसटी अधिनियम में संशोधन करें और भारत के संविधान में निहित संघीय सिद्धांतों के अनुसार राज्य सरकारों के कराधान के अधिकार को बहाल करें, मजबूत राज्य : मजबूत भारत संघ के सिद्धांत को कायम रखा जाए।
4. सहकारिता के संवैधानिक प्रावधान को राज्य विषय के रूप में बनाए रखा जाए और केंद्रीय सहकारिता मंत्रालय को समाप्त करो।
5. लोगों की आजीविका और प्रकृति की रक्षा के लिए भूमि, जल, वन और खनिजों सहित प्राकृतिक संसाधनों को माल बनाना बंद करो और उस पर कॉर्पोरेट नियंत्रण को समाप्त करो। कृषि को बचाने के लिए जलवायु परिवर्तन से संबंधित मुद्दों को हल करो। वर्षा जल का वैज्ञानिक ढंग से संचयन करो, वाटरशेड योजना और जल निकायों की सुरक्षा करो, भूजल को रिचार्ज करने के लिए सिंचाई अधोसंरचना और वनीकरण को विकसित करो और ग्लोबल वार्मिंग के प्रति लचीलापन विकसित करो।
6. मनरेगा में मजदूरी बढ़ाकर 600 रुपये प्रतिदिन किया जाए। कृषि विकास के लिए इस योजना को पूरे भारत में वाटरशेड योजना से जोड़ा जाए।
7. 4 श्रम संहिताओं को निरस्त किया जाए। 26000 रुपये प्रति माह का राष्ट्रीय न्यूनतम वेतन लागू किया जाए। सार्वजनिक क्षेत्र का निजीकरण न किया जाए, राष्ट्रीय मुद्रीकरण पाइपलाइन (एनएमपी) को खत्म किया जाए। श्रम का ठेकाकरण समाप्त किया जाए।
8. किसानों और खेत मजदूरों की भूमि और पशुधन संसाधनों की रक्षा की जाए, ताकि तीव्र कृषि संकट के कारण उनकी बढ़ती गरीबी को रोका जा सके। छोटे उत्पादकों और मजदूरों को सम्मानजनक जीवन जीने के लिए रोजगार और न्यूनतम मजदूरी सुनिश्चित की जाए और उन्हें ऋणग्रस्तता, कृषि आत्महत्या और संकटपूर्ण प्रवास से मुक्ति दिलाई जाए। उत्पादक सहकारी समितियों और सामूहिक संघों को प्रोत्साहन देने के साथ-साथ ऋण, कृषि प्रसंस्करण, मूल्य संवर्धन, बुनियादी ढांचा नेटवर्क, विपणन और अनुसंधान एवं विकास के क्षेत्र में सार्वजनिक क्षेत्र द्वारा समर्थित सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों को बढ़ावा देने के लिए वैकल्पिक नीतियां लागू की जाएं।
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Source : IANS