शेखर कपूर का आत्ममंथन, 'मैं भी कहानी लिखते समय सिजोफ्रेनिक होता हूं?'

शेखर कपूर का आत्ममंथन, 'मैं भी कहानी लिखते समय सिजोफ्रेनिक होता हूं?'

शेखर कपूर का आत्ममंथन, 'मैं भी कहानी लिखते समय सिजोफ्रेनिक होता हूं?'

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IANS
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Shekhar Kapur explores the deep connection between creativity and mental health

(source : IANS) ( Photo Credit : IANS)

मुंबई, 23 जून (आईएएनएस)। दिग्गज फिल्म निर्माता शेखर कपूर ने रचनात्मकता, मानसिक स्वास्थ्य और कलात्मक प्रतिभा के आपसी संबंध पर अपने विचार साझा किए हैं। साथ ही आत्ममंथन करते हुए सवाल किया कि जब वह कहानी लिखते हैं, तो उस दुनिया में खो जाते हैं, क्या ऐसा करके वह सिजोफ्रेनिक हैं?

शेखर कपूर ने इंस्टाग्राम पर एक पोस्ट शेयर की, जिसमें उन्होंने मशहूर पेंटिंग स्टारी नाइट के बारे में बात की। यह पेंटिंग महान कलाकार विंसेंट वैन गॉग ने बनाई थी।

उन्होंने कहा, स्टारी नाइट दुनिया की सबसे कीमती और मशहूर पेंटिंग में से एक है। लेकिन, इस पेंटिंग के पीछे की सच्चाई यह है कि वैन गॉग ने इसे उस समय बनाया था, जब वह मानसिक रूप से बहुत परेशान थे और अस्पताल में भर्ती थे।

शेखर ने अपने अनुभव से बताया कि जब वह कहानी बनाते हैं, तो वह पूरी तरह उस दुनिया में चले जाते हैं, लेकिन काम पूरा होने के बाद वह फिर से सामान्य जिंदगी में लौट आते हैं। वैन गॉग जैसे कई कलाकारों के लिए यह वापस लौटना मुश्किल था। वह अपनी मानसिक परेशानी से बाहर नहीं आ पाए।

शेखर कपूर ने मानसिक स्वास्थ्य को लेकर लोगों से गहरी सोच अपनाने की अपील की है। उन्होंने सवाल उठाया कि हम जिसे सामान्य और बीमारी कहते हैं, उसकी परिभाषा क्या वाकई सही है?

विन्सेंट वैन गॉग की कुछ पेंटिंग्स की तस्वीरें शेयर करते हुए शेखर कपूर ने कैप्शन में लिखा, वैन गॉग ने जिस तरह से आसमान में घूमते हुए बादलों और तारों के पैटर्न बनाए, वे भावनाओं से भरे हुए थे। उनके दर्द और नजरिए से ऐसी कला निकली, जिसने वैज्ञानिकों को भी चौंका दिया। इसलिए, हमें सामान्यता और बीमारी की परिभाषा पर फिर से सोचने की जरूरत है।

शेखर कपूर ने आगे लिखा, क्या कला और मानसिक स्थिति, जैसे सिजोफ्रेनिया, के बीच कोई रिश्ता है? अगर एक कलाकार को सिजोफ्रेनिया है, तो वह कैसे ब्रह्मांड की सच्चाई को इतनी गहराई से समझ कर दिखा सकता है, जैसा कि वैन गॉग ने किया? जब मैं कोई कहानी लिखता हूं, तो मैं खुद को पूरी तरह उस कहानी की दुनिया में ले जाता हूं। जैसे ही मैं लिखना शुरू करता हूं, मैं अपने आप को उन किरदारों में बदल लेता हूं, जैसे मानो मैं ही वह किरदार हूं। मेरा दिमाग यह मानने लगता है कि मैं किसी और जगह पर हूं, किसी और रूप में हूं।

पोस्ट में वह सवाल उठाते हुए आगे लिखते हैं, क्या जब मैं ऐसा करता हूं, तो मैं भी एक तरह की स्थिति में होता हूं?

शेखर कपूर ने अपनी पोस्ट में आगे लिखा, शुक्र है कि मैं अपने किरदारों से बाहर आ जाता हूं और फिर से अपने सामान्य जीवन में लौट सकता हूं। लेकिन, वैन गॉग जैसे कलाकार, जिन्होंने दुनिया की सबसे महान कला बनाई, वो ऐसा नहीं कर पाए। वे सामान्य जिंदगी में वापस नहीं लौट सके।

उन्होंने आगे कहा, अगर सारी रचनात्मकता उस स्थिति में होती है, जो सामान्य नहीं मानी जाती, तो हमें मानसिक बीमारी और सामान्य होना, इन दोनों की परिभाषाएं फिर से सोचनी चाहिए। बहुत से कलाकार, डांसर, म्यूजिशियन और एक्टर कहते हैं कि जब वह कुछ क्रिएट कर रहे होते हैं, तो वह एक खास जोन में चले जाते हैं। इस जोन में पहुंचकर वह अपनी सोच, भावनाएं और कल्पनाएं गहराई से महसूस करते हैं। यह जोन आखिर है क्या? जब हम कहानियां लिखते हैं या ब्रह्मांड की झलक किसी पेंटिंग में दिखाते हैं, तब हम किस दुनिया में होते हैं? क्या वो भी एक तरह की सिजोफ्रेनिक अवस्था है? हमें रचनात्मकता और मानसिक स्थिति को लेकर पुराने नजरिए को बदलने की जरूरत है।

--आईएएनएस

पीके/एबीएम

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डिस्क्लेमरः यह आईएएनएस न्यूज फीड से सीधे पब्लिश हुई खबर है. इसके साथ न्यूज नेशन टीम ने किसी तरह की कोई एडिटिंग नहीं की है. ऐसे में संबंधित खबर को लेकर कोई भी जिम्मेदारी न्यूज एजेंसी की ही होगी.

      
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