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(source : IANS) ( Photo Credit : IANS)
नई दिल्ली, 10 दिसंबर (आईएएनएस)। एक नए अध्ययन के अनुसार, भारत में घर पर लिए जाने वाले प्रोटीन का लगभग आधा (करीब 50) हिस्सा चावल, गेहूं, सूजी और मैदा जैसे अनाजों से आ रहा है। ये ट्रेंड पोषण की गुणवत्ता पर असर डाल रहा है।
काउंसिल ऑन एनर्जी, एनवायरनमेंट एंड वॉटर (सीईईडब्ल्यू) द्वारा जारी इस रिपोर्ट में कहा गया है कि पोषण की गुणवत्ता पर इसलिए असर पड़ रहा है क्योंकि अनाज में प्रोटीन बेहद कम होती है। औसतन, भारतीय घरों में प्रोटीन की खपत 55.6 ग्राम प्रतिदिन है, लेकिन इसका बड़ा हिस्सा अनाजों पर निर्भर है।
स्टडी में यह भी पाया गया कि सब्जियों, फलों और दालों की खपत कम हो रही है जबकि तेल, नमक और चीनी का ज्यादा प्रयोग किया जा रहा है।
सीईईडब्ल्यू के शोधकर्ता अपूर्व खंडेलवाल ने कहा, “यह अध्ययन भारत की खाद्य प्रणाली के एक मूक संकट (साइलेंट क्राइसिस) का संकेत देती है: लो-क्वालिटी प्रोटीन्स पर ज्यादा भरोसा, अनाज और तेल से अतिरिक्त कैलोरी, और पोषक तत्वों से भरपूर खाद्य पदार्थों की कम खपत। फोर्क से फार्म तक विविधता को राष्ट्रीय स्तर पर प्राथमिकता दी जानी चाहिए।”
उन्होंने आगे कहा, “एक हफ्ते में, सबसे गरीब तबके का एक व्यक्ति सिर्फ 2-3 गिलास दूध पी रहा है और फल महज दो केलों के बराबर खा रहा है, जबकि सबसे अमीर तबके के लोग 8-9 गिलास और 8-10 केले खाते हैं। खपत में ये अंतर बड़ी असमानताओं को दिखाते हैं।
यह स्टडी लेटेस्ट 2023-24 एनएसएसओ हाउसहोल्ड कंजम्पशन एक्सपेंडिचर सर्वे (एचसीईएस) के डेटा पर आधारित है।
इससे पता चला कि भारतीयों का आहार अभी भी अनाज और खाना पकाने के तेल की तरफ बहुत ज्यादा झुका हुआ है, और दोनों ही पोषण में बड़ा असंतुलन पैदा करते हैं।
लगभग तीन-चौथाई कार्बोहाइड्रेट अनाज से आता है, और प्रत्यक्ष अनाज का इनटेक आरडीए से 1.5 गुना बना हुआ है, जिसे कम खर्च वाले इलाकों में पीडीएस के जरिए सब्सिडी वाले चावल और गेहूं की बड़े पैमाने पर उपलब्धता से और मजबूती मिलती है।
खास तौर पर, ज्वार, बाजरा और रागी जैसे मोटे अनाजों में घर पर सबसे ज्यादा गिरावट देखी गई है (एक दशक में प्रति व्यक्ति खपत में लगभग 40 फीसदी की गिरावट), जिसके चलते भारतीयों के लिए अनुशंसित आहार का मुश्किल से 15 फीसदी ही पूरा हो पा रहा है।
स्टडी में बताया गया, “पिछले दस सालों में, बताए गए फैट खपत से 1.5 गुना ज्यादा फैट लेने वाले परिवारों का हिस्सा दोगुना से ज्यादा हो गया है, जिसमें अधिक आय वाले परिवार कम आय वालों के मुकाबले लगभग दोगुना फैट लेते हैं।”
स्टडी में बड़े पब्लिक फूड प्रोग्राम (जिसमें पीडीएस, पीएम पोषण, और सक्षम आंगनवाड़ी और पोषण 2.0 शामिल हैं) में सुधार लाने की सलाह दी गई है ताकि इनमें सामान्य तौर पर दिए जाने वाले अनाज से इतर मोटे अनाज, दालें, दूध, अंडे, फल और सब्जियां शामिल की जाएं।
--आईएएनएस
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