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Women Health: गर्भवती महिला के बच्चे में HIV का खतरा अधिक, बरतें ये सावधानी

आज यानि 1 दिसंबर के दिन पूरी दुनिया में 'विश्व एड्स दिवस' (AIDS Day 2019) मनाया जाता है. एड्स दिवस मनाने का मुख्य कारण इसके प्रति जागरुकत फैलाना है, जिससे इसपर नियंत्रण पा सके.

Updated on: 04 Dec 2019, 06:46 AM

नई दिल्ली:

आज यानि 1 दिसंबर के दिन पूरी दुनिया में 'विश्व एड्स दिवस' (AIDS Day 2019) मनाया जाता है. एड्स दिवस मनाने का मुख्य कारण इसके प्रति जागरुकत फैलाना है, जिससे इसपर नियंत्रण पा सके. लेकिन अभी भी एड्स को लेकर खुलकर बात करने में लोग हिचकिचाते है, जिससे HIV को लेकर काफी चीजें उनकी साफ नहीं हो पाती है.  वहीं वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन कि रिपोर्ट की माने तो पूरी दुनिया में करीब साढ़े तीन करोड़ लोग एचआईवी पीड़ित हैं. इनमें से केवल 62% लोगों को ही समय पर इलाज मिल पाता है. 

एचाईवी संक्रमण एक खतरनाक बीमारी है जिसका खात्मा अभी पुरी तरह से असंभव है. इसके फैलने का मुख्य कारण एचाआईवी पॉजिटिव मां से बच्चे का होना भी है. नेशनल एड्स कंट्रोल ऑर्गनाइजेशन (नाको) की एक रिपोर्ट के अनुसार, 2017 में देश में 21.40 लाख लोग एचआईवी से संक्रमित थे। इस दौरान करीब 69 हजार लोगों की मौत इसके कारण हुई और 22675 प्रेग्नेंट महिलाओं को एंटीरोट्रोवायरल थेरेपी की जरूरत पड़ी.

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भारत को पूरी तरह से एड्स मुक्त होने में अभी काफी समय लगेगा क्योंकि अभी भी देश में 15 से 49 वर्ष की उम्र के बीच के लगभग 25 लाख लोग एड्स से प्रभावित हैं. यह आंकड़ा विश्व में एड्स प्रभावित लोगों की सूची में तीसरे स्थान पर आता है. जानकारी के मुताबतिक इनमें 39 प्रतिशत महिलाएं एचआईवी वायरस से संक्रमित है. हालांकि पुरुषों के मुकाबले भारत में महिलाओं में आंकड़ा इसलिए कम है क्योंकि वो सेक्स के लिए कहीं बाहर नहीं जाती है. जबकि पुरुष अपनी पत्नी/ पार्टनर के अलावा एक से अधिक महिलाओं के बीच यौन संबंध बनाते है.

महिलाओं में एड्स को लेकर जब हमने डॉ इंदर मौर्या से बातचीत की तो उन्होंने बताया कि पुरुष के मुकाबले महिलाओं में एचाआईवी होने की संभावना कम है. लेकिन यदि महिलाएं HIV से पीड़ित है तो उनके पार्टनर पुरुष को HIV होने की संभावना 80-90 प्रतिशत तक होता है. वहीं अगर वो एनल सेक्स करते है तो ये प्रतिशत 100 तक हो सकता है.

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गर्भवती महिला (Pregnant Women) के बच्चे में HIV का खतरा

वहीं एचआईवी पीड़ित गर्भवती महिला (PregnanT Women) को लेकर डॉ मौर्या ने बताया कि गर्भवती महिला के बच्चे को HIV वायरस होने की 80-85% तक संभावना होती है. उन्होंने ये भी कहा कि ऐसे में गर्भवती महिलाओं को विशेष ध्यान रखना चाहिए और स्पेशल ट्रिटमेंट करवाना चाहिए जो हर अस्पताल में उपलब्ध होता है.

डॉ मौर्या ने बताया कि HIV पीड़ित गर्भवती महिला को पहले और तीसरे महीने में क्लिनिकल परीक्षण कराना चाहिए. एचआईवी और अन्य इंफेक्शन से जुड़े टेस्ट कराते रहने चाहिए. इसके अलावा गर्भावस्था के दौरान हर तिमाही में एचआईवी टेस्ट कराएं.

डॉ इंदर ने ये भी कहा कि हम एचआईवी पीड़ित गर्भवती महिला को डिलीवरी के समय एक हफ्ते पहले एडमिट करके एचआई का इलाज शुरू करते है. इससे पहले नहीं कर सकते क्योंकि बच्चे की जान को खतरा होता है.

दरअसल, गर्भ में पल रहा बच्चा अपने पोषण के लिए मां पर ही निर्भर होता है. ऐसे में उसके संक्रमित होने का खतरा काफी बढ़ जाता है. साथ ही मां का दूध भी संक्रमण का कारण बन सकता है. संक्रमण फैलने का ये तीसरा सबसे सामान्य माध्यम है.

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डॉ ने ये भी बताया कि इन तरीकों को अपनाने से होने वाले बच्चे में HIV का खतरा कम हो जाता है लेकिन पूरी तरह से इसके संक्रमण से नहीं बचाया जा सकता है. इसलिए हम महिलाओं को काउंसलिंग के जरीए सलाह देते है कि वो गर्भवती न हो और बच्चे के लिए अन्य दूसरा रास्ता अपनाएं. जैसे सरोगेसी या बच्चा गोद लेना, जिससे पीढ़ी दर पीढ़ी ट्रांसफर होने वाले HIV वायरस को रोका जा सके.

एचआईवी के कारण इन बीमारियों से जुझती है महिलाएं

डॉ इंदर मौर्या ने बताया कि महिलाओं में HIV वायरस है तो इससे उन्हें अन्य कई बीमारियां भी हो सकती है. एचआईवी पीड़ित महिलाओं में कैंसर, ब्लड कैंसर, निमोनिया और फंगल निमोनिया भी देखा गया है. ये बीमारियां उनकी मौत का मुख्य कारण होती है. इसके अलावा अगर एचआईवी का वायरस दिमाग तक पहुंच बनाता तो उन्हें भूलने जैसी बीमारी बी हो सकती है.

HIV का इलाज

  • सबसे पहले सरकार की तरफ से मुफ्त HIV क्लीनिक जाएं
  •  सरकार की तरफ से मुफ्त थेरेपी की व्यवस्था
  • अस्पताल में HIV काउंसलर से काउंसलिग लें, जांच करवाएं
  • 28 दिन की दवाई दी जाती है और फिर इसके बाद हर 28 दिन पर इसका फॉलोअप करना होता है
  •  TD4 काउंट पर निर्भर करता है कि आपकी दवाई लेने की समय सीमा कितनी है.

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बता दें कि एचआईवी आकलन 2012 के अनुसार भारतीय युवाओं में वार्षिक आधार पर एड्स के नए मामलों में 57% की कमी आई है. राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण कार्यक्रम के तहत किये गए एड्स के रोकथाम संबंधी विभिन्न उपायों एवं नीतियों का ही यह प्रभाव था कि 2000 में एड्स प्रभावित लोगों की जो संख्या 2.74 लाख थी, वह 2011 में घटकर 1.16 लाख हो गई. 2001 में एड्स प्रभावित लोगों में 0.41% युवा थे जो प्रतिशत 2011 में घटकर 0.27 का हो गया. 2000 में एड्स प्रभावित लोगों की संख्या लगभग 24.1 लाख थी जो 2011 में घटकर 20.9 लाख रह गई.

एंटी रेट्रोवायरल थेरेपी (एआरटी) के प्रयोग में आने के बाद एड्स से मरने वालों की संख्या में कमी आई. 2007 से 2011 के बीच एड्स से मरने वाले लोगों की संख्या में वार्षिक आधार पर 29% की कमी आई.  ऐसा अनुमान है कि 2011 तक लगभग 1.5 लाख लोगों को एंटी रेट्रोवायरल थेरेपी (एआरटी) की मदद से बचाया जा चुका है.