मध्य प्रदेश में कांग्रेस की सबसे बड़ी ताकत क्षेत्रीय नेतृत्व रहा है। हालांकि, पिछले कुछ वर्षों में गड़बड़ाए क्षेत्रीय संतुलन और नेतृत्व ने पार्टी को लगातार कमजोर किया है। अब पार्टी के भीतर ही क्षेत्रीय नेतृत्व को एक बार फिर मजबूत करने की चर्चा हो रही है।
राज्य की सियासत पर गौर करें तो कांग्रेस में क्षेत्रीय क्षत्रपों का बोलबाला रहा है। क्षेत्रीय नेता अपने-अपने इलाके में पार्टी के साथ अपने समर्थकों को मजबूत करने की मुहिम में लगे रहते थे। धीरे-धीरे यह क्षेत्रीय नेतृत्व लगातार कमजोर होता गया और कई नेताओं ने राष्ट्रीय राजनीति की तरफ रुख कर लिया। इसका असर यह हुआ कि इन नेताओं का अपने-अपने क्षेत्र में प्रभाव पहले जैसा नहीं रहा।
कांग्रेस में एक दौर था जब ग्वालियर-चंबल इलाके में सिंधिया परिवार, इसी क्षेत्र में दिग्विजय सिंह परिवार, मालवा निमाड़ में अरुण यादव के परिवार, महाकौशल में कमलनाथ, विंध्य में अजय सिंह के परिवार और बुंदेलखंड में चतुर्वेदी परिवार का प्रभाव हुआ करता था। ग्वालियर-चंबल के प्रभावशाली नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस छोड़ी और भाजपा में गए तो वहां कांग्रेस का प्रभाव बहुत कम हो गया। दिग्विजय सिंह का राष्ट्रीय राजनीति में दखल बढ़ गया। महाकौशल में पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ का भी प्रभाव कम हो चला है। बुंदेलखंड से नाता रखने वाले सत्यव्रत चतुर्वेदी राजनीति से संन्यास ले चुके है। विंध्य में अजय सिंह सक्रिय हैं तो मालवा निमाड़ में अरुण यादव। इन दोनों नेताओं को पार्टी उनकी हैसियत के मुताबिक जिम्मेदारी नहीं सौंप रही है।
बीते दो दिन में राजधानी भोपाल में पार्टी के दिग्गज नेताओं का जमावड़ा रहा। पार्टी हाईकमान की फैक्ट फाइंडिंग कमेटी ने नेताओं से संवाद किया। इस दौरान एक बात खुलकर सामने आई कि पार्टी में क्षेत्रीय नेतृत्व लगातार कमजोर हो रहा है और इसी के चलते जनाधार खिसक रहा है।
इस समय प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी और नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार हैं। दोनों नेता मालवा निमाड़ से आते हैं। पूर्व में युवा कांग्रेस के अध्यक्ष विक्रांत भूरिया भी इसी क्षेत्र से थे। हाल ही में युवा कांग्रेस का अध्यक्ष ग्वालियर-चंबल के मितेंद्र सिंह यादव को बनाया गया है। विंध्य, बुंदेलखंड और महाकौशल के किसी नेता के पास कोई बड़ी जिम्मेदारी नहीं है। पार्टी अब क्षेत्रीय नेतृत्व को एक बार फिर मजबूत बनाने की रणनीति पर काम करने जा रही है।
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Source : IANS