मानव और पर्यावरण के लिए अनदेखा खतरा है प्लास्टिक: द लैंसेट

मानव और पर्यावरण के लिए अनदेखा खतरा है प्लास्टिक: द लैंसेट

मानव और पर्यावरण के लिए अनदेखा खतरा है प्लास्टिक: द लैंसेट

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IANS
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Plastic pollution is underrecognised threat to health: The Lancet

(source : IANS) ( Photo Credit : IANS)

नई दिल्ली, 4 अगस्त (आईएएनएस)। ‘द लैंसेट’ जर्नल की एक नई रिपोर्ट ने बढ़ते प्लास्टिक प्रदूषण को बेहद खतरनाक बताया है। ये रिपोर्ट कहती है कि लोग भांप नहीं पाए हैं कि प्लास्टिक इंसानों और पर्यावरण के लिए कितना बड़ा खतरा है। मानव और पर्यावरण के लिए ये अनदेखा खतरा है।

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अंतर्राष्ट्रीय विशेषज्ञों के समूह ने रिपोर्ट में इस बात की समीक्षा की है कि प्लास्टिक, जिसमें माइक्रोप्लास्टिक और प्लास्टिक केमिकल भी शामिल हैं, किस प्रकार स्वास्थ्य पर प्रभाव डालते हैं।

रिपोर्ट के लेखक बोस्टन कॉलेज, अमेरिका के प्रोफेसर फिलिप जे. लैंडरिगन ने कहा, “प्लास्टिक मानव और पर्यावरण के लिए एक बढ़ता हुआ खतरा है। यह जन्म से लेकर बुढ़ापे तक बीमारियों और मृत्यु का कारण बनता है। इसके कारण हर साल 1.5 ट्रिलियन डॉलर से अधिक के स्वास्थ्य संबंधी आर्थिक नुकसान होता है।”

रिपोर्ट में बताया गया कि प्लास्टिक का उत्पादन और इस्तेमाल हमारी सेहत पर नकारात्मक असर डालते हैं। प्लास्टिक उत्पादन के दौरान हवा में उत्सर्जित होने वाले कण (पीएम2.5), सल्फर डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड, और खतरनाक केमिकल मानव स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाते हैं।

विशेषज्ञों ने चिंता जताई है कि प्लास्टिक में मौजूद रसायनों के बारे में पूरी जानकारी नहीं है। हमें नहीं पता कि इनमें कौन-कौन से रसायन हैं, उनकी मात्रा कितनी है, उनका उपयोग कहां हो रहा है, या वे कितने खतरनाक हैं। ये रसायन बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक, जीवन के हर पड़ाव पर स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचा सकते हैं।

अमेरिका, स्विट्जरलैंड, जर्मनी और ऑस्ट्रेलिया के विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि प्लास्टिक में मौजूद केमिकल्स, उनकी मात्रा, उनके प्रयोग और जहरीलेपन के बारे में जानकारी का अभाव है। इस पारदर्शिता की कमी के कारण इन केमिकल्स के स्वास्थ्य और पर्यावरण पर पड़ने वाले नुकसान को समझना और रोकना मुश्किल रहा है।

रिपोर्ट में यह भी उल्लेख किया गया कि माइक्रोप्लास्टिक मानव टिशू और शरीर के तरल पदार्थों में पाए गए हैं। हालांकि, इसके स्वास्थ्य प्रभावों को पूरी तरह समझने के लिए और शोध की जरूरत है, लेकिन सावधानी बरतना जरूरी है।

विशेषज्ञों का कहना है कि निम्न और मध्यम आय वाले देशों में 57 प्रतिशत प्लास्टिक कचरा खुले में जलाया जाता है, जिससे हवा बहुत प्रदूषित हो जाती है। साथ ही प्लास्टिक कचरा मच्छरों के प्रजनन और हानिकारक सूक्ष्मजीवों के पनपने में मदद करता है।

रिपोर्ट में प्लास्टिक प्रदूषण के स्वास्थ्य प्रभावों पर अधिक ध्यान देने की मांग की गई है। अनुमान है कि यदि स्थिति नहीं बदली, तो साल 2060 तक प्लास्टिक उत्पादन लगभग तीन गुना हो जाएगा।

प्रोफेसर लैंडरिगन ने कहा कि प्लास्टिक प्रदूषण के खतरे को कम करना मुश्किल नहीं है। अगर पारदर्शी, प्रभावी नीतियां बनाई जाएं, तो इसे नियंत्रित किया जा सकता है। सही नियम, खुलेपन और वित्तीय सहायता से इस समस्या पर काबू पाया जा सकता है।

साल 2022 में संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देशों ने प्लास्टिक प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए ग्लोबल प्लास्टिक ट्रीटी बनाने का संकल्प लिया था, जिसकी बैठक 5 अगस्त को होगी। साथ ही विशेषज्ञों ने ‘लैंसेट काउंटडाउन ऑन हेल्थ एंड प्लास्टिक्स’ नामक एक नया प्रोजेक्ट शुरू करने की घोषणा की, जो प्लास्टिक के स्वास्थ्य प्रभावों को ट्रैक करेगा। इसकी पहली इंडिकेटर रिपोर्ट साल 2026 के मध्य में जारी होने की उम्मीद है।

--आईएएनएस

एमटी/केआर

डिस्क्लेमरः यह आईएएनएस न्यूज फीड से सीधे पब्लिश हुई खबर है. इसके साथ न्यूज नेशन टीम ने किसी तरह की कोई एडिटिंग नहीं की है. ऐसे में संबंधित खबर को लेकर कोई भी जिम्मेदारी न्यूज एजेंसी की ही होगी.

      
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