कांच की शीशी में सफेद रंग की मीठी गोलियां, ये पहचान है होम्योपैथी दवाई की. हर घर के किसी न किसी सदस्य ने कभी न कभी होम्योपैथी की दवाई का सेवन जरूर किया होगा. दुनियाभर में होम्योपैथी से ट्रीटमेंट किया जाता है. एलोपैथी, आयुर्वेद के साथ होम्योपैथी पद्धति का चलन बहुत तेजी से बढ़ रहा है. भारत और दुसरे देशों में क्या है होम्योपैथी उपचार की स्थिती. आपको इस रिपोर्ट में बताते हैं. बात अगर सरकारी आंकड़ों की करें तो भारत में एलोपैथी तकनीक से इलाज करने वाले डाॅक्टरों की संख्या 12.68 लाख है. और अगर आयुष के पद्धति के तहत उपचार करने वाली पद्धतियों में रजिस्टर्ड प्रैक्टिशनर का आंकड़ा देखें तो कुल 5,93,761 में से करीब आधे 2,37,412 होम्योपैथी पद्धति में सेवा प्रदान करते हैं. आयुष पोर्टल के मुताबिक होम्योपैथी 3,69,32,068 लोगों को उपचार उपलब्ध करवा चुका है.
भारत में अभी तक 245 होम्योपैथी कॉलेज
आपको बता दें कि भारत में होम्योपैथी के अभी तक कुल 245 कॉलेज हैं, इनमें से सालाना 19,572 डाॅक्टर देशभर में होम्योपैथी पद्धति के जरिये सेवा के लिए निकलते हैं. आपको बता दें कि भारत में होम्योपैथी पद्धति, आयुष (AYUSH) मंत्रालय के अतंर्गत आता है. भारत में आयुष मंत्रालय के अतंर्गत आने वाले कुल 3,859 अस्पतालों में से 262 अस्पताल होम्योपैथी की सेवाएं देते हैं. तो वहीं छोटी डिस्पेंसरी की बात करें तो आयुष की कुल 29,951 डिस्पेंसरी में से 27 प्रतिशत (8,230) होम्योपैथी से जुड़ी हुई है.
42 देशों में मिली कानूनी मान्यता
अब बात करते हैं दुनियाभर में होम्योपैथी के स्वरूप की. फिलवक्त दुनिया के 80 से ज्यादा देशों में होम्योपैथी पद्धति के जरिये उपचार किया जा रहा है. और सिर्फ इतना ही नहीं होम्योपैथी को अब तक 42 देशों में चिकित्सा की एक व्यक्तिगत प्रणाली के रूप में कानूनी मान्यता मिल चुकी है. करीब 28 देशों में होम्योपैथी को पूरक और वैकल्पिक चिकित्सा के एक भाग के रूप में मान्यता प्राप्त है.
देश में कहां सबसे ज्यादा इस्तेमाल होती है होम्योपैथी
साल 2016 का NSSO (नेशनल सैंपल सर्वे ऑफिस) का सर्वे साफ बताता है कि पूर्वी भारत के चार अहम राज्यों पश्चिम बंगाल, असम, बिहार और ओडिशा में होम्योपैथी तकनीक से उपचार करने वाले देश के सबसे बड़े राज्यों में शुमार हैं जहां पर होम्योपैथी के द्वारा मरीजों का इलाज किया जाता है. गौरतलब है कि NSSO के सर्वे के मुताबिक पश्चिम बंगाल में 27.4 प्रतिशत लोग होम्योपैथी को अपनाते हैं.
दो सिद्धांतों पर काम करती है होम्योपैथी
आपको बता दें कि आज से करीब 200 साल पहले जर्मनी में होम्योपैथी उपचार पद्धति की शुरूआत हुई थी. होम्योपैथी मुख्यरुप से दो सिद्धांत पर काम करती है. पहला 'Like cure like' जिसका मतलब है कि बीमार लोगों का इलाज करने के लिए ऐसे पदार्थ को खोजना जो कि, स्वस्थ लोगों में समान लक्षण पैदा करता हो. और इसका दूसरा नियम है वो है 'न्यूनतम खुराक का नियम', इसका मतलब है कि दवा की खुराक जितनी कम होगी, उसकी प्रभावशीलता उतनी ही अधिक होगी. होम्योपैथी दवाईयां अधिकतर लाल प्याज, पर्वती जड़ी बूटियों जैसे अर्निका, बेलाडोना, सफेद आर्सेनिक जैसे पौधों और खनिज से तैयार की जाती है.
कम कीमत में बेहतरीन असरदार पद्धति
होम्योपैथी जहां मीठी होने के चलते बच्चें और बुजुर्ग सभी आसानी से खा लेते हैं तो वहीं होम्योपैथी को उपयोगी और कम कीमत में इलाज का बेहतर साधन भी माना जाता है. आपको बता दें कि होम्योपैथी न सिर्फ Cost effective होने के साथ-साथ क्योर भी करता है. बल्कि कोरोना के भीषण काल के समय में आयुष मंत्रालय ने Immunity Booster के तौर पर Album-30 नामक होम्योपैथी दवाई की सिफारिश की थी. जिसपर काफी विवाद भी हुआ था. हालांकि असम जैसे कई राज्यों ने इस दवाई को बड़े स्तर पर आशा वर्कर के जरिए लोगों तक पहुंचाया था.
उपचार की पहली पसंद नहीं लेकिन आखिरी भी बन रही
भले ही हम होम्योपैथी को इलाज का सस्ता और सुगम तरीका मानते हों लेकिन आज भी सबसे ज्यादा लोग एलोपैथि का ही सबसे ज्यादा उपयोग करते हैं क्योंकि लोगों को बीमार होने पर तुरंत ठीक होने की भी जल्दी रहती है. ये अलग बात है कि सभी तरह की पद्धतियों को अपनाने के बाद लोग आखिरकार होम्योपैथी की शरण में जाते हैं. देखने में ये भी आया है कि कोरोना के बाद धीरे-धीरे लोग इसे प्रथम उपचार पद्धति के तौर पर आजमा रहे हैं.
Source : Arun Kumar