वैक्सीन का ऑटिज्म से रिश्ता नहीं, पूर्वाग्रह और अंधविश्वास दावे को दे रहे हवा: विशेषज्ञ

वैक्सीन का ऑटिज्म से रिश्ता नहीं, पूर्वाग्रह और अंधविश्वास दावे को दे रहे हवा: विशेषज्ञ

वैक्सीन का ऑटिज्म से रिश्ता नहीं, पूर्वाग्रह और अंधविश्वास दावे को दे रहे हवा: विशेषज्ञ

author-image
IANS
New Update
Personal bias, blind belief driving vaccine-autism link, say experts

(source : IANS) ( Photo Credit : IANS)

नई दिल्ली, 29 अक्टूबर (आईएएनएस)। स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने बुधवार को कहा कि व्यक्तिगत पूर्वाग्रह और अंधविश्वास बार-बार इस दावे को हवा दे रहे हैं कि बचपन में लगने वाले टीके ऑटिज्म (एक न्यूरोलॉजिकल स्थिति) के खतरे को बढ़ा रहे हैं।

Advertisment

हाल ही में, अमेरिका स्थित मैक्कुलो फाउंडेशन ने अपनी एक रिपोर्ट खुद प्रकाशित की। जिसमें दावा किया गया कि टीकाकरण ऑटिज्म को बढ़ाने का सबसे महत्वपूर्ण कारक है।

यह रिपोर्ट, जिसकी समीक्षा नहीं की गई है, जोहो के संस्थापक श्रीधर वेम्बू सहित कई टीका-विरोधी कार्यकर्ताओं का ध्यान आकर्षित कर रही है।

कोच्चि स्थित इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के डॉ. राजीव जयदेवन ने आईएएनएस को बताया, ऐसे कई लोग हैं जो टीकाकरण-विरोधी रुख अपनाते हैं। हमने महामारी के शुरुआती दौर में उनके प्रचार के हानिकारक प्रभावों को देखा था - जब हजारों लोग सिर्फ इसलिए कोविड-19 से गंभीर रूप से मर गए क्योंकि वे टीका लगवाने से डरते थे।

उन्होंने आगे कहा, दुर्भाग्य से, कुछ हलकों में विज्ञान-विरोधी विचार प्रचलन में हैं - जो व्यक्तिगत पूर्वाग्रह, अंधविश्वास और षड्यंत्र के सिद्धांतों के प्रति आकर्षण से प्रेरित हैं।

किसी भी पत्रिका में प्रकाशित नहीं हुई यह रिपोर्ट बच्चों के लिए बढ़ते टीकाकरण कार्यक्रमों पर सवाल उठाती है - जो बीमारी और मृत्यु दर को रोकने के लिए जाने जाते हैं।

एम्स की बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. शेफाली गुलाटी ने आईएएनएस को बताया कि बचपन में टीकाकरण के जीवन रक्षक लाभों के स्पष्ट प्रमाणों के बावजूद, कोविड-19 के बाद के दौर में टीकाकरण में हिचकिचाहट एक गंभीर चुनौती बनी हुई है।

ऑटिज्म पत्रिका में प्रकाशित एक संपादकीय का हवाला देते हुए, गुलाटी ने कहा कि कोविड के बाद अमेरिका और यूरोप में खसरे का प्रकोप बढ़ा है।

गुलाटी ने कहा, इस हिचकिचाहट का एक प्रमुख कारण यह स्थायी मिथक है कि टीके ऑटिज्म का कारण बनते हैं, एक ऐसा सिद्धांत जिसका लंबे समय से खंडन किया जा चुका है, लेकिन यह सार्वजनिक चर्चा से गायब नहीं हुआ है।

टीका-विरोधी आंदोलन की शुरुआत 1998 में डॉ. एंड्रयू वेकफील्ड द्वारा द लैंसेट में प्रकाशित एक फर्जी शोधपत्र से हुई थी, जिसमें टीकों और ऑटिज्म के बीच संबंध का झूठा दावा किया गया था।

जयदेवन ने कहा, हालांकि उस शोधपत्र को वापस ले लिया गया था, लेकिन नुकसान पहले ही हो चुका था। कई लोग अब भी मानते हैं कि टीके ऑटिज्म का कारण बनते हैं, जबकि कई सुव्यवस्थित अध्ययनों में ऐसा कोई संबंध नहीं दिखाया गया है।

उन्होंने आईएएनएस को बताया, यह आश्चर्यजनक है कि वेकफील्ड को इस नई मैक्कुलो फाउंडेशन रिपोर्ट के लेखकों में शामिल किया गया है - जिसकी समीक्षा भी नहीं की गई और प्रकाशित कर दिया गया। यह केवल एक संकलन है जिसमें राय, कमजोर रिपोर्ट और वास्तविक अध्ययनों को इस तरह मिलाया गया है मानो वे एक ही वैज्ञानिक महत्व रखते हों। यह कोई मान्य शोध पद्धति नहीं है।

गौरतलब है कि इस तरह की गलत सूचना के प्रतिकूल परिणाम हो सकते हैं, जहां माता-पिता अपने बच्चों का टीकाकरण कराने से इनकार कर देते हैं, जिसके परिणामस्वरूप ऐसी घातक लेकिन टीकों से रोकी जा सकने वाली बीमारियां, जिन पर कभी विजय प्राप्त की जा चुकी थी, फिर से उभर आती हैं।

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार, वैश्विक टीकाकरण प्रयासों ने पिछले 50 वर्षों में लगभग 15.4 करोड़ लोगों की जान बचाई है, जिनमें से अधिकांश 1 वर्ष से कम के शिशु हैं।

गुलाटी ने हेल्थ केयर पेशेवरों से अपील की कि धैर्य और सही जानकारी दे टीकाकरण संबंधी हिचकिचाहट का मुकाबला करें, और गलत धारणाओं को दूर करने पर ध्यान दें।

--आईएएनएस

केआर/

डिस्क्लेमरः यह आईएएनएस न्यूज फीड से सीधे पब्लिश हुई खबर है. इसके साथ न्यूज नेशन टीम ने किसी तरह की कोई एडिटिंग नहीं की है. ऐसे में संबंधित खबर को लेकर कोई भी जिम्मेदारी न्यूज एजेंसी की ही होगी.

Advertisment