सर्दी में उदासी? कहीं आप Seasonal Affective Disorder के शिकार तो नहीं?
Seasonal Affective Disorder: क्या सर्दियों के मौसम में अक्सर आप उदास रहते हैं? क्या आपको सुस्ती महसूस होती है. ऐसे लगता है, मानो बिस्तर से उठने की ताकत ही न हो और आप ज्यादातर समय सोते रहते हैंं? अगर हर साल और साल दर साल आपको...
highlights
- सर्दियों में उदासी की समस्या हुई आम
- सीजनल अफेक्टिव डिसॉर्डर को न करें नजरअंदाज
- कई लोग इस समस्या के चलते दे चुके हैं जान
नई दिल्ली:
Seasonal Affective Disorder: क्या सर्दियों के मौसम में अक्सर आप उदास रहते हैं? क्या आपको सुस्ती महसूस होती है. ऐसे लगता है, मानो बिस्तर से उठने की ताकत ही न हो और आप ज्यादातर समय सोते रहते हैंं? अगर हर साल और साल दर साल आपको ये समस्या हो रही है तो आपको तुरंत मनोचिकित्सक की जरूरत है. जी हां, ये सीजनल अफेक्टिव डिसॉर्डर (SAD) के लक्षण हैं. ये समस्या यूं तो थोड़े से इलाज में ही सही हो जाती है, लेकिन इसे नजरअंदाज किया गया तो ये जानलेवा साबित हो सकता है. क्योंकि, कई मामलों में सैड से पीड़ित व्यक्ति के मन में आत्मघाती विचार आ जाते हैं. जिसकी वजह से वो आत्महत्या जैसा कदम भी उठा सकता है.
ये दो चीजें बिगड़ने की वजह से आती है दिक्कत
इंसानी शरीर में सेरोटोनिन और मेलाटोनिन नाम के केमिकल्स होते हैं. सर्दियों में इनका स्तर घटने बढ़ने की वजह से सीजनल अफेक्टिव डिसॉर्डर की समस्या आ जाती है. दरअसल, मेलाटोनिन नींद के लिए जिम्मेदार होता है. इसके बढ़ने की वजह से नींद ज्यादा आती है. सुस्ती बढ़ती है. इसलिए व्यक्ति के सोने का समय बढ़ जाता है. चूंकि सर्दियों में सही से धूप सभी को मिल नहीं पाती है. ऐसे में मेलाटोनिन की मात्रा बढ़ जाती है. वहीं, सेरोटोनिन की मात्रा घट जाती है. सेरोटोनिन की मात्रा तब बढ़ती है, जब शरीर को पर्याप्त धूप मिले. तभी शरीर में फुर्ती बढ़ती है. आदमी एक्टिव दिखता है. लेकिन विपरीत स्थित में व्यक्ति नींद का शिकार होता है. सुस्ती छाई रहती है. वो डिप्रेशन की तरफ बढ़ता है. इसी को एसएडी यानी सैड कहा जाता है.
साल दर साल चलती रहती है समस्या
सीजनल अफेक्टिव डिसॉर्डर की समस्या का सही समय पर इलाज किया जाए तो महज कुछ दिनों के इलाज में उसके सोने की तलब कम होती जाती है. व्यक्ति काम में मन लगाता है. जब वो सुस्त नहीं होता, तो दिमाग भी ज्यादा चलता रहता है. वहीं, सीजनल अफेक्टिव डिसॉर्डर की अवस्था में व्यक्ति परेशान रहता है. वो उदासी में कई बार ऐसे कदम उठा लेता है, तो आत्मघाती साबित होते हैं. एक अनुमान के मुताबिक, अकेले भारत में हर साल ऐसे एक करोड़ केस आते हैं. लेकिन अधिकांश मामले गंभीर नहीं होते. फिर भी कुछ मामले ऐसे होते हैं, जिसमें व्यक्ति जान देने तक की हालत में पहुंच जाता है. ऐसे में एसएडी जैसी समस्या को नजरअंदाज न ही करें तो बेहतर है.
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