इस्लामाबाद की प्राकृतिक संसाधनों पर पकड़, खैबर पख्तूनख्वा और बलूचिस्तान में तनाव बढ़ा

इस्लामाबाद की प्राकृतिक संसाधनों पर पकड़, खैबर पख्तूनख्वा और बलूचिस्तान में तनाव बढ़ा

इस्लामाबाद की प्राकृतिक संसाधनों पर पकड़, खैबर पख्तूनख्वा और बलूचिस्तान में तनाव बढ़ा

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IANS
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Tensions rise in Khyber Pakhtunkhwa, Balochistan as Islamabad tightens grip on natural resources

(source : IANS) ( Photo Credit : IANS)

नई दिल्ली, 27 अगस्त (आईएएनएस)। पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा (केपी) और बलूचिस्तान जैसे प्राकृतिक संसाधन संपन्न इलाकों में अशांति बढ़ रही है। इसका कारण है कि इस्लामाबाद इन राज्यों के प्राकृतिक खनिजों पर अपने अधिकारों का गलत इस्तेमाल कर रहा है।

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पाकिस्तान में प्राकृतिक संसाधनों का प्रबंधन एक चेतावनी भरी कहानी बन गया है कि कैसे संवैधानिक अधिकारों के बावजूद, केंद्रीकरण ने प्रांतीय स्वायत्तता को कमजोर कर दिया है।

यूरोपियन टाइम्स के एक लेख के अनुसार, ऐतिहासिक 18वें संशोधन में प्राकृतिक संसाधनों पर ज्यादा प्रांतीय नियंत्रण देने के वादे के पंद्रह साल बाद भी, शोषण के पुराने तरीके जारी हैं।

2010 में पारित 18वें संशोधन को संघवाद के लिए एक महत्वपूर्ण कदम माना गया। इसके अनुच्छेद 172(3) के तहत, प्रांतों और केंद्र सरकार के बीच प्राकृतिक संसाधनों का संयुक्त स्वामित्व तय किया गया।

यूरोपियन टाइम्स के लेख के मुताबिक, असलियत कुछ और है, जहां प्रांतीय अधिकारों का लगातार उल्लंघन और कमजोर किया जा रहा है। आज संघीय सरकार स्वायत्तता के आदर्शों का दिखावा करती है, लेकिन देश की खनिज संपदा पर नियंत्रण बनाए रखने के लिए जटिल नियम लागू करती है।

लेख में कहा गया है कि संवैधानिक वादों और राजनीतिक व्यवहार के बीच यह विरोधाभास एक ऐसे शासन संकट को जन्म दे रहा है, जो पाकिस्तान की स्थिरता और आर्थिक भविष्य के लिए खतरा है।

खैबर पख्तूनख्वा में संगमरमर, ग्रेनाइट, रत्न, क्रोमाइट और तांबे जैसे बड़े भंडार हैं, इसलिए इस प्रांत को खूब विकसित होना चाहिए था। लेख में कहा गया है कि इसके बजाय, इसकी प्राकृतिक संपदा को संघीय सरकार के लिए लगातार निकाला जा रहा है, जबकि स्थानीय बुनियादी ढांचे, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा में बहुत कम निवेश हो रहा है।

यह बात बलूचिस्तान की स्थिति को पाकिस्तान के संघीय ढांचे में सबसे दुखद हालात के रूप में भी सामने लाती है। तांबा, सोना, कोयला और दुर्लभ मृदा तत्वों जैसे कई खनिजों से भरे होने के बावजूद, यह देश का सबसे गरीब और अविकसित प्रांत बना हुआ है। संसाधनों की भरमार और स्थानीय गरीबी के बीच यह फर्क कोई संयोग नहीं है।

लेख में कहा गया है कि यह दशकों से चली आ रही शोषणकारी नीतियों का नतीजा है, जो प्रांतीय अधिकारों और स्थानीय लोगों की भलाई की बजाय संघीय और विदेशी हितों को प्राथमिकता देती हैं।

--आईएएनएस

एसएचके/एबीएम

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