दिल्ली : आपराधिक मामलों में जुर्माना बढ़ाने की मांग, सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर

दिल्ली : आपराधिक मामलों में जुर्माना बढ़ाने की मांग, सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर

दिल्ली : आपराधिक मामलों में जुर्माना बढ़ाने की मांग, सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर

author-image
IANS
New Update
Supreme Court. (File Photo: IANS)

(source : IANS) ( Photo Credit : IANS)

नई दिल्ली, 31 अगस्त (आईएएनएस)। सुप्रीम कोर्ट में आपराधिक मामलों में जुर्माने बढ़ाने की मांग को लेकर एक जनहित याचिका (पीआईएल) दायर की गई है। इस याचिका में निचली अदालतों के लिए दिशानिर्देश जारी किए जाने की मांग की गई है ताकि आपराधिक कानून के दंडात्मक और निवारक उद्देश्यों को बेहतर ढंग से प्राप्त करने के लिए अधिक जुर्माना लगाया जा सके।

Advertisment

याचिका के अनुसार, आपराधिक धाराओं के तहत निर्धारित जुर्माना वर्तमान परिदृश्य में अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने में पूरी तरह अपर्याप्त है, क्योंकि पिछले कई दशकों में रुपए के मूल्य में भारी कमी आई है।

जनहित याचिका में कहा गया है कि मोटर वाहन अधिनियम में हाल के वर्षों में दो बार संशोधन किया गया है, जिसके तहत विभिन्न ट्रैफिक अपराधों के लिए जुर्माने में काफी वृद्धि की गई है। उदाहरण के तौर पर शराब पीकर गाड़ी चलाने या प्रदूषण नियंत्रण प्रमाणपत्र (पीयूसी) न रखने पर 10,000 रुपए का जुर्माना लगाया जाता है।

याचिका में कहा गया, अगर कोई व्यक्ति एक साथ कई ट्रैफिक नियम तोड़ता है, जैसे कि शराब पीकर लापरवाही से गाड़ी चलाना, रेड सिग्नल तोड़ना या प्रदूषण प्रमाणपत्र न रखना, तो उस पर 50,000 रुपए से अधिक का जुर्माना लग सकता है। ऐसे जुर्माने निश्चित रूप से अपराधियों पर प्रभाव डालते हैं।

याचिका में यह भी कहा गया कि आपराधिक कानून के तहत जुर्माना बेहद कम हो गया है और 100 रुपए या 500 रुपए जैसे जुर्माने का कोई सार्थक प्रभाव नहीं पड़ता है।

याचिकाकर्ता संजय कुलश्रेष्ठ ने कहा कि जुर्माना इतना होना चाहिए कि यह अपराधियों या संभावित अपराधियों को गलत काम करने से रोक सके और जुर्माने के रूप में सजा उनके मन में डर पैदा करने में सक्षम हो।

पीड़ितों को मुआवजा देने के साधन के रूप में भी जुर्माना विफल हो रहा है। याचिका में एक उदाहरण का उल्लेख किया गया है, जहां ट्रायल कोर्ट ने एक छह साल की बलात्कार पीड़िता के लिए मुआवजे के रूप में केवल 5,000 रुपए का बेहद मामूली अतिरिक्त जुर्माना लगाया।

याचिका में कहा गया कि 100 रुपए, 200 रुपए, या 500 रुपए जैसे मामूली जुर्माने सरकार के न्यायिक व्यवस्था को बनाए रखने के प्रयासों में सार्थक योगदान नहीं देते।

याचिका में कहा गया है कि जुर्माने का उद्देश्य तभी पूरा होगा जब वह मापने योग्य हो, अन्यथा यह लक्ष्य निरर्थक हो जाता है।

सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर प्रकाशित कारण सूची के अनुसार, भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) बी.आर. गवई और जस्टिस के. विनोद चंद्रन की पीठ इस मामले की सुनवाई सोमवार (1 सितंबर) को करेगी।

--आईएएनएस

एफएम/

डिस्क्लेमरः यह आईएएनएस न्यूज फीड से सीधे पब्लिश हुई खबर है. इसके साथ न्यूज नेशन टीम ने किसी तरह की कोई एडिटिंग नहीं की है. ऐसे में संबंधित खबर को लेकर कोई भी जिम्मेदारी न्यूज एजेंसी की ही होगी.

Advertisment