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(source : IANS) ( Photo Credit : IANS)
इस्लामाबाद, 7 दिसंबर (आईएएनएस)। पाकिस्तान में 26वें और 27वें संवैधानिक संशोधन का सबसे ज्यादा विरोध न्यायिक व्यवस्था से जुड़े लोग कर रहे हैं। कई जज इस्तीफा दे चुके हैं, तो वकील सड़क पर इसकी पुरजोर मुखालफत कर रहे हैं। वकीलों का तर्क है कि ये नए संशोधन न्यायपालिका की आजादी पर सीधा प्रहार हैं।
स्थानीय मीडिया के अनुसार, लाहौर हाई कोर्ट बार एसोसिएशन (एलएचसीबीए) और लाहौर बार एसोसिएशन (एलबीए) की ओर से आयोजित इस सम्मेलन के दौरान एक प्रस्ताव पास किया गया, जिसमें कई मांगें रखने के साथ ही इन कानूनों में मौजूद खामियां गिनाई गईं।
पाकिस्तानी अखबार डॉन की रिपोर्ट के मुताबिक, प्रस्ताव की शुरुआत बदलावों को खारिज करने से हुई। कहा गया कि इन बदलावों ने संविधान को नुकसान पहुंचाया है और पाकिस्तान की न्यायिक व्यवस्था को चौपट कर दिया है। इसमें संघीय संवैधानिक अदालत (एफसीसी) की स्थापना को भी गलत बताया गया, इसे गैर-संवैधानिक कोर्ट और न्याय की हत्या करार दिया गया।
इस प्रस्ताव में लापता लोगों को वापस लाने और पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) के संस्थापक इमरान खान, पीटीआई नेता शाह महमूद कुरैशी और यास्मीन राशिद, बलूच एक्टिविस्ट महरंग बलूच और दूसरे नेताओं की रिहाई की मांग की गई, जिन्हें वकीलों के मुताबिक झूठे केस में गिरफ्तार किया गया है। इसमें कहा गया कि इन नेताओं को हिरासत में लेना जीवन, स्वतंत्रता, बराबरी, निष्पक्ष सुनवाई और उचित प्रक्रिया जैसे मूलभूत अधिकारों का उल्लंघन है।
28 नवंबर को ही यूएन मानवाधिकार के उच्चायुक्त वोल्कर टर्क ने पाकिस्तान के नए संवैधानिक संशोधनों को लेकर गंभीर बताया था।
चेतावनी दी थी कि ये शक्तियों के बंटवारे के नियम विरुद्ध है, जो कानून के राज को मजबूती देता है और देश में मानवाधिकारों की सुरक्षा करता है।
13 नवंबर को अपनाए गए बदलावों के मुताबिक, एक नए फेडरल कॉन्स्टिट्यूशनल कोर्ट (एफसीसी) को संवैधानिक मामलों पर अधिकार दिए गए हैं, जो सुप्रीम कोर्ट के पिछले अधिकार की जगह लेगा। वहीं सर्वोच्च न्यायालय अब सिर्फ दीवानी और आपराधिक मामलों को देखेगा।
टर्क ने इन्हीं बदलावों को लेकर कहा, इन बदलावों से न्यायिक व्यवस्था में राजनीतिक दखल और कार्यकारी नियंत्रण के अधीन होने का खतरा है। न तो कार्यपालिका और न ही विधायिका के पास न्यायपालिका को नियंत्रित या निर्देश देने की स्थिति में होना चाहिए, और न्यायपालिका को अपने फैसले लेने में किसी भी तरह के राजनीतिक असर से बचाया जाना चाहिए।
उन्होंने आगे कहा, न्यायिक स्वतंत्रता का एक मुख्य तरीका है कि कोई भी न्यायाधिकरण सरकार के राजनीतिक दखल से बचा रहे। अगर न्यायाधीश स्वतंत्र नहीं होते, तो अनुभव बताता है कि वे सियासी दबाव के सामने कानून को समान रूप से लागू करने और मानवाधिकार की रक्षा करने में संघर्ष करते हैं।
पाकिस्तानी राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी ने 13 नवंबर को संसद के दोनों सदनों से मंजूरी मिलने के बाद 27वें संवैधानिक संशोधन बिल पर हस्ताक्षर किए थे। उनकी मंजूरी के साथ, यह बिल अब पाकिस्तान के संविधान का हिस्सा बन गया है। बयान के मुताबिक, यह बदलाव राष्ट्रपति, फील्ड मार्शल, एयर फोर्स के मार्शल और फ्लीट के एडमिरल को आपराधिक मामलों और गिरफ्तारी से जिंदगी भर की इम्युनिटी (छूट) देता है।
टर्क ने कहा, इस तरह की बड़ी छूट जवाबदेही को कमजोर करती है, जो मानवाधिकार ढांचे और शासन में सशस्त्र बलों के लोकतांत्रिक नियंत्रण का प्रमुख आधार है। मुझे फिक्र इस बात की है कि ये संशोधन लोकतंत्र और कानून के शासन के उन सिद्धांतों पर दूरगामी प्रभाव डाल सकते हैं जिन्हें पाकिस्तान के लोग अत्यंत महत्व देते हैं।
--आईएएनएस
केआर/
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