अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव को लेकर सभी दलों ने अब अपनी रणनीति के तहत चुनावी मैदान में उतरने की तैयारी को अमलीजामा पहनाना शुरू कर दिया है। ऐसे में बिहार में सत्तारूढ़ महागठबंधन में शामिल प्रमुख घटक दल जदयू ने भी अपनी सक्रियता बढ़ा दी है।
जदयू जहां आगामी कुछ दिनों में कई रैलियां आयोजित करने जा रही है, वहीं इसके नेता और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी अपने प्रदेश से बाहर अन्य राज्यों में रैली कर जमीन की तलाश करने वाले हैं।
इन सभी कार्यक्रमों का आयोजन इंडिया गठबंधन से अलग जदयू द्वारा किया जा रहा है, जिसमें केवल जदयू के नेता ही शामिल होंगे।
इसमें कोई शक नहीं है कि राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा के विरोधी दलों को एकजुट करने और इंडिया गठबंधन में जदयू के नेता नीतीश कुमार की बड़ी भूमिका रही हैं। ऐसे में अब सवाल उठाए जा रहे हैं कि जब इंडिया गठबंधन आकार ले चुका है तो फिर जदयू एकला चलो की रणनीति पर आगे क्यों बढ़ रही है।
जदयू ने पटना के वेटनरी कॉलेज में 24 नवंबर को भीम संसद का आयोजन किया था। कहा जा रहा है कि इस रैली के जरिए जदयू ने दलित वोट बैंक को साधने की कोशिश की। इस रैली में भीड़ जुटने के बाद जदयू काफी उत्साहित है।
माना तो यहां तक जा रहा है कि इस रैली का उद्देश्य जदयू को अपने सहयोगी दलों को अपनी ताकत का एहसास कराना भी था।
जदयू के नेता नीतीश कुमार इसके बाद यूपी के वाराणसी में 24 दिसंबर को रैली करने वाले थे। यह रैली हालांकि फिलहाल रद्द कर दी गई है, लेकिन जदयू के नेताओं ने जल्द ही यूपी में रैली कराने की घोषणा की है। जदयू इसके बाद अगले साल 2024 में 21 जनवरी को झारखंड के रामगढ़ में और उसके बाद 24 जनवरी को पटना के वेटनरी ग्राउंड में भी एक रैली का आयोजन करने वाली है, लेकिन ये तमाम रैली इंडिया गठबंधन से अलग हैं।
जदयू के नेता और प्रवक्ता नीरज कुमार कहते हैं कि जदयू गठबंधन में है, लेकिन सभी राजनीतिक दलों को अपना जनाधार बढ़ाने का हक है। जदयू भी अपने जनाधार को बढ़ाने में जुटी है। इसमें राजनीति खोजने और कोई अन्य अर्थ लगाने की जरूरत नहीं है।
उन्होंने यह भी कहा कि जदयू अगर मजबूत होती है तो इसका लाभ सहयोगी दलों को ही मिलेगा, इसलिए इसका कोई अलग मतलब नहीं है।
इधर, राजनीति के जानकार अजय कुमार कहते हैं कि जदयू फिलहाल विधायकों की संख्या के मामले में प्रदेश में तीसरे नंबर पर है। अगले चुनाव में पार्टी अपनी इस स्थिति को बदलने की भरसक कोशिश करेगी। हालांकि वह यह भी कहते है कि नीतीश राजद के साथ आने के बाद कई मौकों पर असहज होते रहे हैं। ऐसे में वे जानते हैं कि पार्टी के कद को बढ़ाने में भी जुटे हैं, जिससे समय आने पर कोई बड़ा निर्णय भी लिया जा सके।
बहरहाल, इसमें कोई शक नहीं कि बिहार की राजनीति में नीतीश कुमार की पहचान माहिर खिलाड़ी के रूप में रही है। ऐसे में एकला चलो की रणनीति का क्या परिणाम निकलता है, यह तो आने वाला समय बताएगा।
डिस्क्लेमरः यह आईएएनएस न्यूज फीड से सीधे पब्लिश हुई खबर है. इसके साथ न्यूज नेशन टीम ने किसी तरह की कोई एडिटिंग नहीं की है. ऐसे में संबंधित खबर को लेकर कोई भी जिम्मेदारी न्यूज एजेंसी की ही होगी.
Source : IANS