पाकिस्तान में ईसाइयों पर बढ़ता उत्पीड़न, जीने के लिए संघर्ष : रिपोर्ट

पाकिस्तान में ईसाइयों पर बढ़ता उत्पीड़न, जीने के लिए संघर्ष : रिपोर्ट

पाकिस्तान में ईसाइयों पर बढ़ता उत्पीड़न, जीने के लिए संघर्ष : रिपोर्ट

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IANS
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Christians struggling in Pakistan due to relentless persecution: Report

(source : IANS) ( Photo Credit : IANS)

इस्लामाबाद, 31 अगस्त (आईएएनएस)। पाकिस्तान में ईसाई अल्पसंख्यक लगातार कठिनाइयों का सामना कर रहा है। आबादी का केवल लगभग 1.6 प्रतिशत हिस्सा होने के बावजूद यह समुदाय बढ़ते धार्मिक दबाव और भेदभाव से जूझ रहा है। एक रिपोर्ट के अनुसार, पाकिस्तान धीरे-धीरे ऐसा समाज बनता जा रहा है जहां धार्मिक विविधता के लिए जगह कम होती जा रही है।

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‘ओपन डोर्स’ की 2025 वर्ल्ड वॉच लिस्ट में पाकिस्तान को ईसाइयों के लिए रहने के लिहाज से दुनिया का आठवां सबसे कठिन देश बताया गया है।

ग्रीक वकील और मानवाधिकार अधिवक्ता दिमित्रा स्टाइकौ ने जियोस्ट्रैटेजिक मीडिया में एक लेख में कहा है कि पाकिस्तान में ईसाई समुदाय कमजोर है और वह लगातार हो रहे उत्पीड़न और कानूनी असुरक्षा के बोझ तले दबा हुआ है। यह समस्या केवल सैद्धांतिक नहीं है बल्कि प्रत्यक्ष और गंभीर है।

16 अगस्त 2023 को पंजाब के जरांवाला में ईसाइयों पर सबसे बड़ा हमला हुआ। एक भीड़ ने निवासियों पर ईशनिंदा का आरोप लगाते हुए 26 चर्चों और 80 घरों को नष्ट कर दिया। दो साल बाद भी, न्याय अभी तक नहीं मिल पाया है।लेकिन दो साल बीत जाने के बाद भी न्याय नहीं मिला। किसी भी हमलावर को सजा नहीं हुई, उल्टा न्याय मांगने वाले ईसाइयों को उग्रपंथी समूहों से धमकियां मिलती रहीं।

पाकिस्तान में ईशनिंदा कानून का इस्तेमाल ईसाइयों को दबाने के लिए हथियार की तरह किया जा रहा है। अक्सर यह कानून फांसी तक नहीं पहुंचाता, लेकिन सिर्फ आरोप लगते ही हिंसक भीड़ हमला कर देती है। हाल ही में फैसलाबाद की एक अदालत ने 10 आरोपियों को सबूत होने के बावजूद बरी कर दिया, जिन पर चर्च जलाने और ईसाई घर लूटने का आरोप था। सबूतों के बावजूद, पुलिस की अक्षमता के कारण ये लोग बरी हो गए, और अन्य मामलों में भी यही पैटर्न देखने को मिल सकता है।

ईसाई महिलाओं और लड़कियों के साथ अगवा करने, बलात्कार और जबरन धर्म परिवर्तन जैसी घटनाएं बढ़ रही हैं। दोषी लोगों को सजा मिलने की बजाय अक्सर उन्हें बचा लिया जाता है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि एमनेस्टी इंटरनेशनल के अनुसार जरांवाला हमले के बाद 5,213 लोगों को गिरफ्तार किया गया था, लेकिन बाद में लगभग 4,800 लोगों को छोड़ दिया गया। एक साल के भीतर कई लोगों को जमानत या बरी कर दिया गया। इससे अपराधियों को और हिम्मत मिल रही है। एमनेस्टी इंटरनेशनल के दक्षिण एशिया के उप-क्षेत्रीय निदेशक, बाबू राम पौडेल ने चेतावनी दी कि इस तरह की निष्क्रियता हिंसा करने वालों के लिए दंड से मुक्ति का माहौल पैदा करती है।

16 अगस्त को, पीड़ित समिति द्वारा आयोजित जरानवाला में विरोध प्रदर्शनों ने दंगाइयों पर मुकदमा चलाने या वादा किया गया मुआवजा देने में सरकार की विफलता को प्रदर्शित किया। समिति के संयोजक लाला रॉबिन डेनियल ने कहा कि सरकार समुदाय को बांटने की कोशिश कर रही है।

रवादारी तहरीक (समानता आंदोलन) के अध्यक्ष सैमसन सलामत ने विरोध प्रदर्शन में कहा कि दो साल से आप न्याय की लड़ाई में डटे हुए हैं और हमें भरोसा है कि आपका संघर्ष जारी रहेगा।

लाहौर के कार्यकर्ताओं ने भी कहा कि जरांवाला हमला पाकिस्तान में गहरी असहिष्णुता और भेदभाव को दर्शाता है। मिशेल सेसिल एंड आइरिस चौधरी फाउंडेशन के अध्यक्ष चौधरी ने ईशनिंदा क़ानूनों के ख़तरों और सरकारी कार्रवाई की तत्काल आवश्यकता पर बात की।

जियो स्ट्रैटेजिक मीडिया में प्रकाशित अपने विचार लेख में, स्टाइकौ ने कहा कि पाकिस्तान में ईसाइयों की सुरक्षा के लिए जरूरी है कि ईशनिंदा कानून में बदलाव किया जाए, न्याय प्रणाली को मजबूत बनाया जाए और भेदभाव को खत्म करने के लिए ठोस कदम उठाए जाएं।

--आईएएनएस

एएस/

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