वैज्ञानिकों ने खोजे क्रोनिक किडनी रोग की प्रगति का पूर्वानुमान लगाने वाले जैविक संकेत

वैज्ञानिकों ने खोजे क्रोनिक किडनी रोग की प्रगति का पूर्वानुमान लगाने वाले जैविक संकेत

वैज्ञानिकों ने खोजे क्रोनिक किडनी रोग की प्रगति का पूर्वानुमान लगाने वाले जैविक संकेत

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IANS
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Scientists find biological signals to predict course of chronic kidney disease

(source : IANS) ( Photo Credit : IANS)

नई दिल्ली, 15 अगस्त (आईएएनएस)। शुक्रवार को हुए एक अध्ययन में पता चला कि एक साधारण ब्लड या यूरिन टेस्ट से अब क्रोनिक किडनी रोग के बढ़ने की संभावना का बेहतर अनुमान लगाने में मदद मिल सकती है। इस अध्ययन में इस बीमारी के प्रमुख जैविक संकेतों की पहचान की गई है।

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मैनचेस्टर विश्वविद्यालय की टीम ने पाया कि रक्त और मूत्र में किडनी क्षति का एक विशेष संकेतक, किडनी इंजरी मॉलिक्यूल-1 (केआईएम-1) का उच्च स्तर मृत्यु दर और किडनी फेलियर के उच्च जोखिम से जुड़ा है।

पिछले महीने, टीम ने रक्त और मूत्र में 21 ऐसे मार्करों को मापा जो किडनी रोग, सूजन और हृदय रोग को प्रेरित करने वाली प्रमुख प्रक्रियाओं को दर्शाते हैं।

सामान्य किडनी क्लीनिकों में इस्तेमाल किए जाने वाले सामान्य परीक्षणों के विपरीत, ये मार्कर क्रोनिक किडनी रोग (सीकेडी) के मूल में मौजूद जैविक परिवर्तनों पर प्रकाश डालते हैं, जो वास्तव में रोग को बढ़ावा देते हैं। यह खोज रोग की जड़ों में छिपे हुए कारकों को सामने लाने और नए उपचार के रास्ते खोलती है।

इस शोध के प्रमुख लेखक डॉ. थॉमस मैकडोनेल ने कहा, लोगों के बीच क्रोनिक किडनी रोग की प्रगति बहुत भिन्न होती है, इसलिए यह अनुमान लगाना मुश्किल है कि कौन से मरीजों में किडनी फेलियर या इससे भी बदतर स्थिति होगी। लेकिन हमारा शोध ऐसे सरल रक्त या मूत्र परीक्षणों के विकास की संभावना को बढ़ाता है जो जोखिम की मात्रा का बेहतर अनुमान लगा सकते हैं।

उन्होंने आगे कहा, हमारा मानना है कि ये मॉडल, जो क्रोनिक किडनी रोग में होने वाले अंतर्निहित जैविक परिवर्तनों के साथ अधिक निकटता से जुड़े हैं, रोगियों की व्यक्तिगत आवश्यकताओं के लिए अधिक अनुकूलित दृष्टिकोण को पेश कर सकते हैं।

अमेरिकन जर्नल ऑफ नेफ्रोलॉजी में प्रकाशित इस अध्ययन में, शोधकर्ताओं ने यूके भर के 16 नेफ्रोलॉजी केंद्रों से गैर-डायलिसिस क्रोनिक किडनी रोग से पीड़ित वयस्कों के रक्त और मूत्र का विश्लेषण किया।

उन्होंने केआईएम-1 अध्ययन के लिए 2581 रोगियों के रक्त और मूत्र केआईएम-1 का विश्लेषण किया। इसके अलावा, उन्होंने 2,884 रोगियों के दूसरे समूह में गुर्दे की क्षति, फाइब्रोसिस, सूजन और हृदय रोग के 21 संकेतों का अध्ययन किया।

इनके अध्ययन से पता चला कि जैविक संकेत गुर्दे की विफलता और मृत्यु दर से कैसे जुड़े हैं।

--आईएएनएस

जेपी/एएस

डिस्क्लेमरः यह आईएएनएस न्यूज फीड से सीधे पब्लिश हुई खबर है. इसके साथ न्यूज नेशन टीम ने किसी तरह की कोई एडिटिंग नहीं की है. ऐसे में संबंधित खबर को लेकर कोई भी जिम्मेदारी न्यूज एजेंसी की ही होगी.

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