डिस्लेक्सिया कोई कमी नहीं, बल्कि ज्ञान व्यक्त करने का अलग तरीका: शिक्षा सचिव संजय कुमार

डिस्लेक्सिया कोई कमी नहीं, बल्कि ज्ञान व्यक्त करने का अलग तरीका: शिक्षा सचिव संजय कुमार

डिस्लेक्सिया कोई कमी नहीं, बल्कि ज्ञान व्यक्त करने का अलग तरीका: शिक्षा सचिव संजय कुमार

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IANS
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Early identification, support can help kids with Dyslexia achieve success: Official

(source : IANS) ( Photo Credit : IANS)

नई दिल्ली, 28 अक्टूबर (आईएएनएस)। शिक्षा विभाग के सचिव संजय कुमार ने कहा कि डिस्लेक्सिया बच्चों के ज्ञान व्यक्त करने का एक अलग तरीका है। उन्होंने बताया कि अगर इसे जल्दी पहचान लिया जाए और बच्चों को सही मदद मिले, तो डिस्लेक्सिया वाले बच्चे भी जीवन में सफलता हासिल कर सकते हैं।

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संजय कुमार ने यह बात वॉक फॉर डिस्लेक्सिया 2025 के मौके पर कही। यह कार्यक्रम नई दिल्ली में आयोजित किया गया। इस आयोजन का मकसद देशभर में लोगों को डिस्लेक्सिया के बारे में जागरूक करना था। इस कार्यक्रम को कई संस्थाओं ने मिलकर आयोजित किया, जिनमें चेंजिंक फाउंडेशन, यूनेस्को एमजीईआईपी, ऑर्किड्स फाउंडेशन और सोच फाउंडेशन शामिल थे।

डिस्लेक्सिया की समस्या की वजह से सीखने में कठिनाई होती है, जो बच्चों को पढ़ने, लिखने और वर्तनी यानी स्पेलिंग में मुश्किल पैदा करती है। इसका मुख्य कारण यह है कि डिस्लेक्सिया वाले बच्चों के दिमाग में भाषा को समझने और प्रोसेस करने का तरीका अलग होता है। अक्टूबर माह को डिस्लेक्सिया जागरूकता माह के रूप में मनाया जाता है।

कुमार ने बताया कि स्पेशल लर्निंग डिसेबिलिटीज (एसएलडी) के बारे में जागरूकता और समझ बढ़ाना बहुत जरूरी है। डिस्लेक्सिया इनमें सबसे आम है, लेकिन अक्सर इसे समझा नहीं जाता। उन्होंने जोर देकर कहा कि हर बच्चा अलग तरीके से सीखता है और डिस्लेक्सिया कोई कमी नहीं है। यह सिर्फ बच्चों का ज्ञान समझने और व्यक्त करने का अलग तरीका है।

उन्होंने कहा, अगर बच्चों की जल्दी पहचान हो और उन्हें सही सहायता और समझ मिले, तो वह सफल और आत्मविश्वासी बन सकते हैं। आज का कार्यक्रम केवल जागरूकता फैलाने के लिए नहीं है, बल्कि इसमें सहानुभूति और समावेशिता का संदेश भी है।

सचिव ने प्रशस्त 2.0 ऐप का भी महत्व बताया। यह एनसीईआरटी द्वारा बनाई गई मोबाइल ऐप है, जो बच्चों में डिस्लेक्सिया जैसी चीजों को जल्द पहचानने में मदद करती है।

कुमार ने कहा कि जल्दी पहचान के साथ-साथ अध्यापकों, माता-पिता और समाज में जागरूकता भी जरूरी है। इससे हर बच्चे को सही मदद और सीखने के अवसर मिल सकते हैं और वे शिक्षा में सफलता पा सकते हैं।

बता दें कि शिक्षा विभाग ने समग्र शिक्षा योजना के तहत कई कदम उठाए हैं। इनमें बच्चों की जल्दी पहचान और स्क्रीनिंग को मजबूत करना और डिस्लेक्सिया जैसे एसएलडी वाले बच्चों को सही मदद देना शामिल है। इसके अलावा, शिक्षकों की तैयारी को भी मजबूत किया जा रहा है। एकीकृत शिक्षक शिक्षा कार्यक्रम (आईटीईपी) में समावेशी शिक्षा पर विशेष पाठ्यक्रम शामिल किए गए हैं ताकि शिक्षक बच्चों की अलग-अलग जरूरतों को समझ सकें और उन्हें बेहतर तरीके से पढ़ा सकें।

सरकार ने बच्चों को कस्टमाइज्ड मदद भी दी है। इसमें पढ़ाई के लिए सामग्री, सहायक उपकरण जैसे टेक्स्ट-टू-स्पीच आदि और अन्य पढ़ाई में मदद करने वाले उपकरण शामिल हैं। इसके अलावा बच्चों को चिकित्सीय सहायता भी उपलब्ध कराई जाती है।

देशभर में ब्लॉक स्तर पर स्क्रीनिंग और आईडेंटिफिकेशन कैंप भी आयोजित किए जाते हैं। इन कैंपों का उद्देश्य है कि बच्चों की जांच समय पर हो ताकि उन्हें सही मदद और अवसर मिल सके।

दुनिया भर में अनुमानित रूप से हर पांच में से एक व्यक्ति डिस्लेक्सिया से प्रभावित है। भारत में स्कूलों में पढ़ रहे विशेष जरूरत वाले बच्चों में लगभग 12.15 प्रतिशत को एसएलडी, जिसमें डिस्लेक्सिया भी शामिल है, होने की रिपोर्ट मिली है।

--आईएएनएस

पीके/एएस

डिस्क्लेमरः यह आईएएनएस न्यूज फीड से सीधे पब्लिश हुई खबर है. इसके साथ न्यूज नेशन टीम ने किसी तरह की कोई एडिटिंग नहीं की है. ऐसे में संबंधित खबर को लेकर कोई भी जिम्मेदारी न्यूज एजेंसी की ही होगी.

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