हिंदू राष्ट्र का सत्ता से कोई लेना-देना नहीं, इसका मतलब सभी के लिए न्याय है : मोहन भागवत

हिंदू राष्ट्र का सत्ता से कोई लेना-देना नहीं, इसका मतलब सभी के लिए न्याय है : मोहन भागवत

हिंदू राष्ट्र का सत्ता से कोई लेना-देना नहीं, इसका मतलब सभी के लिए न्याय है : मोहन भागवत

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IANS
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‘Hindu Rashtra has nothing to do with power, it’s about justice for all’: Mohan Bhagwat

(source : IANS) ( Photo Credit : IANS)

नई दिल्ली, 26 अगस्त (आईएएनएस)। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के शताब्दी वर्ष के अवसर पर मंगलवार को विज्ञान भवन, दिल्ली में आयोजित व्याख्यान श्रृंखला संघ की 100 वर्षों की यात्रा: नए क्षितिज के उद्घाटन सत्र को सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने संबोधित किया।

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उन्होंने अपने विस्तृत भाषण में संघ की विचारधारा, उद्देश्यों और उसकी वैश्विक भूमिका पर प्रकाश डाला।

डॉ. भागवत ने कहा कि हिंदू राष्ट्र की अवधारणा को अक्सर राजनीतिक सत्ता या शासन से जोड़ा जाता है, जो पूरी तरह गलत व्याख्या है।

उन्होंने स्पष्ट किया, जब हम हिंदू राष्ट्र कहते हैं, तो कुछ लोग भ्रमित हो जाते हैं। अंग्रेजी में राष्ट्र का अर्थ नेशन होता है, जो पश्चिमी विचारधारा से जुड़ा है और उसमें स्टेट का जोड़ होता है। भारत का राष्ट्रभाव तो हजारों वर्षों से अस्तित्व में है, वह इस बात पर निर्भर नहीं करता कि सत्ता में कौन है।

उन्होंने आगे कहा, हिंदू राष्ट्र का मतलब है, सभी के लिए न्याय, बिना किसी भेदभाव के।

उन्होंने कहा, हमारे यहां पिछले 40,000 वर्षों से डीएनए एक जैसा है। हिंदवी, भारतीय, और सनातन ये केवल शब्द नहीं, हमारी सभ्यता की पहचान हैं।

उन्होंने संघ के संस्थापक डॉ. केबी हेडगेवार को याद करते हुए कहा, डॉ. साहब ने संघ की कल्पना 1925 से पहले ही कर ली थी। उनका उद्देश्य था कि पूरे हिंदू समाज का संगठन हो। उन्होंने हमेशा यह माना कि जो स्वयं को हिंदू मानता है, वह देश का जिम्मेदार नागरिक भी होना चाहिए। यही हमारी सनातन पहचान से जुड़ी जिम्मेदारी है।

संघ की कार्यशैली पर बात करते हुए सरसंघचालक ने कहा, संघ ने कभी किसी से धन की याचना नहीं की। हमने कभी किसी की संपत्ति में हाथ नहीं डाला और जब विरोध हुआ, तब भी संघ ने शत्रुता नहीं दिखाई। संघ स्वावलंबी रहा है और सेवा भावना से काम करता रहा है।

डॉ. भागवत ने भारत के वैश्विक योगदान की बात करते हुए कहा, संघ की भावना उसकी प्रार्थना की अंतिम पंक्ति में है। भारत माता की जय। हमारा मिशन है भारत को दुनिया में अग्रणी स्थान दिलाना, लेकिन स्वार्थ के लिए नहीं। विश्व में शांति और समरसता फैलाने के लिए।

उन्होंने स्वामी विवेकानंद को उद्धृत करते हुए कहा, प्रत्येक राष्ट्र का एक उद्देश्य होता है, और भारत का उद्देश्य है विश्वगुरु बनना।

उन्होंने कहा, हमारे यहां एकता का अर्थ समानता नहीं है। हमारी संस्कृति विविधता में एकता को सिखाती है। समाज के हर वर्ग को जोड़ना, संगठित करना संघ का काम है।

--आईएएनएस

वीकेयू/एबीएम

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