नई दिल्ली, 3 जून (आईएएनएस)। उद्योग विशेषज्ञों ने कहा कि भारत को कार्बन उत्सर्जन में 1 बिलियन टन की भारी कटौती करने में मदद करने के लिए ईवी इंडस्ट्री में 2030 तक 2,00,000 प्रोफेशनल के शामिल होने की उम्मीद है।
नई ईवी नीति की घोषणा भारत के ग्रीन मोबिलिटी लक्ष्यों को तेजी से आगे बढ़ाने में एक महत्वपूर्ण कदम है।
एनएलबी सर्विसेज के सीईओ सचिन अलग ने कहा, लोकल मैन्युफैक्चरिंग कमिटमेंट के साथ आयात शुल्क रियायतों को जोड़कर सरकार मेक इन इंडिया पर जोर देते हुए, ग्लोबल ईवी प्लेयर्स को संदेश भेज रही है कि भारत निवेश का स्वागत करता है।
यह रणनीतिक दृष्टिकोण न केवल विदेशी भागीदारी को प्रोत्साहित करता है बल्कि घरेलू इकोसिस्टम को भी मजबूत करता है, जिससे रोजगार सृजन और तकनीकी उन्नति का मार्ग प्रशस्त होता है।
उन्होंने कहा, भारत को कार्बन उत्सर्जन में 1 बिलियन टन की भारी कटौती करने में मदद करने के लिए, ईवी इंडस्ट्री में 2030 तक 2,00,000 प्रोफेशनल के वर्कफोर्स में शामिल होने की उम्मीद है। जैसे-जैसे इस क्षेत्र का विस्तार होगा, हमें ईवी सॉफ्टवेयर प्रबंधन, एम्बेडेड इलेक्ट्रॉनिक्स, यूआई/यूएक्स डिजाइनर, आयनिक डेवलपर्स आदि में भूमिकाओं की मांग में शानदार वृद्धि की उम्मीद है।
सरकार ने सोमवार को इलेक्ट्रिक कार सेगमेंट में ग्लोबल मैन्युफैक्चरर्स से नए निवेश को आकर्षित करने और भारत को ई-वाहनों के लिए ग्लोबल मैन्युफैक्चरिंग हब के रूप में बढ़ावा देने के लिए अपनी दूरदर्शी योजना के लिए दिशा-निर्देश अधिसूचित किए।
इस स्कीम के तहत कंपनियों को आवेदन स्वीकृत होने की तारीख से 5 वर्ष की अवधि के लिए 15 प्रतिशत की कम सीमा शुल्क पर न्यूनतम 35,000 डॉलर के सीआईएफ (कॉस्ट इंश्योरेंस और फ्रेट वैल्यू) के साथ इलेक्ट्रिक चार पहिया वाहनों की पूरी तरह से निर्मित इकाइयों (सीबीयू) का आयात करने की अनुमति दी जाएगी।
इस कदम के साथ सरकार का उद्देश्य अमेरिकी टेक दिग्गज टेस्ला जैसे ग्लोबल मैन्युफैक्चरर को योजना के तहत निवेश करने के लिए प्रोत्साहित करना है।
स्वीकृत आवेदकों को योजना के प्रावधानों के अनुरूप न्यूनतम 4,150 करोड़ रुपए का निवेश करना होगा।
कम शुल्क दर पर आयात की जाने वाली ई-4डब्ल्यू की अधिकतम संख्या प्रति वर्ष 8,000 इकाई तक सीमित होगी। साथ हीं अप्रयुक्त वार्षिक आयात सीमा को आगे ले जाने की अनुमति होगी।
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