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(source : IANS) ( Photo Credit : IANS)
नई दिल्ली, 10 दिसंबर (आईएएनएस)। बुधवार को द लैंसेट जर्नल में छपी एक नई रिपोर्ट के अनुसार, 2023 में भारत में 15 साल और उससे ज्यादा उम्र की लगभग 23 प्रतिशत महिलाओं को अपने पार्टनर से हिंसा (आईपीवी) का सामना करना पड़ा, जिसमें मौजूदा या पुराने पार्टनर द्वारा शारीरिक और यौन शोषण शामिल है।
अनुमान है कि देश में 15 साल और उससे ज्यादा उम्र की 30 प्रतिशत से अधिक महिलाओं और 13 प्रतिशत पुरुषों ने बचपन में यौन हिंसा का अनुभव किया है।
विश्व स्तर पर, बचपन में यौन हिंसा का शिकार हुई 15 साल और उससे अधिक उम्र की महिलाओं की संख्या दस लाख से भी ज्यादा है। वहीं, 15 साल और उससे अधिक उम्र की महिलाओं की अनुमानित संख्या 608 मिलियन है, जिन्होंने आईपीवी (घरेलू हिंसा) का भी अनुभव किया है।
ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज, नई दिल्ली, गोरखपुर और पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल एजुकेशन एंड रिसर्च (पीजीआईएमईआर), चंडीगढ़, आईसीएमआर-नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर रिसर्च इन ट्यूबरकुलोसिस, चेन्नई के लेखकों वाली इस ग्लोबल रिपोर्ट में बताया गया है कि ये अनुभव कई तरह की लंबे समय तक चलने वाली स्वास्थ्य समस्याओं से जुड़े हैं। इनमें डिप्रेशन और एंग्जायटी, पुरानी बीमारियां और समय से पहले मौत का बढ़ा हुआ खतरा शामिल है।
शोधकर्ताओं ने कहा, ये चौंकाने वाले आंकड़े निवारक उपायों की तत्काल आवश्यकता को रेखांकित करते हैं, जिसमें कानूनी ढांचे को मजबूत करना, लैंगिक समानता को बढ़ावा देना और हिंसा के संपर्क में आने से होने वाले स्वास्थ्य नुकसान को कम करने के लिए पीड़ितों के लिए सहायता सेवाओं का विस्तार करना शामिल है।
उन्होंने आगे कहा, महिलाओं और बच्चों के खिलाफ हिंसा को संबोधित करना न केवल मानवाधिकारों का मामला है, बल्कि यह एक महत्वपूर्ण सार्वजनिक स्वास्थ्य प्राथमिकता भी है जो लाखों लोगों की जान बचा सकती है। मानसिक स्वास्थ्य परिणामों में सुधार कर सकती है और बेहतर समुदाय बना सकती है।
शोध में बताया गया है कि आईपीवी और यौन हिंसा की सबसे ज्यादा दरें उप-सहारा अफ्रीका और दक्षिण एशिया में केंद्रित हैं, जहां एचआईवी और अन्य पुरानी बीमारियों की उच्च दरें हिंसा के स्वास्थ्य प्रभावों को और बढ़ा देती हैं।
शोधकर्ताओं ने कहा, कमजोर स्वास्थ्य प्रणालियों और महिलाओं और बच्चों के लिए सीमित कानूनी सुरक्षा वाले क्षेत्रों को इन नुकसानों को संबोधित करने और रोकने में और भी बड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
जबकि उच्च आय वाले देशों (एचआईसी) में कुल मिलाकर प्रसार दर कम होती है, फिर भी उन्हें महत्वपूर्ण चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, जिसमें आईपीवी और यौन हिंसा बीमारी के बोझ के लिए शीर्ष जोखिम कारकों में से हैं, खासकर 15-49 वर्ष की आयु के युवा वयस्कों में।
रिपोर्ट में कहा गया है कि अमीर देशों में नशीली दवाओं के दुरुपयोग संबंधी विकार और गैर-संक्रामक रोग जैसे कारक हिंसा के महत्वपूर्ण स्वास्थ्य प्रभावों में योगदान करते हैं।
--आईएएनएस
एससीएच/एएस
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