महिलाओं और पुरुषों में डिप्रेशन के जीन अलग, ऑस्ट्रेलियाई वैज्ञानिकों की बड़ी रिसर्च

महिलाओं और पुरुषों में डिप्रेशन के जीन अलग, ऑस्ट्रेलियाई वैज्ञानिकों की बड़ी रिसर्च

महिलाओं और पुरुषों में डिप्रेशन के जीन अलग, ऑस्ट्रेलियाई वैज्ञानिकों की बड़ी रिसर्च

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IANS
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Study decodes how females and males experience depression

(source : IANS) ( Photo Credit : IANS)

नई दिल्ली, 8 अक्टूबर (आईएएनएस)। ऑस्ट्रेलिया के वैज्ञानिकों ने डिप्रेशन से जुड़े एक बड़े रहस्य से पर्दा उठाया है। रिसर्च में पता चला है कि महिलाएं और पुरुष डिप्रेशन को न सिर्फ अलग तरह से अनुभव करते हैं, बल्कि इसके पीछे उनके जीन यानी डीएनए भी अलग-अलग भूमिका निभाते हैं। इस रिसर्च से डिप्रेशन के इलाज को लेकर नए और ज्यादा असरदार रास्ते खुल सकते हैं।

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यह अध्ययन क्यूआईएमआर बर्गहोफर मेडिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिकों ने किया है और इसे प्रतिष्ठित शोध पत्रिका नेचर कम्युनिकेशंस में प्रकाशित किया गया है।

शोध के अनुसार, डिप्रेशन की संभावना महिलाओं में पुरुषों की तुलना में लगभग दोगुनी होती है और इसके पीछे जेनेटिक्स का अहम योगदान हो सकता है। अध्ययन में पाया गया कि महिलाओं के डीएनए में डिप्रेशन से जुड़ी लगभग 13,000 जेनेटिक वेरिएंट्स मौजूद हैं, जिनमें से करीब 6,000 ऐसे वेरिएंट्स सिर्फ महिलाओं में ही पाए गए। वहीं, पुरुषों और महिलाओं में समान रूप से पाए जाने वाले वेरिएंट्स की संख्या करीब 7,000 रही।

इस शोध की प्रमुख वैज्ञानिक डॉ. ब्रिटनी मिशेल ने बताया, अब तक डिप्रेशन पर जितने भी अध्ययन हुए हैं, वे अधिकतर पुरुषों पर आधारित रहे हैं। इससे महिलाओं के डिप्रेशन को ठीक से समझना मुश्किल हो जाता था। लेकिन इस नई रिसर्च ने यह स्पष्ट कर दिया है कि महिलाओं में डिप्रेशन होने की आनुवंशिक वजहें अलग हैं, और यही वजह है कि उनके लक्षण भी अक्सर अलग होते हैं। उदाहरण के लिए, महिलाओं में डिप्रेशन के दौरान वजन बढ़ना या घटना, थकावट महसूस होना जैसी शारीरिक समस्याएं ज्यादा दिखती हैं। यह भी पाया गया कि महिलाओं में डिप्रेशन के साथ मेटाबॉलिक समस्याएं ज्यादा जुड़ी होती हैं।

शोध में करीब 130,000 डिप्रेशन से ग्रसित महिलाओं और 65,000 पुरुषों के डीएनए की तुलना की गई, जिसमें पाया गया कि जिन वेरिएंट्स की पहचान की गई है, वे जन्म से मौजूद होते हैं।

शोध में देखा गया कि पुरुषों और महिलाओं में डिप्रेशन का असर अलग-अलग होता है। इसी आधार पर वैज्ञानिकों का मानना है कि इलाज और दवाओं को भी अब इस फर्क के हिसाब से विकसित किया जाना चाहिए।

इस शोध की एक अन्य प्रमुख वैज्ञानिक, डॉ. जोडी थॉमस, कहती हैं कि अगर हम डिप्रेशन की जड़ तक जाना चाहते हैं तो हमें पुरुषों और महिलाओं के बीच के जेनेटिक फर्क को समझना ही होगा।

--आईएएनएस

पीके/एएस

डिस्क्लेमरः यह आईएएनएस न्यूज फीड से सीधे पब्लिश हुई खबर है. इसके साथ न्यूज नेशन टीम ने किसी तरह की कोई एडिटिंग नहीं की है. ऐसे में संबंधित खबर को लेकर कोई भी जिम्मेदारी न्यूज एजेंसी की ही होगी.

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