घुसपैठ पर लग रही लगाम, विशेष टास्क फोर्स के जरिए अवैध प्रवासियों पर शिकंजा

घुसपैठ पर लग रही लगाम, विशेष टास्क फोर्स के जरिए अवैध प्रवासियों पर शिकंजा

घुसपैठ पर लग रही लगाम, विशेष टास्क फोर्स के जरिए अवैध प्रवासियों पर शिकंजा

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IANS
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Bangladeshi infiltration crisis: Inside touts, loopholes and security threats facing India

(source : IANS) ( Photo Credit : IANS)

नई दिल्ली, 11 अगस्त (आईएएनएस)। ऑपरेशन सिंदूर के बाद केंद्र सरकार ने पाकिस्तान, बांग्लादेश और म्यांमार से आने वाले अवैध प्रवासियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई का फैसला किया है। विभिन्न राज्य सरकारों से मिले आंकड़ों के अनुसार, सबसे ज्यादा अवैध प्रवासी बांग्लादेश से हैं, इसके बाद म्यांमार और पाकिस्तान का स्थान है।

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सुरक्षा एजेंसियों का कहना है कि बांग्लादेश से आए अवैध प्रवासियों की संख्या चिंताजनक है और कई इलाकों में उन्होंने जनसंख्या का संतुलन बदल दिया है। एजेंसियों की एक डोजियर रिपोर्ट में इन प्रवासियों के घुसपैठ के तौर-तरीकों और उन रास्तों का जिक्र है जिनके जरिए वे वर्षों से निर्वासन से बचते रहे हैं।

भारत में प्रवेश के मुख्य रास्ते चापली, मालदा, मुर्शिदाबाद, 24 परगना और दिनेशपुर हैं। इस आधार पर इन इलाकों में सुरक्षा कड़ी कर दी गई है। बांग्लादेश में जारी संकट के चलते घुसपैठ की कोशिशें और बढ़ गई हैं।

अवैध प्रवासियों को घुसपैठ में मदद करने वाले दलालों पर भी शिकंजा कसा जा रहा है। इन दलालों का नेटवर्क बेहद बड़ा है, जिनके 50 से 100 एजेंट उन राज्यों में फैले हैं, जहां ये प्रवासी भेजे जाते हैं। दलाल घुसपैठ की व्यवस्था करते हैं, जबकि एजेंट उन्हें काम दिलाने और पहचान पत्र (आधार, वोटर आईडी) उपलब्ध कराने का काम करते हैं।

सबसे ज्यादा पहचान पत्र पश्चिम बंगाल, असम, मिजोरम और बिहार में जारी किए जाते हैं। चुनाव के समय इन्हें संबंधित राज्यों में वापस बुलाना अनिवार्य होता है, वरना दस्तावेज जब्त कर इन्हें वापस भेज दिया जाता है। एक पहचान पत्र बनवाने का शुल्क 5 से 7 हजार रुपये तक होता है।

दूसरे राज्यों में भेजने से पहले इन्हें असम का निवासी बताने का निर्देश दिया जाता है। इन्हें स्थानीय लोगों से कम मेलजोल रखने और हमेशा समूह में रहने को कहा जाता है। केरल में ये लोग बंगाली कॉलोनी में रहते हैं, जहां भाषा और बोली के कारण आसानी से घुल-मिल जाते हैं।

पिछले कई अभियानों के बावजूद कानूनी खामियों के कारण ये लोग निर्वासन से बच जाते हैं। अदालतें इस अपराध को गंभीर नहीं मानतीं, जमानत आसानी से मिल जाती है और जेलों में भीड़ से बचने के लिए इन्हें रिहा कर दिया जाता है। एक बार मामला अदालत में जाने के बाद, फैसला आने तक निर्वासन नहीं हो सकता और यह प्रक्रिया वर्षों तक चलती है। कई बार निर्वासित व्यक्ति फिर से भारत लौट आते हैं और नई पहचान बना लेते हैं।

इन खामियों को देखते हुए सरकार ने देशभर में पकड़े गए बांग्लादेशी नागरिकों को सीधे वापस भेजना शुरू किया है। 2024 में 295 बांग्लादेशियों को निर्वासित किया गया, जबकि 2025 में अप्रैल तक यह संख्या 100 है।

पूर्व रॉ अधिकारी अमर भूषण के अनुसार, 1990 के दशक में आईएसआई और बांग्लादेश की डीजीएफआई ने जमात-ए-इस्लामी के जरिए बड़े पैमाने पर घुसपैठ की साजिश रची थी, ताकि भारत में जनसांख्यिकी बदली जा सके, नौकरियां छीनी जा सकें, अपराध बढ़े और सांप्रदायिक तनाव पैदा हो। मौजूदा बांग्लादेशी सरकार के पाकिस्तान-समर्थी रुख के कारण यह खतरा और बढ़ सकता है।

एनसीआरबी के अनुसार, भारत में विदेशी नागरिकों द्वारा किए गए अपराधों में बांग्लादेशियों की हिस्सेदारी सबसे ज्यादा 24.5 प्रतिशत है, इसके बाद नाइजीरियाई (5.5 प्रतिशत), नेपाली (3.3 प्रतिशत) और म्यांमार के नागरिक (2.3 प्रतिशत) का स्थान है।

तमिलनाडु सहित कई राज्य सरकारें अब अवैध बांग्लादेशी और रोहिंग्या प्रवासियों को पकड़कर निर्वासित करने के लिए विशेष टास्क फोर्स बना रही हैं। गृह मंत्रालय ने सभी राज्यों के मुख्य सचिवों को पुलिस की देखरेख में विशेष टास्क फोर्स बनाने के निर्देश दिए हैं।

--आईएएनएस

डीएससी/

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