नई दिल्ली, 22 मई (आईएएनएस)। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के महानिदेशक डॉ. टेड्रोस एडनॉम घेब्रेयेसस ने महामारी से निपटने के लिए किए गए महत्वपूर्ण और ऐतिहासिक समझौते के प्रति भारत की प्रतिबद्धता और समर्थन के लिए देश को धन्यवाद कहा है।
इस सप्ताह जिनेवा में तीन साल की बातचीत के बाद 78वीं वर्ल्ड हेल्थ असेंबली (डब्ल्यूएचए) में डब्ल्यूएचओ के सदस्य देशों ने सर्वसम्मति से इस समझौते को अपनाया।
भारत भी इस संधि का एक हस्ताक्षरकर्ता है, जिस पर कोविड-19 प्रकोप के बाद से ही बातचीत चल रही है। इस संधि का उद्देश्य भविष्य में महामारी की स्थिति में वैश्विक स्वास्थ्य सेवा के अंतराल और असमानताओं को पाटना है।
डब्ल्यूएचओ प्रमुख ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर एक पोस्ट में कहा, महामारी समझौते को अपनाए जाने के अवसर पर ऐतिहासिक 78वें डब्ल्यूएचए में वर्चुअल रूप से हमारे साथ जुड़ने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को नमस्ते। हम डब्ल्यूएचओ के प्रति भारत की प्रतिबद्धता और समर्थन के लिए आभारी हैं।
वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से डब्ल्यूएचए को संबोधित करते हुए पीएम मोदी ने कहा कि डब्ल्यूएचओ महामारी संधि एक साझा प्रतिबद्धता है, जिसके लिए अधिक वैश्विक सहयोग की जरूरत है।
पीएम मोदी ने संधि की सफल वार्ता पर बधाई देते हुए कहा, डब्ल्यूएचओ महामारी संधि अधिक वैश्विक सहयोग के माध्यम से भविष्य की महामारियों से लड़ने के लिए एक साझा प्रतिबद्धता है।
उन्होंने दुनिया, विशेष रूप से ग्लोबल साउथ के साथ अपने अनुभवों और सर्वोत्तम प्रथाओं को साझा करने की भारत की इच्छा भी व्यक्त की।
प्रधानमंत्री ने एक स्वस्थ ग्रह के निर्माण के महत्व पर जोर दिया, साथ ही यह सुनिश्चित किया कि कोई भी पीछे न छूटे।
उन्होंने कहा, एक स्वस्थ दुनिया का भविष्य इंक्लूजन, एक इंटीग्रेटेड विजन और सहयोग पर निर्भर करता है।
इस बीच, डब्ल्यूएचए में भारतीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व करने वाली केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव पुण्य सलिला श्रीवास्तव ने भी महामारी संधि को आगे बढ़ाने की दिशा में की गई ऐतिहासिक प्रगति पर डब्ल्यूएचए और सदस्य देशों को बधाई दी।
श्रीवास्तव ने भविष्य की स्वास्थ्य चुनौतियों का सामना करने के महत्व पर जोर दिया और यह सुनिश्चित करने की प्रतिबद्धता जताई कि कोई भी पीछे न छूटे।
उन्होंने कहा, महामारी समझौते में चिकित्सा उपायों तक समान पहुंच, समय पर और पारदर्शी डेटा साझाकरण सुनिश्चित किया जाना चाहिए और विशेष रूप से ग्लोबल साउथ के लिए टेक्नोलॉजी साझाकरण और क्षमता निर्माण को बढ़ावा देना चाहिए।
--आईएएनएस
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