शांति विधेयक 2025 : कैसे यह भारत के 2047 के स्वच्छ ऊर्जा लक्ष्यों को पाने में मदद करेगा

शांति विधेयक 2025 : कैसे यह भारत के 2047 के स्वच्छ ऊर्जा लक्ष्यों को पाने में मदद करेगा

शांति विधेयक 2025 : कैसे यह भारत के 2047 के स्वच्छ ऊर्जा लक्ष्यों को पाने में मदद करेगा

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IANS
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What is SHANTI Bill, 2025, how can it help India achieve self-reliance in nuclear energy

(source : IANS) ( Photo Credit : IANS)

नई दिल्ली, 19 दिसंबर (आईएएनएस)। परमाणु ऊर्जा के सतत दोहन और विकास (शांति) विधेयक, 2025 संसद के दोनों सदनों लोकसभा और राज्यसभा दोनों से पास हो चुका है। इसका उद्देश्य देश को परमाणु क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाना और भारत के 2047 के स्वच्छ ऊर्जा के लक्ष्यों को पूरा करना है।

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प्रस्तावित कानून का उद्देश्य स्वच्छ और विश्वसनीय ऊर्जा के लिए एक अनुकूल वातावरण बनाना है, साथ ही परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण उपयोग के प्रति लंबे समय से चली आ रही प्रतिबद्धता को भी बरकरार रखना है।

यह परमाणु प्रशासन में वैश्विक सर्वोत्तम प्रथाओं के प्रति भारत की प्रतिबद्धता का भी प्रतीक है।

यह विधेयक संसाधनों की कमी को दूर करने, परियोजनाओं के निर्माण की अवधि को कम करने और राष्ट्रीय सुरक्षा या जनहित से समझौता किए बिना 2047 तक 100 गीगावाट परमाणु क्षमता के राष्ट्रीय लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए जिम्मेदार निजी और संयुक्त उद्यम भागीदारी को सक्षम बनाता है।

यह विधेयक परमाणु ऊर्जा अधिनियम, 1962 और परमाणु क्षति के लिए नागरिक दायित्व (सीएलएनडी) अधिनियम के प्रावधानों को समेकित एवं तर्कसंगत बनाता है। इसके साथ ही, परमाणु ऊर्जा नियामक बोर्ड को वैधानिक दर्जा प्रदान किया गया है, जिससे वह मूल कानून का अभिन्न हिस्सा बन चुका है।

सरकार ने स्पष्ट किया कि इससे नियामक निगरानी कमजोर नहीं, बल्कि और अधिक सशक्त होती है। यह परमाणु प्रशासन में वैश्विक स्तर की सर्वोत्तम कार्य प्रणालियों को अपनाने के लिए भारत की दृढ़ वचनबद्धता को दर्शाता है।

इस विधेयक के माध्यम से परमाणु क्षेत्र को निजीकरण के लिए खोल दिया गया है, जिसका उद्देश्य आत्मनिर्भरता हासिल करना और भारत के 2047 के स्वच्छ ऊर्जा लक्ष्यों को पूरा करना है।

नए विधेयक में अन्वेषण गतिविधियों के लिए परिभाषित शर्तों के तहत निजी साझेदारों को शामिल किया जाएगा। निर्धारित सीमा से अधिक यूरेनियम खनन का पूर्ण अधिकार सरकार के पास ही रहेगा।

इसी प्रकार, प्रयुक्त ईंधन का प्रबंधन भी स्पष्ट रूप से परिभाषित दीर्घकालिक भंडारण और संचालन प्रोटोकॉल के तहत सरकार की देखरेख में ही रहेगा। स्रोत सामग्री, विखंडनीय सामग्री और भारी जल जैसी रणनीतिक सामग्री पर सरकार का कड़ा नियंत्रण बना रहेगा।

विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी तथा पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय में केंद्रीय राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) डॉ. जितेंद्र सिंह ने लोकसभा में कहा कि परमाणु सुरक्षा मानक पूरी तरह अपरिवर्तित एवं अक्षुण्ण हैं और वे 1962 के परमाणु ऊर्जा अधिनियम में निहित उन्हीं कठोर सिद्धांतों —‘पहले सुरक्षा, बाद में उत्पादन’ द्वारा संचालित होते हैं।

उन्होंने बताया कि परमाणु संयंत्रों में निर्माण चरण के दौरान त्रैमासिक निरीक्षण, संचालन अवधि में द्विवार्षिक निरीक्षण तथा प्रत्येक पांच वर्ष में लाइसेंस का नवीनीकरण अनिवार्य है। इसके अतिरिक्त, अब वैधानिक दर्जा प्राप्त परमाणु ऊर्जा नियामक बोर्ड को विस्तारित शक्तियां प्रदान की गई हैं और निगरानी व्यवस्था अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी के मानकों के अनुरूप है। डॉ. सिंह ने सदन को यह भी आश्वस्त किया कि भारत के परमाणु संयंत्र भूकंपीय फॉल्ट क्षेत्रों से दूर स्थित हैं और भारतीय रिएक्टरों में विकिरण का स्तर निर्धारित वैश्विक सुरक्षा सीमाओं से कई गुना नीचे है।

प्रस्तावित कानून भारत के दीर्घकालिक ऊर्जा और जलवायु लक्ष्यों से गहराई से जुड़ा हुआ है और 2070 तक कार्बन उत्सर्जन को कम करने के लिए देश के रोडमैप की रूपरेखा प्रस्तुत करता है।

संचालन स्तर पर, विधेयक परमाणु ऊर्जा के उत्पादन या उपयोग में शामिल निर्दिष्ट व्यक्तियों के लिए लाइसेंस और सुरक्षा प्राधिकरण के प्रावधान निर्धारित करता है, साथ ही निलंबन या रद्द करने के स्पष्ट आधार भी बताता है।

इसका उद्देश्य स्वास्थ्य सेवा, खाद्य एवं कृषि, उद्योग और अनुसंधान जैसे क्षेत्रों में परमाणु और विकिरण प्रौद्योगिकियों के उपयोग को विनियमित करना है, जबकि अनुसंधान, विकास और नवाचार गतिविधियों को लाइसेंसिंग आवश्यकताओं से छूट दी गई है।

इस विधेयक में परमाणु क्षति के लिए एक संशोधित और व्यावहारिक नागरिक दायित्व ढांचा प्रस्तावित किया गया है, परमाणु ऊर्जा नियामक बोर्ड को वैधानिक दर्जा प्रदान किया गया है, और सुरक्षा, संरक्षा, सुरक्षा उपायों, गुणवत्ता आश्वासन और आपातकालीन तैयारियों से संबंधित तंत्रों को मजबूत किया गया है।

इसमें परमाणु ऊर्जा निवारण सलाहकार परिषद, दावा आयुक्तों की नियुक्ति और गंभीर परमाणु क्षति से जुड़े मामलों के लिए परमाणु क्षति दावा आयोग सहित नई संस्थागत व्यवस्थाओं के गठन का प्रावधान है, जिसमें विद्युत अपीलीय न्यायाधिकरण अपीलीय प्राधिकरण के रूप में कार्य करेगा।

प्रस्तावित कानून परमाणु ऊर्जा के विस्तार को सुरक्षा, जवाबदेही और जनहित के साथ संतुलित करने का प्रयास करता है, और परमाणु ऊर्जा को ऊर्जा सुरक्षा और कम कार्बन उत्सर्जन वाले भविष्य की दिशा में व्यापक राष्ट्रीय प्रयासों के अंतर्गत रखता है।

--आईएएनएस

एबीएस/

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