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(source : IANS) ( Photo Credit : IANS)
नई दिल्ली, 6 अक्टूबर (आईएएनएस)। विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने सोमवार को कहा कि पूरे उपमहाद्वीप के लिए किसी भी संकट में भारत को ही विकल्प के रूप में चुना जाना चाहिए। उन्होंने उभरते वैश्विक परिदृश्य की चुनौतियों, इसके रणनीतिक निहितार्थों और अपने राष्ट्रीय हितों को आगे बढ़ाने के लिए नई दिल्ली के दृष्टिकोण के बारे में बात की।
विदेश मंत्री ने नई दिल्ली स्थित जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) में अंतरराष्ट्रीय अध्ययन विद्यालय (एसआईएस) के 70 वर्ष पूरे होने के अवसर पर आयोजित अरावली शिखर सम्मेलन 2025 के उद्घाटन समारोह को संबोधित करते हुए कहा, आगे की ओर देखते हुए भी अतीत के सबक को समझना जरूरी है।
जयशंकर ने कहा, शायद इनमें से सबसे स्पष्ट सबक यथार्थवाद और राष्ट्रीय क्षमताओं का महत्व है। आजादी के बाद के शुरुआती दशकों में दोनों को कम करके आंका गया, जिसकी कीमत और परिणाम हम सभी अच्छी तरह जानते हैं। पड़ोसियों के प्रति हमारी सद्भावना यह मानकर नहीं चल सकती कि वे भी उसी भावना का प्रतिदान करेंगे। भू-भाग के महत्व और उसके रणनीतिक निहितार्थों को कभी भी हल्के में नहीं लिया जाना चाहिए। हमारी सीमाओं की रक्षा के लिए आवश्यक बुनियादी ढांचे की आवश्यकता है, न कि केवल आशय की घोषणाओं की। यदि राष्ट्रों के स्थायी हित हैं, तो वैश्विक बदलावों के अनुसार नीतियों को समायोजित करना एक आवश्यकता के रूप में स्वीकार किया जाना चाहिए। पिछले दशक में नीति निर्माण में इन सीखों को ध्यान में रखा गया है।
इसी अवधि में देश में हुए बदलावों के 10 विशिष्ट आयामों पर प्रकाश डालते हुए, विदेश मंत्री ने कहा कि संबंधों को निरंतर रूप से संवर्धित करने की आवश्यकता है, न कि उन्हें कभी-कभार संबोधित करने की।
उन्होंने कहा, यही कारण है कि हम उपमहाद्वीप के भीतर और खाड़ी, आसियान, मध्य एशिया तथा प्रमुख शक्तियों के साथ अधिक गहन और अधिक उच्च-स्तरीय कूटनीति देख रहे हैं। कुछ द्विपक्षीय यात्राएं तो दशकों के अंतराल के बाद हुई हैं।
उन्होंने आगे कहा, अपने क्षेत्र में, यदि हमें राजनीतिक अस्थिरता से बचना है, तो हमें सहयोग के लिए बुनियादी ढांचे का स्वयं समर्थन करना होगा। यही पड़ोसी प्रथम नीति का सार है। पूरे उपमहाद्वीप के किसी भी संकट में भारत ही एकमात्र विकल्प होना चाहिए।
सरकार के सागर और महासागर दृष्टिकोण पर प्रकाश डालते हुए, मंत्री ने कहा कि भारत के हितों और चिंताओं के समुद्री पहलुओं को कम करके नहीं आंका जाना चाहिए।
उन्होंने कहा, विभाजन के परिणामस्वरूप भारत की रणनीतिक कमी को दूर करना होगा और यह विस्तारित पड़ोसियों तक पहुंच बनाकर किया जाना चाहिए। एक्ट ईस्ट, लिंक वेस्ट, सी5+1 और फोकस अफ्रीका पहलों को इसी में समझा जा सकता है। प्रमुख शक्तियों के बीच अपनी स्थिति को बेहतर बनाने के साथ-साथ, विकासशील देशों के निर्वाचन क्षेत्र को भी निरंतर विकसित किया जाना चाहिए। इसलिए, भारत ने वॉयस ऑफ द ग्लोबल साउथ शिखर सम्मेलन का प्रस्ताव रखा और वैक्सीन मैत्री पहल शुरू की।
विदेश मंत्री जयशंकर ने जोर देकर कहा कि जैसे-जैसे भारत की अर्थव्यवस्था बढ़ेगी, उसकी जिम्मेदारियां और दुनिया की भारत से अपेक्षाएं भी बढ़ेंगी।
उन्होंने कहा, यही कारण है कि हम आज विभिन्न महाद्वीपों के 78 देशों में परियोजनाओं के साथ एक नियमित फर्स्ट रिस्पॉडर और एक विश्वसनीय विकास भागीदार के रूप में उभरे हैं। यह स्वीकार करते हुए कि हमने कई देशों के साथ मजबूत साझेदारियां बनाई हैं, किसी को भी विशिष्ट बनाए बिना, सहयोग बढ़ाने का हमारा पसंदीदा तरीका एजेंडा-आधारित मंचों के माध्यम से है और रहेगा। उन्होंने कहा कि कनेक्टिविटी की पुनर्रचना बहुत महत्वपूर्ण बनी हुई है।
जयशंकर ने कहा, विभिन्न दिशाओं में जुड़ाव के माध्यम से हमारे विकल्पों को बढ़ाने का काम प्रगति पर है। हम इसे आईएमईसी, उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारा, त्रिपक्षीय राजमार्ग, ध्रुवीय मार्गों आदि में देख सकते हैं। किसी राष्ट्र की छवि उसके विचारों की शक्ति से भी आंकी जाती है। हाल के वर्षों में, हमने अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन, आपदा रोधी अवसंरचना गठबंधन, वैश्विक जैव-ईंधन गठबंधन, अंतर्राष्ट्रीय बिग कैट गठबंधन आदि की पहल की है या योग और स्वास्थ्य, बाजरा और पोषण या स्थायी जीवन शैली को वैश्विक स्तर पर बढ़ावा दिया है। आज एक सूर्य, एक विश्व, एक ग्रिड जैसा जो महत्वाकांक्षी लग सकता है, वह वास्तव में बहुत दूर नहीं है।
--आईएएनएस
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