logo-image

World Thalassemia Day 2020: 'माता-पिता से मिलती है बच्चों को थैलेसीमिया बीमारी'

World Thalassemia Day 2020: बच्चों को अभिभावकों से अनुवांशिक रूप में थैलेसीमिया रक्त बीमारी मिलती है. विशेषज्ञों के अनुसार, इस रोग के होने पर शरीर की हीमोग्लोबिन के निर्माण की प्रक्रिया ठीक से काम नहीं करती है और रोगी बच्चे के शरीर में रक्त की भारी कमी होने लगती है.

Updated on: 08 May 2020, 02:52 PM

नई दिल्ली:

World Thalassemia Day 2020: बच्चों को अभिभावकों से अनुवांशिक रूप में थैलेसीमिया रक्त बीमारी मिलती है. विशेषज्ञों के अनुसार, इस रोग के होने पर शरीर की हीमोग्लोबिन के निर्माण की प्रक्रिया ठीक से काम नहीं करती है और रोगी बच्चे के शरीर में रक्त की भारी कमी होने लगती है. इसके कारण उसे बार-बार बाहरी खून चढ़ाने की आवश्यकता होती है. थैलेसीमिया के मरीजों को विशेष तौर पर ख्याल रखना जरूरी है.

किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी के बाल रोग विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. निशांत वर्मा ने बताया कि 'यह अनुवांशिक बीमारी है. माता-पिता इसके वाहक होते हैं. प्रतिवर्ष लगभग 10,000 से 15,000 बच्चे इस बीमारी से ग्रसित होते हैं. बीमारी हीमोग्लोबिन की कोशिकाओं को बनाने वाले जीन में म्यूटेशन के कारण होती है.'

उन्होंने बताया कि 'थैलेसीमिया के रोगियों में ग्लोबीन प्रोटीन या तो बहुत कम बनता है या नहीं बनता है, जिसके कारण लाल रक्त कोशिकाएं नष्ट हो जाती हैं. इससे शरीर को ऑक्सीजन नहीं मिल पाती है और व्यक्ति को बार-बार खून चढ़ाना पड़ता है.'

और पढ़ें: Corona संक्रमण का दूसरा दौर शुरू होने को लेकर चिंतित हैं स्वास्थ्य विशेषज्ञ

डॉ़ निशांत ने बताया कि "सामान्यतया लाल रक्त कोशिकाओं की आयु 120 दिनों की होती है, लेकिन इस बीमारी के कारण आयु घटकर 20 दिन रह जाती है, जिसका सीधा प्रभाव हीमोग्लोबिन पर पड़ता है. हीमोग्लोबिन की मात्रा कम हो जाने से शरीर कमजोर हो जाता है और उसकी प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है परिणामस्वरूप उसे कोई न कोई बीमारी घेर लेती है."

राजधानी के डफरिन अस्पताल के बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. सलमान ने बताया कि "बीमारी में बच्चे में खून की कमी हो जाती है. बच्चे का विकास रुक जाता है. इसमें अनुवांशिक काउंसिलिंग अनिवार्य है. थैलेसीमिया की गंभीर अवस्था में खून चढ़ाना जरूरी हो जाता है."

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, थैलेसीमिया से पीड़ित ज्यादातर बच्चे गरीब देशों में पैदा होते हैं. इस बीमारी से ग्रसित बच्चों में लक्षण जन्म से 4 या 6 महीने में नजर आते हैं. कुछ बच्चों में 5 से 10 साल में भी लक्षण दिखाई देते हैं. त्वचा, आंखें, जीभ और नाखून पीले पड़ने लगते हैं. दांतों को उगने में कठिनाई आती है और स्थिति गंभीर न होने पर पौष्टिक भोजन और व्यायाम बीमारी को नियंत्रित रखने में मदद करते हैं.

उल्लेखनीय है कि इस बीमारी के प्रति जागरूकता फैलाने के लिए हर साल आठ मई को विश्व थैलेसीमिया दिवस मनाया जाता है. इस का थीम है 'यूनिवर्सल एक्सेस टू क्वोलिटी थैलेसीमिया हेल्थकेयर सर्विसिस : बिल्डिंग ब्रिजेस विद एंड फॉर पेशेंट्स' है.