बांग्लादेश की महिलाओं को अर्थव्यवस्था में बढ़ती कमजोरी का सामना करना पड़ रहा: रिपोर्ट

बांग्लादेश की महिलाओं को अर्थव्यवस्था में बढ़ती कमजोरी का सामना करना पड़ रहा: रिपोर्ट

बांग्लादेश की महिलाओं को अर्थव्यवस्था में बढ़ती कमजोरी का सामना करना पड़ रहा: रिपोर्ट

author-image
IANS
New Update
(100820) BANGLADESH-DHAKA-COVID-19

(source : IANS) ( Photo Credit : IANS)

ढाका, 30 सितम्बर (आईएएनएस)। बांग्लादेश में महिलाएं बढ़ती कट्टरपंथ, सामाजिक असुरक्षा और संस्थागत उपेक्षा के कारण आर्थिक योगदान में लगातार कमजोर होती जा रही हैं। मंगलवार को जारी एक रिपोर्ट में यह जानकारी दी गई है।

Advertisment

इसमें आगे कहा गया है कि पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना को पद से हटाने के बाद बांग्लादेश में व्याप्त व्यापक अराजकता के स्पष्ट रूप से लैंगिक परिणाम हुए हैं, जिससे राजनीतिक उथल-पुथल और अव्यवस्था के बीच दशकों की प्रगति खतरे में पड़ गई है।

श्रीलंकाई अखबार डेली मिरर की एक रिपोर्ट में विस्तार से बताया गया है, 2025 के मध्य तक, नागरिक समाज संगठनों ने महिला विक्रेताओं को धमकाए जाने, उन पर हमला किए जाने या बाजार की दुकानें छोड़ने के लिए मजबूर किए जाने के 200 से ज्यादा मामले दर्ज किए हैं। कई महिला विक्रेता बिना वेतन वाली घरेलू नौकरियां करने लगी हैं, जिससे वर्षों की वृद्धिशील प्रगति उलट गई है। अनौपचारिक शहरी अर्थव्यवस्था में भी यही स्थिति है।

इसमें आगे कहा गया है, महिला फेरीवाले, घरेलू कामगार और दिहाड़ी मजदूर दुर्व्यवहार, भुगतान न मिलने और हिंसा के ज्यादा जोखिम की रिपोर्ट करती हैं। फिर भी उनकी कहानियां शायद ही कभी सुर्खियों में आती हैं, देश में व्याप्त बड़े राजनीतिक संकट के कारण दब जाती हैं।

रिपोर्ट में इस बात पर जोर दिया गया है कि सूक्ष्म ऋण योजनाएं, जिनमें से कई बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के मुख्य सलाहकार मुहम्मद यूनुस द्वारा ग्रामीण बैंक के माध्यम से शुरू की गई थीं, कभी ग्रामीण महिलाओं के लिए अर्थव्यवस्था में शामिल होने के लिए एक महत्वपूर्ण सेतु का काम करती थीं। फिर भी, रिपोर्ट में कहा गया है कि 2024-25 में यूनुस के नेतृत्व वाली अंतरिम सरकार के तहत, ये व्यवस्थाएं कमजोर हो गई हैं।

रिपोर्ट में जोर देकर कहा गया है, अल्पसंख्यक महिलाओं को सबसे कठिन परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है। अकेले 2025 में, 49 से ज्यादा हिंदू शिक्षकों, जिनमें से कई महिलाएं थीं, को धमकियों और हमलों के बाद स्कूलों से इस्तीफ़ा देने के लिए मजबूर होना पड़ा। उनके विस्थापन से न केवल उनकी आय छिनती है, बल्कि समुदायों को महिला रोल मॉडल से भी वंचित होना पड़ता है।

रिपोर्ट के अनुसार, मई की शुरुआत में, एक हिंदू नेता की हत्या के बाद जेसोर जिले में भीड़ द्वारा की गई हिंसा ने खास तौर पर महिलाओं के घरों को निशाना बनाया, लूटपाट और धमकी देकर उन्हें निर्वासित करने के लिए मजबूर किया।

इसमें जोर देकर कहा गया है, जब अल्पसंख्यक महिलाएं नौकरी, जमीन या व्यवसाय खो देती हैं, तो उनके परिवार अक्सर गरीबी में और भी ज़्यादा डूब जाते हैं। फिर भी सरकारी बयान इस संकट को कम करके आंकते रहते हैं, हमलों को सांप्रदायिक के बजाय राजनीतिक बताते हैं, एक ऐसा विमर्श जो हिंसा के लैंगिक आयामों को मिटा देता है।

रिपोर्ट में इस बात पर ज़ोर दिया गया है कि अधिकार समूहों द्वारा एक वर्ष में दर्ज की गई 637 लिंचिंग की घटनाओं से स्पष्ट रूप से दिखाई देने वाले भीड़तंत्र ने निरंतर असुरक्षा का माहौल पैदा किया है, और अक्सर महिलाएं इस तरह की घटनाओं का सबसे पहला शिकार होती हैं।

रिपोर्ट में कहा गया है, 2025 की शुरुआत में, ढाका में एक विश्वविद्यालय की छात्रा को एक धार्मिक कट्टरपंथी के समर्थकों ने परेशान किया। जब उसने न्याय की गुहार लगाई, तो भीड़ ने पुलिस थाने को घेर लिया और उससे शिकायत वापस लेने की मांग की और यौन हिंसा की भयावह धमकियां दीं। सुरक्षा देने के बजाय, उस पर चुप रहने का दबाव डाला गया। इस तरह की घटनाएं दर्शाती हैं कि कैसे कानून-व्यवस्था का पतन महिलाओं को चुप करा देता है और उन्हें शिक्षा और काम करने से हतोत्साहित करता है- जो उनकी आर्थिक स्वतंत्रता के आधार हैं।

--आईएएनएस

डीकेपी/

डिस्क्लेमरः यह आईएएनएस न्यूज फीड से सीधे पब्लिश हुई खबर है. इसके साथ न्यूज नेशन टीम ने किसी तरह की कोई एडिटिंग नहीं की है. ऐसे में संबंधित खबर को लेकर कोई भी जिम्मेदारी न्यूज एजेंसी की ही होगी.

Advertisment