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(source : IANS) ( Photo Credit : IANS)
नई दिल्ली, 18 दिसंबर (आईएएनएस)। दिल्ली में वायु प्रदूषण की समस्या चरम पर पहुंच गई है। विशेषज्ञों ने गुरुवार को कहा कि यह न केवल स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव डाल रहा है, बल्कि जीवन प्रत्याशा और गुणवत्ता को भी बुरी तरह प्रभावित कर रहा है।
इन दिनों दिल्ली-एनसीआर घने स्मॉग के जाल में फंसा हुआ है। ये वायु प्रदूषण के खतरनाक स्तर को दर्शाता है। रिहाइशी इलाकों से लेकर सड़कों और एयरपोर्ट तक पर विजिबिलिटी नाममात्र की है, जिससे रोजाना की आवाजाही पर असर पड़ रहा है और यहां रहने वालों की स्वास्थ्य संबंधी चिंताएं बढ़ रही हैं। सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड (सीपीसीबी) डेटा के अनुसार, दिल्ली में एयर क्वालिटी इंडेक्स (एक्यूआई) 356 दर्ज किया गया।
विशेषज्ञों ने बताया कि लंबे समय तक वायु प्रदूषण के संपर्क में रहने से स्ट्रोक, कार्डियोवस्कुलर बीमारी, सांस की बीमारी और न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर जैसी गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं तेजी से बढ़ रही हैं। आर्थिक नुकसान भी झेलना पड़ रहा है। स्वास्थ्य समस्याओं से उत्पादकता घट रही है, चिकित्सा खर्च बढ़ रहा है, और पर्यटन व व्यापार प्रभावित हो रहा है, जिससे समग्र जीवन गुणवत्ता कम हो रही है।
इससे हेल्थकेयर सिस्टम पर लगातार दबाव बढ़ रहा है।
स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के पूर्व सचिव राजेश भूषण ने कहा, लंबे समय तक प्रदूषित वायु के संपर्क में रहने से न सिर्फ जीवन प्रत्याशा कम होती है और लंबे समय तक किसी शारीरिक व्याधि के साथ जीने की आशंका बढ़ जाती है। ज्यादा प्रदूषित शहरों में लोग हो सकता है कि लंबे समय तक जीवित रहें, लेकिन पुरानी बीमारियों से उनके जीवन पर नकारात्मक असर पड़ सकता है। उत्पादकता घटती है, जीवन गुणवत्ता कम होती है और इस तरह ऐसे लोग आर्थिक क्षेत्र में भी कम योगदान दे पाते हैं।
उन्होंने इलनेस टू वेलनेस फाउंडेशन द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में कहा, इसलिए, वायु प्रदूषण से निपटने के लिए हेल्थकेयर सिस्टम, शहरी नियोजन और जन जागरूकता के बीच तालमेल बिठाकर कार्रवाई करने की जरूरत है, जिसमें निवारक और प्राइमरी हेल्थकेयर पर ज्यादा ध्यान दिया जाना चाहिए।
दिल्ली के पल्मोनोलॉजिस्ट डॉ. जी. सी. खिलनानी ने वायु प्रदूषण को मानव निर्मित सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल बताया, जिसका सांस और कार्डियोवस्कुलर स्वास्थ्य पर व्यापक असर पड़ने की आशंका बनी रहती है।
उन्होंने कहा, वायु प्रदूषण के सबसे खतरनाक प्रभाव अक्सर दिखाई नहीं देते—बहुत छोटे कण फेफड़ों में गहराई तक चले जाते हैं, खून में मिल जाते हैं, और बिना किसी शुरुआती चेतावनी के कई अंगों को नुकसान पहुंचाते हैं।
न्यूरोलॉजिस्ट डॉ. दलजीत सिंह ने बताया कि प्रदूषण दिमाग में खून के संचार को प्रभावित करता है और इस्केमिक और हेमरेजिक दोनों तरह के स्ट्रोक का खतरा काफी बढ़ा देता है।
सिंह ने आगे कहा, हम अब ज्यादा प्रदूषण वाले महीनों में स्ट्रोक के मामलों में साफ तौर पर मौसमी बढ़ोतरी देख रहे हैं, जो बताता है कि प्रदूषण एक स्वतंत्र जोखिम कारक के रूप में उभर रहा है। स्ट्रोक के अलावा, वायु प्रदूषण अल्जाइमर, डिमेंशिया और पार्किंसन रोग जैसी न्यूरोलॉजिकल स्थितियों से भी जुड़ा हुआ है, जिससे यह एक बढ़ती हुई न्यूरोलॉजिकल चुनौती बन गई है, जिस पर तुरंत ध्यान देने की जरूरत है।
फिक्की हेल्थ सेक्टर के मेंटर डॉ. हर्ष महाजन ने कहा कि वायु प्रदूषण लगभग हर बीमारी की श्रेणी को बढ़ाने वाला एक साइलेंट जोखिम कारक बन गया है। महाजन ने कहा, यह गरीबों, बच्चों और बाहर काम करने वालों को सबसे ज्यादा प्रभावित करता है, जबकि इस समस्या में उनका योगदान सबसे कम होता है। खतरनाक बात यह है कि यह मानना ​​कि सिर्फ टेक्नोलॉजी ही इस संकट को हल कर देगी। लेकिन जिस चीज की सबसे ज्यादा कमी है, वो गंभीरता और जवाबदेही की है।
विशेषज्ञों ने स्वस्थ जीवन और सुदृढ़ अर्थव्यवस्था सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्धता, कड़े नियमों को लागू करने और जागरूक जनता की भागीदारी की जरूरत पर बल दिया।
--आईएएनएस
केआर/
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