आरबीआई ने बैंकों को अधिग्रहण के लिए लोन की राशि बढ़ाने का ड्राफ्ट सर्कुलर किया जारी

आरबीआई ने बैंकों को अधिग्रहण के लिए लोन की राशि बढ़ाने का ड्राफ्ट सर्कुलर किया जारी

आरबीआई ने बैंकों को अधिग्रहण के लिए लोन की राशि बढ़ाने का ड्राफ्ट सर्कुलर किया जारी

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IANS
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RBI proposes to allow banks to finance corporate acquisitions with stricter safeguards

(source : IANS) ( Photo Credit : IANS)

मुंबई, 25 अक्टूबर (आईएएनएस) । भारतीय रिजर्व बैंक ने एक नया ड्राफ्ट सर्कुलर जारी किया है, जिसमें भारतीय कंपनियों को घरेलू या विदेशी फर्मों में पूरा या कंट्रोलिंग स्टेक खरीदने के लिए बैंकों द्वारा लोन की राशि बढ़ाने का प्रस्ताव दिया गया है। केंद्रीय बैंक की ओर से इन मानदंडों को 1 अप्रैल 2026 से लागू करने का प्रस्ताव दिया गया है।

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बैंक द्वारा दिया जाने वाला यह लोन शॉर्ट-टर्म फाइनेंशियल रीस्ट्रक्चरिंग के बजाय लॉन्ग-टर्म वैल्यू बनाने वाले स्ट्रेटेजिक इन्वेस्टमेंट का हिस्सा होगा।

हालांकि, आरबीआई ने एक्वायर करने वाली कंपनियों को लेकर यह भी स्पष्ट किया है कि यह कंपनियां लिस्टेड होनी चाहिए और इनकी नेट वर्थ भी अच्छी होनी चाहिए, जिसके लिए इन कंपनियों के पिछले तीन वर्ष का प्रॉफिट रिकॉर्ड भी ध्यान रखा जाएगा।

आरबीआई के ड्राफ्ट के अनुसार, बैंक अधिग्रहण मूल्य का अधिकतम 70 प्रतिशत फंड कर सकता है। अधिग्रहण मूल्य का कम से कम 30 प्रतिशत हिस्सा अधिग्रहण करने वाली कंपनी को अपने धन का इस्तेमाल कर इक्विटी के रूप में फंड करना होगा।

आरबीआई द्वारा इस तरह के एक्विजिशन फाइनेंस में किसी बैंक के कुल एक्सपोजर को उसके टियर-I कैपिटल के 10 प्रतिशत तक सीमित करने का प्रस्ताव दिया गया है।

सर्कुलर में कहा गया है कि बैंक सीधे एक्वायरिंग कंपनी को ही लोन दे सकते हैं या इस कंपनी द्वारा टारगेट एंटिटी को खरीदने के लिए सेट अप किए गए स्टेप-डाउन स्पेशल पर्पस व्हीकल (एसपीवी) को लोन दिया जा सकता है।

इसके अलावा, केंद्रीय बैंक का कहना है कि लोन देने वाले बैंकों के पास एक्विजिशन फाइनेंस पर एक पॉलिसी होनी चाहिए। इस तरह की पॉलिसी में उधार लेने वालों की एलिजिबिलिटी, सिक्योरिटी, रिस्क मैनेजमेंट, मार्जिन और मॉनिटरिंग टर्म्स की लिमिट, नियर और शर्तों की जानकारी मौजूद होनी चाहिए।

केंद्रीय बैंक ने प्रस्ताव दिया है कि बैंकों को यह सुनिश्चित करने की जरूरत होगी कि एक्वायरिंग कंपनी और एक्विजिशन के लिए बनाई गई एसपीवी नॉन-बैंकिंग फाइनेंशियल कंपनियां या अल्टरनेटिव इन्वेस्टमेंट फंड जैसे फाइनेंशियल इंटरमीडियरी न हो।

बैंकों को यह भी वेरिफाई करने की जरूरत होगी कि एक्वायर करने वाली कंपनी और टारगेट कंपनी आपस में रिलेटेड पार्टी न हों।

नियमों के अनुसार, टारगेट कंपनी की एक्विजिशन वैल्यू बाजार नियामक सेबी के नियमों के तहत तय की जानी चाहिए। इसके अलावा, क्रेडिट असेस्मेंट के लिए बैंकों को दोनों कंपनियों की कम्बाइन्ड बैलेंसशीट को चेक करना होगा।

--आईएएनएस

एसकेटी/

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