अमेरिकी शोधकर्ताओं ने खतरनाक फंगस से बनाई कैंसर की दवा

अमेरिकी शोधकर्ताओं ने खतरनाक फंगस से बनाई कैंसर की दवा

अमेरिकी शोधकर्ताओं ने खतरनाक फंगस से बनाई कैंसर की दवा

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IANS
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Researchers turn toxic fungus into anti-cancer drug

(source : IANS) ( Photo Credit : IANS)

नई दिल्ली, 23 जून (आईएएनएस)। अमेरिकी शोधकर्ताओं की एक टीम ने एक खतरनाक फंगस को कैंसर से लड़ने वाली शक्तिशाली दवा में बदल दिया है। सोमवार को जारी एक नए अध्ययन में यह जानकारी दी गई।

शोधकर्ताओं ने एस्परगिलस फ्लेवस नामक एक जहरीले फसल फंगस से अणुओं की एक नई श्रेणी अलग की। इसके बाद, उन्होंने इन रसायनों में बदलाव किया और ल्यूकेमिया कोशिकाओं पर उनका परीक्षण किया।

पेन्सिल्वेनिया विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ इंजीनियरिंग एंड एप्लाइड साइंस के एक अध्ययन के अनुसार, शोधकर्ताओं ने एक ऐसी यौगिक की खोज की है जो कैंसर कोशिकाओं को मार सकती है। यह यौगिक एफडीए द्वारा स्वीकृत दवाओं के बराबर प्रभावी है और इससे भविष्य में फंगस से बनी और दवाओं की खोज के नए रास्ते खुल सकते हैं।

पेनसिल्वेनिया विश्वविद्यालय में केमिकल और बायोमॉलिक्यूलर इंजीनियरिंग की प्रोफेसर और नेचर केमिकल बायोलॉजी जर्नल में प्रकाशित एक नए शोध पत्र की मुख्य लेखिका शेरी गाओ ने कहा कि फंगस ने हमें पेनिसिलिन दी। ये नतीजे दिखाते हैं कि प्रकृति से मिलने वाली और भी कई दवाइयां खोजी जानी बाकी हैं।

यह थेरेपी एक प्रकार के पेप्टाइड्स की है, जिन्हें राइबोसोमली बनाया जाता है और बाद में संशोधित किया जाता है। इन्हें रिप्स कहते हैं, जिसका उच्चारण रिप जैसा है।

इस यौगिक का नाम इसकी उत्पत्ति से आता है। राइबोसोम, एक छोटी कोशिकीय संरचना जो प्रोटीन बनाती है और इसे बाद में इसके कैंसर-नाशक गुणों को बढ़ाने के लिए संशोधित किया जाता है।

सीबीई में पोस्टडॉक्टरल फेलो और इस शोधपत्र के प्रथम लेखक कियुयू नी का कहना है कि इन रसायनों को शुद्ध करना कठिन है।

जबकि बैक्टीरिया में हजारों रिप्स की पहचान की गई है, फंगी (कवक) में इनकी संख्या बहुत कम है। इसका एक कारण यह है कि पहले के शोधकर्ताओं ने फंगी के रिप्स को गलती से गैर-राइबोसोमल पेप्टाइड्स समझा और यह नहीं समझ पाए कि फंगी इन अणुओं को कैसे बनाते हैं।

नी ने कहा कि इन यौगिकों को बनाना जटिल है। लेकिन यही जटिलता उन्हें इतनी खास जैविक सक्रियता देती है।

अधिक फफूंदयुक्त रिप्स का पता लगाने के लिए शोधकर्ताओं ने सबसे पहले एस्परगिलस की एक दर्जन प्रजातियों को स्कैन किया, जिसके बारे में पिछले शोध में सुझाव दिया गया था कि इसमें अधिक रसायन हो सकते हैं।

शोधकर्ताओं ने इन स्ट्रेनों द्वारा बनाए गए रसायनों की तुलना RiPP के ज्ञात निर्माण खंडों से की और पाया कि ए फ्लेवस आगे के अध्ययन के लिए एक आशाजनक उम्मीद है।

जेनेटिक विश्लेषण से पता चला कि ए फ्लेवस नामक कवक में एक खास प्रोटीन फंगल रिप्स का स्रोत है। जब शोधकर्ताओं ने उस प्रोटीन को बनाने वाले जीन को बंद किया, तो रिप्स की मौजूदगी दिखाने वाले रासायनिक संकेत भी गायब हो गए।

यह नया तरीका चयापचय और आनुवंशिक जानकारी को मिलाकर न केवल ए फ्लेवस में फंगल रिप्स के स्रोत को ढूंढने में सफल रहा, बल्कि भविष्य में और फंगल रिप्स खोजने के लिए भी इस्तेमाल किया जा सकता है।

खास बात यह है कि इन यौगिकों का स्तन, यकृत या फेफड़ों के कैंसर कोशिकाओं पर या विभिन्न बैक्टीरिया और कवक पर बहुत कम या कोई प्रभाव नहीं पड़ा। इससे पता चलता है कि एस्पेरिजिमाइसिन का हानिकारक प्रभाव केवल कुछ खास प्रकार की कोशिकाओं पर होता है, जो भविष्य की किसी दवा के लिए एक महत्वपूर्ण विशेषता है।

अगला कदम एस्परिजिमिसिन का परीक्षण पशु मॉडलों में करना है, इस उम्मीद के साथ कि एक दिन इसका मानव नैदानिक ​​परीक्षण भी किया जा सकेगा।

--आईएएनएस

पीएसके

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