सिंगल यूज प्लास्टिक से शरीर को होने वाले नुकसान के मिले सबूत

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सिंगल यूज प्लास्टिक से शरीर को होने वाले नुकसान के मिले सबूत

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IANS
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Indian study finds 1st evidence on how nanoplastics from single-use PET bottles harm body

(source : IANS) ( Photo Credit : IANS)

नई दिल्ली, 4 दिसंबर (आईएएनएस)। साइंस एंड टेक्नोलॉजी डिपार्टमेंट (डीएसटी) के मोहाली स्थित स्वायत्त संस्थान, नैनो साइंस एंड टेक्नोलॉजी इंस्टीट्यूट (आईएनएसटी) ने सिंगल-यूज पेट बोतलों से शरीर को होने वाले नुकसान पर शोध किया है। इस रिसर्च के मुताबिक इन प्लास्टिक बोतलों में मौजूद नैनोप्लास्टिक्स हमारे बायोलॉजिकल सिस्टम पर सीधा वार करते हैं। डीएसटी ने इसकी जानकारी गुरुवार को दी।

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खाने-पीने के सामानों में पाए जाने वाले नैनोप्लास्टिक दुनिया भर में चिंता का विषय हैं और हाल के दिनों में मानव शरीर में इनकी मौजूदगी के कई प्रमाण मिले हैं, लेकिन इनके सही असर के बारे में अभी भी ठीक से पता नहीं चल पाया है।

पिछले कुछ अध्ययनों में इस बात पर ध्यान दिया गया था कि प्लास्टिक कैसे पर्यावरण को प्रदूषित करते हैं या होस्ट टिशू को नुकसान पहुंचाते हैं, लेकिन इंसानी सेहत के लिए फायदेमंद गट माइक्रोब्स पर इनके सीधे असर के बारे में लगभग कुछ भी पता नहीं था।

आईएनएसटी में केमिकल बायोलॉजी यूनिट के प्रशांत शर्मा और साक्षी डागरिया की टीम को मानव शरीर पर इसके गंभीर असर का पहला साफ सबूत मिला।

शोधार्थियों ने पाया कि लंबे समय तक इसके संपर्क में रहने से बैक्टीरियल ग्रोथ, कॉलोनाइजेशन (मानव शरीर के भीतर बैक्टीरिया को स्थापित करने और बढ़ने की प्रक्रिया), और बचाव के काम कम हो गए, जबकि स्ट्रेस रिस्पॉन्स और एंटीबायोटिक्स के प्रति सेंसिटिविटी बढ़ गई।

रिसर्चर्स ने नैनोस्केल एडवांसेज जर्नल में छपे पेपर में कहा, कुल मिलाकर, नतीजे बताते हैं कि रोजाना इस्तेमाल होने वाले प्लास्टिक से बने नैनो-प्लास्टिक बायोलॉजिकली एक्टिव पार्टिकल हैं जो गट (आंत) हेल्थ, ब्लड स्टेबिलिटी (रक्त के प्रवाह या उसके घटक के संतुलन से), और सेलुलर फंक्शन में रुकावट डाल सकते हैं।

टीम ने लैब में पेट बोतलों से नैनो-प्लास्टिक को फिर से बनाया और तीन खास बायोलॉजिकल मॉडल पर उनका टेस्ट किया।

नैनोप्लास्टिक माइक्रोबायोम पर कैसे असर डालते हैं, यह देखने के लिए एक फायदेमंद गट बैक्टीरिया, लैक्टोबैसिलस रैम्नोसस, का इस्तेमाल किया गया।

ज्यादा कंसंट्रेशन (सांद्रता) में, नैनोप्लास्टिक रेड ब्लड सेल मेम्ब्रेन (झिल्ली) को खराब करते और सेल्स को समय से पहले खत्म करते हुए पाए गए।

इसके अलावा, टीम ने यह भी पाया कि लंबे समय तक अगर ये शरीर में रहे तो डीएनए को नुकसान पहुंचा है, ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस (शरीर में मुक्त कणों (फ्री रेडिकल्स) और एंटीऑक्सीडेंट के बीच असंतुलन), एपोप्टोसिस (कोशिकाएं खुद को नष्ट कर लेती हैं) और इंफ्लेमेटरी सिग्नलिंग (एक जटिल आणविक प्रक्रिया जिसमें शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली संक्रमण, चोट या क्षतिग्रस्त कोशिकाओं के जवाब में सूजन पैदा करने के लिए संकेतों का उपयोग करती है) के साथ-साथ एनर्जी और न्यूट्रिएंट मेटाबॉलिज्म (एक जैव-रासायनिक प्रक्रिया जो शरीर में आहार से प्राप्त पोषक तत्वों को ऊर्जा में परिवर्तित करने और उन्हें संग्रहीत करने के लिए उपयोग करती है) में भी बदलाव होता है।

शोधार्थियों ने कहा, नैनोपार्टिकल्स लंबे समय तक एक्सपोजर के दौरान ह्यूमन एपिथेलियल सेल्स में डीएनए डैमेज, ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस और इंफ्लेमेटरी रिस्पॉन्स पैदा करते हैं, जिससे ह्यूमन हेल्थ के लिए ऐसे रिस्क पैदा होते हैं जिनके बारे में पहले पता नहीं था।

उन्होंने बताया कि ह्यूमन हेल्थ के अलावा, इन जानकारियों को एग्रीकल्चर, न्यूट्रिशन और इकोसिस्टम स्टडीज तक बढ़ाया जा सकता है, जहां माइक्रोबियल बैलेंस और प्लास्टिक पॉल्यूशन एक-दूसरे से मिलते हैं।

--आईएएनएस

केआर/

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