गोल्ड लोन पर आरबीआई के नए नियमों से ऋणदाताओं के बिजनेस मॉडल में आ सकता है बदलाव : रिपोर्ट

गोल्ड लोन पर आरबीआई के नए नियमों से ऋणदाताओं के बिजनेस मॉडल में आ सकता है बदलाव : रिपोर्ट

गोल्ड लोन पर आरबीआई के नए नियमों से ऋणदाताओं के बिजनेस मॉडल में आ सकता है बदलाव : रिपोर्ट

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IANS
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(source : IANS) ( Photo Credit : IANS)

नई दिल्ली, 19 जून (आईएएनएस)। भारतीय रिजर्व बैंक के नए दिशा-निर्देश गोल्ड लोन क्षेत्र में बड़ा बदलाव लाने वाले हैं। जिन ऋणदाताओं के पास अपने बिजनेस मॉडल को तेजी से बदलने की क्षमता होगी, वे इन नए नियमों से लाभान्वित हो पाएंगे। यह जानकारी गुरुवार को जारी एसएंडपी ग्लोबल रेटिंग्स की रिपोर्ट में दी गई।

रिपोर्ट का मानना है कि ऋणदाताओं के पास गोल्ड-समर्थित उपभोग ऋणों के लिए कम अवधि के ऋण देने की अधिक स्वतंत्रता होगी, जिससे छोटे उधारकर्ता अपनी गिरवी रखी गई सोने की संपत्तियों से अधिक मूल्य प्राप्त कर सकेंगे।

ऋणदाताओं के पास बदलावों के लिए तैयार होने के लिए 1 अप्रैल, 2026 तक का समय है।

रिपोर्ट में नए नियमों के दो तत्वों को लेकर जानकारी दी गई है। पहला लोन-टू-वैल्यू (एलटीवी) रेश्यो की गणना में मैच्योरिटी तक ब्याज भुगतान को शामिल करना। यह प्रभावी रूप से वितरित किए जाने वाले अग्रिम ऋण राशि को सीमित कर सकता है, जिसे ऋणदाता दूर करने का प्रयास करेंगे। दूसरा 3,000 डॉलर से अधिक के उपभोग-केंद्रित ऋणों और सभी आय-उत्पादक ऋणों के लिए उधारकर्ताओं के नकदी प्रवाह विश्लेषण के आधार पर ऋण मूल्यांकन का अनुप्रयोग।

रिपोर्ट के अनुसार, मुथूट फाइनेंस लिमिटेड (बीबी+/स्टेबल/बी) और मणप्पुरम फाइनेंस लिमिटेड (बीबी-/स्टेबल/बी) जैसी प्रमुख गोल्ड-बेस्ड लोन बुक्स वाली गैर-बैंक वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) के लिए ऋण मूल्यांकन में समायोजन बड़ा होगा।

एनबीएफसी को नकदी प्रवाह के आधार पर उधारकर्ताओं की पुनर्भुगतान क्षमताओं का मूल्यांकन करने के लिए जोखिम प्रबंधन नीतियों और प्रक्रियाओं को विकसित करने की आवश्यकता है।

रिपोर्ट बताती है कि परंपरागत रूप से, वे कोलेटरल वैल्यूएशन पर निर्भर रहे हैं। पुनर्भुगतान क्षमता का आकलन करने के लिए ऋण अधिकारियों को नियुक्त करने और प्रशिक्षित करने के लिए कौशल अंतराल को पाटना इन ऋणदाताओं के लिए एक अग्रिम लागत और बाधा दोनों है।

रिपोर्ट में इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि मॉडल में त्वरित समायोजन की संभावना है। यह उम्मीद करता है कि ऋणदाता तीन महीने और छह महीने की मैच्योरिटी वाले कम अवधि वाले उत्पादों के अनुपात को धीरे-धीरे बढ़ाएंगे।

रिपोर्ट में कहा गया है कि इस बदलाव से कम से मध्यम आय वाले उधारकर्ताओं को लाभ होगा।

रिपोर्ट का मानना है कि भारतीय रिजर्व बैंक के नवीनतम नियम ऋणों को रिन्यू करने पर स्पष्टता प्रदान करते हैं।

नियम अब अनिवार्य करता है कि रिन्यूअल केवल ब्याज के पूर्ण पुनर्भुगतान के अधीन है।

रिपोर्ट में आय-उत्पादक ऋणों में वृद्धि की भी उम्मीद है।

रिपोर्ट के अनुसार, भले ही ऋणदाता नए मॉडलों के साथ प्रयोग कर रहे हों, लेकिन वास्तविक अंतर यह रहेगा कि वे ऋण को शीघ्रता से और निर्बाध रूप से वितरित करने में सक्षम होंगे।

--आईएएनएस

एसकेटी/

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