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(source : IANS) ( Photo Credit : IANS)
नई दिल्ली, 25 अगस्त (आईएएनएस)। एक नए अध्ययन में सामने आया है कि टाइप 1 (टी1डी) और टाइप 2 (टी2डी) डायबिटीज दोनों ही हृदय रोग और मौत का खतरा बढ़ाते हैं, लेकिन इसका असर पुरुषों और महिलाओं में अलग-अलग तरीके से होता है।
डॉक्टरों का कहना है कि दिल की बीमारी (हृदय रोग) दुनिया में मौत का सबसे बड़ा कारण है और डायबिटीज वाले लोगों में यह खतरा आम लोगों की तुलना में कहीं ज्यादा होता है। यह अध्ययन स्वीडन के उप्साला विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने किया।
अध्ययन के अनुसार, युवा पुरुषों में टाइप-2 डायबिटीज (टी2डी) अधिक खतरनाक है। 50 साल से कम उम्र के टी2डी पुरुषों में दिल की बीमारियों का खतरा 51 प्रतिशत अधिक पाया गया। हार्ट अटैक का जोखिम 2.4 गुना अधिक और अचानक दिल की धड़कन रुकने का खतरा 2.2 गुना ज्यादा देखा गया, टाइप 1 डायबिटीज (टी1डी) वाले पुरुषों की तुलना में। इसका कारण है मोटापा, हाई ब्लड प्रेशर और अस्वास्थ्यकर जीवनशैली। कई बार इन पुरुषों में बीमारी देर से पता चलती है, इसलिए शुरुआती नतीजे और भी खराब होते हैं।
महिलाओं पर इसका असर उल्टा पाया गया। हर उम्र की महिलाओं में टाइप-1 डायबिटीज (टी1डी) अधिक गंभीर साबित हुई। टी1डी वाली महिलाएं अक्सर छोटी उम्र से ही इस बीमारी से जूझती हैं, इसलिए उन्हें लंबे समय तक इसका असर झेलना पड़ता है।
इससे उनके जीवन भर दिल और खून की नसों से जुड़ी समस्याओं का खतरा बढ़ जाता है। महिलाओं को मिलने वाली प्राकृतिक सुरक्षा (जो आमतौर पर दिल की बीमारी से बचाती है) भी टी1डी में कमजोर हो जाती है। कई बार महिलाओं को पुरुषों की तुलना में कम आक्रामक इलाज मिलता है, जिससे स्थिति और बिगड़ सकती है। इसके मुकाबले, टी1डी वाली महिलाओं में हार्ट अटैक से मौत का खतरा 34 फीसदी कम और कुल मौत का खतरा 19 फीसदी कम देखा गया।
उप्साला विश्वविद्यालय की डॉ. वागिया पात्सुकाकी ने कहा, टाइप 1 मधुमेह से पीड़ित महिलाओं में अक्सर यह रोग कम उम्र में ही विकसित हो जाता है, इसलिए वे लंबे समय तक इसके साथ रहती हैं, जिससे उनके जीवन भर हृदय और रक्त वाहिकाओं की समस्याओं का खतरा बढ़ जाता है। वे हृदय रोग के विरुद्ध महिलाओं को मिलने वाली प्राकृतिक सुरक्षा भी खो सकती हैं, और अक्सर पुरुषों की तुलना में हृदय रोग के लिए कम आक्रामक उपचार प्राप्त करती हैं।
इस शोध में 18 से 84 साल तक के 4 लाख से ज्यादा मरीजों को शामिल किया गया। इनमें से 38,351 टी1डी और 3,65,675 टी2डी मरीज थे। शोधकर्ताओं का मानना है कि इन नतीजों से डॉक्टरों को पुरुषों और महिलाओं के इलाज के तरीकों में फर्क करने की जरूरत समझ में आती है।
यह शोध जल्द ही यूरोपीय डायबिटीज अध्ययन संघ (ईएएसडी) की सालाना बैठक में पेश किया जाएगा।
--आईएएनएस
जेपी/जीकेटी
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