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छींक या खांसी से निकले वायरस के लिए ठंड का मौसम मुफीद, बढ़ जाती है इंफेक्‍शन फैलाने की क्षमता : स्‍टडी

सर्दियों में तापमान गिरने पर वायरस लंबे समय तक संक्रमणकारी रह सकता है. एक स्‍टडी में यह बात सामने आई है. वैज्ञानिकों ने वायरस जैसे कणों का इस्तेमाल कर पता लगाया है कि सतह पर कोरोना वायरस के अस्तित्व पर पर्यावरण का क्या प्रभाव पड़ता है.

Updated on: 19 Dec 2020, 12:04 AM

नई दिल्ली:

सर्दियों में तापमान गिरने पर वायरस लंबे समय तक संक्रमणकारी रह सकता है. एक स्‍टडी में यह बात सामने आई है. वैज्ञानिकों ने वायरस जैसे कणों का इस्तेमाल कर पता लगाया है कि सतह पर कोरोना वायरस (Corona Virus) के अस्तित्व पर पर्यावरण का क्या प्रभाव पड़ता है. ‘बायोकेमिकल एंड बायोफिजिकल रिसर्च कम्युनिकेशन्स’ नामक शोध पत्रिका में प्रकाशित अध्ययन के अनुसार, वायरस जैसे कण (वीएलपी) कोरोना वायरस के बाहरी ढांचे जैसे होते हैं. अमेरिका के यूटाह विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने कहा कि वीएलपी उसी लिपिड और तीन प्रकार के प्रोटीन से बने खोखले कण होते हैं जैसा कोरोना वायरस में होता है लेकिन उनमें जीनोम नहीं होता इसलिए उनसे संक्रमण का खतरा नहीं होता. 

इस अध्‍ययन में वैज्ञानिकों ने वायरस जैसे कणों की जांच, कांच की सतह पर शुष्क और नमी वाले वातावरण में की है. अनुसंधानकर्ताओं ने कहा कि कोरोना वायरस सामान्य रूप से तब फैलता है जब कोई संक्रमित व्यक्ति खांसता या छींकता है. उन्होंने कहा कि खांसने या छींकने से निकलने वाली बूंदें जल्दी ही सूख जाती हैं इसलिए उनसे निकले सूखे और नमी वाले वायरस के कण संपर्क में आई किसी भी सतह पर बैठ जाते हैं. 

उन्नत माइक्रोस्कोपी तकनीक की मदद से वैज्ञानिकों ने बदलते हुए वातावरण में वीएलपी में आए बदलाव को देखा. उन्होंने वीएलपी के नमूनों को विभिन्न तापमान पर दो स्थितियों में परखा. एक स्थिति में उन्हें तरल में डाला गया दूसरे में शुष्क वातावरण में रखा गया. 

वैज्ञानिकों के अनुसार सामान्य तापमान या ठंड के मौसम में यह कण ज्यादा समय तक संक्रमणकारी रह सकते हैं. उन्होंने कहा कि सतह पर वीएलपी के अस्तित्व पर नमी का बहुत कम प्रभाव पड़ता है.