पाकिस्तानी सेना अपने ही 'भस्मासुर' से असहमत, रिपोर्ट में खुलासा

पाकिस्तानी सेना अपने ही 'भस्मासुर' से असहमत, रिपोर्ट में खुलासा

पाकिस्तानी सेना अपने ही 'भस्मासुर' से असहमत, रिपोर्ट में खुलासा

author-image
IANS
New Update
General Asim Munir's arrival as Army Chief opens next chapter in Pakistan

(source : IANS) ( Photo Credit : IANS)

इस्लामाबाद, 17 अक्टूबर (आईएएनएस)। पाकिस्तानी सेना, जो कभी देश की वैचारिक सीमाओं की रक्षक थी, अब उन्हीं कट्टरपंथी इस्लामी समूहों के साथ संघर्ष कर रही है, जिन्हें उसने बढ़ावा देकर भस्मासुर बनने में मदद की थी। शुक्रवार को सामने आई एक रिपोर्ट में यह बात कही गई।

Advertisment

इस रिपोर्ट में कहा गया है कि पाकिस्तान की रणनीति में आंतरिक विरोधाभास स्पष्ट हैं, जहां सेना के जनरल पश्चिम को संयम का उपदेश देते हैं और उग्रवाद पर अंकुश लगाने का वादा करते हैं, वहीं दूसरी ओर वे अपने देश में लोकतांत्रिक विरोध को दबाने के लिए धार्मिक राष्ट्रवाद का इस्तेमाल करते हैं।

ग्रीक सिटी टाइम्स की एक रिपोर्ट में बताया गया, तहरीक-ए-लब्बैक पाकिस्तान (टीएलपी) और अन्य इस्लामी समूहों के हाल में किए गए हिंसक विरोध प्रदर्शनों से पता चलता है कि देश अपने पश्चिम-प्रेमी शासकों और धार्मिक रूप से प्रेरित सड़क आंदोलनों के बीच कितना गहराई से बंट गया है। फील्ड मार्शल असीम मुनीर के नेतृत्व में पाकिस्तान का सैन्य प्रतिष्ठान, वाशिंगटन के साथ संबंधों को फिर से सुधारने और इजरायल-गाजा शांति प्रक्रिया का चुपचाप समर्थन करने की कोशिश में अपने ही वैचारिक सहयोगियों, दक्षिणपंथी इस्लामी गुटों को विश्वास में लेने में विफल रहा है। इसका परिणाम घातक अशांति, सामूहिक गिरफ्तारियां और सड़कों पर खुला विद्रोह है।

रिपोर्ट में आगे कहा गया है, सबसे हालिया विरोध प्रदर्शन सितंबर के अंत और अक्टूबर 2025 की शुरुआत में भड़के, जब टीएलपी कार्यकर्ताओं की लाहौर, कराची और रावलपिंडी में पुलिस के साथ झड़प हुई। यह खबर सामने आई कि इस्लामाबाद ने इजरायल-गाजा स्थिति को सामान्य बनाने के उद्देश्य से पश्चिम समर्थित वार्ता का चुपचाप समर्थन करने पर सहमति जताई है।

रिपोर्ट में जोर देते हुए कहा गया है कि हजारों टीएलपी समर्थक पाकिस्तान भर के शहरों में सड़कों पर उतर आए, सेना के खिलाफ नारे लगाए और जनरलों पर डॉलर के लिए इस्लाम को बेचने का आरोप लगाया।

रिपोर्ट के अनुसार, विरोध प्रदर्शन हिंसक हो गए। पुलिस ने भीड़ को तितर-बितर करने के लिए आंसू गैस, रबर की गोलियों और फायरिंग तक का सहारा लिया। मानवाधिकार समूहों और स्थानीय मीडिया रिपोर्टों का हवाला देते हुए, रिपोर्ट में कहा गया है कि कई लोग मारे गए और दर्जनों घायल हुए, जिनमें युवा टीएलपी कार्यकर्ता भी शामिल थे।

रिपोर्ट में कहा गया है, इस गुस्से की जड़ यह धारणा है कि पाकिस्तान के सैन्य प्रतिष्ठान ने स्वार्थ के लिए अपनी वैचारिक प्रतिबद्धताओं को त्याग दिया है। वही सेना जो कभी धार्मिक मुद्दों पर समर्थन जुटाने के लिए टीएलपी और अन्य बरेलवी या देवबंदी संगठनों जैसे इस्लामी आंदोलनों का इस्तेमाल करती थी, अब जब वे उसकी नीतिगत दिशा को चुनौती देते हैं, तो उन्हें दुश्मन मान लेती है।

इसमें कहा गया है, वर्षों तक, टीएलपी सेना के लिए एक सुविधाजनक दबाव वाल्व के रूप में काम करती रही, जिसका इस्तेमाल उदारवादी और लोकतांत्रिक आंदोलनों का मुकाबला करने और राजनीतिक परिदृश्य पर नियंत्रण बनाए रखने के लिए किया जाता था। लेकिन आज, जब जनरल पश्चिमी अनुमोदन और आर्थिक सहायता चाहते हैं, तो टीएलपी बेकार हो गई है।

रिपोर्ट में जोर दिया गया है कि नियंत्रण बनाए रखने के लिए पाकिस्तानी सेना के बढ़ते दमन से धार्मिक और राजनीतिक समूहों के विरोध-प्रदर्शन तेज होने की संभावना है। घरेलू असंतोष को दबाते हुए पश्चिम के साथ जुड़ने की उसकी कोशिशें ध्रुवीकरण को और गहरा करेंगी, और पाकिस्तान, जो चरमपंथ का निर्यात करता था, अब इससे जूझ रहा है।

रिपोर्ट में जोर देकर कहा गया है, पाकिस्तानी जनरलों को भले ही लगता हो कि वे इस तूफान को ताकत के बल पर संभाल सकते हैं, लेकिन इतिहास कुछ और ही कहता है। पाकिस्तान एक नए और खतरनाक दौर में प्रवेश कर रहा है, जहां सत्ता और विदेशी समर्थन के प्रति उसके शासकों का जुनून आखिरकार उस नाज़ुक संतुलन को बिगाड़ सकता है, जिसने देश को टूटने से बचाया है।

--आईएएनएस

एबीएम/डीएससी

डिस्क्लेमरः यह आईएएनएस न्यूज फीड से सीधे पब्लिश हुई खबर है. इसके साथ न्यूज नेशन टीम ने किसी तरह की कोई एडिटिंग नहीं की है. ऐसे में संबंधित खबर को लेकर कोई भी जिम्मेदारी न्यूज एजेंसी की ही होगी.

Advertisment