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संयुक्त राष्ट्र, 14 अक्टूबर (आईएएनएस)। भारत ने आतंकवाद और उसे बढ़ावा देने वालों को ‘मानवता के विरुद्ध अपराध’ घोषित करने की मांग की है।
संयुक्त राष्ट्र महासभा की विधिक समिति में सोमवार को भारतीय जनता पार्टी की सांसद एस. फांगनॉन कोन्याक ने कहा, हम इस बात पर ज़ोर देते हैं कि मानवता के विरुद्ध अपराधों की किसी भी परिभाषा में आतंकवादियों और उनके प्रायोजकों द्वारा किए गए जघन्य अपराधों और अत्याचारों को स्पष्ट रूप से शामिल किया जाना चाहिए।
मानवता के विरुद्ध अपराधों पर समिति की चर्चा के दौरान उन्होंने कहा, न्याय और जवाबदेही की मांग है कि ऐसे कृत्यों को नजरअंदाज न किया जाए।
कोन्याक ने ज़ोर देकर कहा कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रस्तावित संधि में आतंकवाद को रोकने और दंडित करने का प्रावधान होना चाहिए। हालांकि, उन्होंने इसके कुछ बिंदुओं पर सावधानी और असहमति भी जताई।
उन्होंने कहा कि किसी भी संधि में कानूनी प्रणालियों की विविधता पर विचार किया जाना चाहिए और राष्ट्रीय संप्रभुता का स्पष्ट रूप से सम्मान किया जाना चाहिए।
उन्होंने कहा कि प्रत्येक राष्ट्र की यह जिम्मेदारी है कि वह अपने देश में या अपने नागरिकों द्वारा किए गए गंभीर मानवाधिकार उल्लंघनों और बड़े अत्याचारों के लिए न्याय और जवाबदेही सुनिश्चित करे।
कोन्याक ने यह भी कहा कि किसी भी सम्मेलन को संयुक्त राष्ट्र के चार्टर और अंतरराष्ट्रीय कानून के सार्वभौमिक सिद्धांतों के अनुरूप होना चाहिए। अन्यथा यह मौजूदा कानूनी व्यवस्थाओं के साथ टकराव और भ्रम पैदा कर सकता है।
यह मसौदा अंतरराष्ट्रीय विधि आयोग द्वारा तैयार किया गया है, और महासभा ने 2028 और 2029 में इस विषय पर वैश्विक वार्ता करने का प्रस्ताव रखा है ताकि ‘मानवता के विरुद्ध अपराधों’ पर एक संधि बनाई जा सके।
राज्यसभा में नागालैंड का प्रतिनिधित्व करने वाली कोन्याक ने बताया कि यह मसौदा उस रोम संविधि से प्रेरित है, जिसके तहत अंतरराष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय (आईसीसी) की स्थापना की गई थी। उन्होंने बताया कि भारत और सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्यों सहित कई देशों को इस पर कड़ी आपत्ति है और वे इसके पक्षकार नहीं हैं।
उन्होंने यह भी कहा कि कई देशों ने आईसीसी के राजनीतिकरण और पक्षपात को लेकर गहरी चिंता जताई है।
--आईएएनएस
एएस/
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