भोजन से लेकर मानसिक स्वास्थ्य तक, शुभांशु शुक्ला ने छात्रों के साथ शेयर की स्पेस की लाइफस्टाइल

भोजन से लेकर मानसिक स्वास्थ्य तक, शुभांशु शुक्ला ने छात्रों के साथ शेयर की स्पेस की लाइफस्टाइल

भोजन से लेकर मानसिक स्वास्थ्य तक, शुभांशु शुक्ला ने छात्रों के साथ शेयर की स्पेस की लाइफस्टाइल

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IANS
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From food to mental health, Shubhanshu Shukla reveals life in space with students

(source : IANS) ( Photo Credit : IANS)

नई दिल्ली, 4 जुलाई (आईएएनएस)। अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (आईएसएस) पर जाने वाले पहले भारतीय शुभांशु शुक्ला ने गुरुवार को भारतीय छात्रों के साथ कुछ दिलचस्प बातचीत की, जिसमें छात्रों ने उनसे कई सवाल पूछे, जैसे कि अंतरिक्ष यात्री क्या खाते हैं? अंतरिक्ष में वे कैसे सोते हैं और अगर कोई बीमार पड़ जाए तो क्या होता है?

छात्रों ने अंतरिक्ष कार्यक्रम के लाभों के बारे में भी जानना चाहा और यह भी जानना चाहा कि अंतरिक्ष यात्रा का कौन सा भाग सबसे अधिक आनंददायक है। शुक्ला ने बातचीत के दौरान एक्सिओम मिशन 4 के प्रक्षेपण अनुभव को अद्भुत और गतिशील बताया।

उन्होंने छात्रों से कहा, यह वास्तव में मजेदार है, क्योंकि अंतरिक्ष में न तो फर्श है और न ही छत। इसलिए अगर आप स्टेशन (आईएसएस) पर जाएं तो आप पाएंगे कि कोई दीवारों पर सो रहा है तो कोई छत पर।

जब उनसे पूछा गया कि अंतरिक्ष यात्री क्या खाते हैं तो उन्होंने कहा कि अधिकांश भोजन पहले से पैक किया हुआ होता है और यह ध्यान रखा जाता है कि अंतरिक्ष यात्रियों को पर्याप्त पोषण मिले।

शुक्ला ने जवाब दिया, विभिन्न खाद्य पदार्थ रखे जाते हैं और अंतरिक्ष यात्रियों को उन सभी का स्वाद चखने को मिलता है, जो भी उन्हें पसंद होता है, उसे पैक कर दिया जाता है।

जब एक छात्र ने पूछा कि यदि कोई अंतरिक्ष में बीमार पड़ जाए तो क्या होगा? शुक्ला ने जवाब दिया, ऊपर तैरना और खुद को छत से बांधना बहुत आसान है। चुनौती यह है कि आपको उसी स्थान पर पाया जाए जहां आप रात को सोए थे और यह सुनिश्चित करना है कि हम अपने स्लीपिंग बैग बांध लें, ताकि हम किसी अन्य स्थान पर न जाएं।

जब एक छात्र ने मानसिक स्वास्थ्य पर अंतरिक्ष के प्रभाव के बारे में पूछा तो शुक्ला ने कहा कि आधुनिक तकनीक ने यह सुनिश्चित किया है कि अंतरिक्ष यात्री अपने परिवार और दोस्तों से जुड़ सकें। उन्होंने कहा, इससे बहुत मदद मिलती है।

अंतरिक्ष के भारहीन वातावरण में पाचन क्रिया धीमी हो जाती है। शुक्ला ने यह भी बताया कि शरीर में तरल पदार्थ के बदलाव से पाचन क्रिया पर क्या असर पड़ता है?

उन्होंने कहा, मेरा शरीर अब माइक्रोग्रैविटी के अनुकूल हो गया है, लेकिन जब मैं पृथ्वी पर वापस लौटूंगा तो मेरे शरीर को गुरुत्वाकर्षण के अनुकूल फिर से ढलना होगा। यह फिर से एक चुनौती है।

इस बीच नासा ने गुरुवार को बताया कि शुक्ला स्पेस में मस्तिष्क-कंप्यूटर इंटरफेस विकसित करने पर काम कर रहे हैं। एक्सिओम-4 मिशन के तहत वह अमेरिका, पोलैंड और हंगरी के तीन अन्य अंतरिक्ष यात्रियों के साथ के आईएसएस पर 14 दिवसीय शोध पर हैं।

यह दल सूक्ष्म गुरुत्व में लगभग 60 वैज्ञानिक अध्ययन और वाणिज्यिक गतिविधियों का संचालन कर रहा है, जिसमें 31 देश शामिल हैं, जिनमें अमेरिका, भारत, पोलैंड, हंगरी, सऊदी अरब, ब्राजील, नाइजीरिया, संयुक्त अरब अमीरात और यूरोप के राष्ट्र शामिल हैं।

भारत ने इसरो के माध्यम से मिशन के लिए सावधानीपूर्वक चयनित सात अध्ययनों का योगदान दिया है।

--आईएएनएस

एकेएस/एकेजे

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डिस्क्लेमरः यह आईएएनएस न्यूज फीड से सीधे पब्लिश हुई खबर है. इसके साथ न्यूज नेशन टीम ने किसी तरह की कोई एडिटिंग नहीं की है. ऐसे में संबंधित खबर को लेकर कोई भी जिम्मेदारी न्यूज एजेंसी की ही होगी.

      
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