विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस: हर 40 सेकेंड पर एक व्यक्ति करता है सुसाइड
10 सितंबर 'विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस' के रूप में मनाया जाता है।
नई दिल्ली:
आत्महत्या की समस्या दिन पर दिन बढ़ती जा रही है। इधर तीन दशकों में विज्ञान की प्रगति के साथ जहां बीमारियों से होने वाली मृत्यु संख्या में कमी हुई है, वहीं इस वैज्ञानिक प्रगति के बीच आत्महत्याओं की संख्या पहले से अधिक हो गई है। यह समाज के हर एक व्यक्ति के लिए चिंता का विषय है। इसलिए 10 सितंबर 'विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस' के रूप में मनाया जाता है।
विश्व स्वास्थ संगठन का अनुमान है कि 8 लाख लोग हर साल आत्महत्या से मर जाते हैं। यानि कि हर 40 सेकेंड पर एक व्यक्ति आत्महत्या से मरता है। इसके 25 गुना लोग आत्महत्या का प्रयास भी करते हैं। इसका दंश वे झेलते हैं वे जिनका कोई अपना आत्महत्या कर चला जाता है।
भारत में आत्महत्या के प्रमुख कारण
भारत में आत्महत्या के प्रमुख कारणों में भयानक बीमारी का होना, पारिवारिक कलह, दांपत्य जीवन में संघर्ष, गरीबी, मानसिक विकार, परीक्षा में असफलता, प्रेम में असफलता, आर्थिक विवाद, राजनैतिक परिस्थितियां होती हैं। स्त्रियों की अपेक्षा पुरुष अधिक आत्महत्या करते हैं। आत्महत्या करने वाली स्त्रियों में सर्वाधिक संख्या उन महिलाओं की है जो विवाहित थीं तथा उम्र 20 से लेकर 29 वर्ष के बीच थीं। इसके अतिरिक्त ऐसी महिलाओं का प्रतिशत सबसे अधिक पाया गया जिन्होंने ससुराल वालों के साथ झगड़ा हो जाने के कारण आग से जलकर आत्महत्या की।
आत्महत्या वैयक्तिक विघटन का चरम रूप होते हुए भी सामाजिक विघटन के घनिष्ठ रूप से संबंधित है। भारत में व्यक्तिगत कारणों में-व्याक्ति शारीरिक व्याधियों कोई असाध्य बीमारी, अत्यंत पीड़ादायी रोग आदि के कारण आत्महत्या कर लेता है।
इसी प्रकार मानसिक विकार के कारण उन्माद, अत्यधिक चिंता, मानसिक अस्थिरता, स्नायुविकार, सदैव हीनता की भावना से ग्रसित रहने, निराशा से घिरे रहने, अत्यधिक भावुक, क्रोधी होना अथवा इच्छाओं का दास होना आदि प्रमुख मानसिक विकार हैं, जिनके अधीन होकर व्याक्ति आत्महत्या कर लेता है।
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इस तरह किया जा सकता है समाधान
- कोई व्यसन शराब, जुआ यौन लिप्सा अथवा अपराधी कार्यो, जैसे व्यक्तिगत दोषों की अधिकता के कारण सामाजिक जीवन से अपना तालमेल करने में असमर्थ रहने पर भी आत्महत्या कर लेता है।
- छात्रों के सिर पर परीक्षा का तनाव रहता है प्रतिस्पर्धा के दौर में और भी बढ़ जाता है। कुछ अभिवावक व अन्य लोग सर्वाधिक अंको को ही महत्व देते हैं जिससे छात्र पर मानसिक दबाव और बढ़ा देते हैं जबकि उसकी अपनी कुछ विषयों को लेकर रुचि व कठिनाइयां होती हैं। उसको उचित मनोवैज्ञानिक निर्देशन दिलाने की जरूरत होती है।
- व्यक्ति के जीवन को सुसंगठित रखने में परिवार का स्थान अत्यधिक महत्वपूर्ण है। परिवार का संगठन नष्ट होने से व्यक्ति की मानसिक शांति, सुरक्षा और व्यक्तित्व में बाधा उत्पन्न होने लगती है तो अपनेजीवन को समाप्त करनेकी भावना प्रबल हो सकती है। जो परिवार तलाक, अलगाव, कलह के कारण टूटी हुयी स्थिति में होते हैं उनमें भी आत्महत्या की घटनाएं अधिक पायी जाती हैं।
- दांपत्य जीवन में आपसी सामंजस्य न होने से और परिवार में दुर्व्यवहार तथा अविश्वास भी कभी-कभी आत्महत्या का कारण बनते हंै। सौतेले रिश्ते के व्यवहार, युवा सन्तानों द्वारा माता-पिता के प्रति तथा सास-ससुर द्वारा नवविवाहिता बहू के साथ गंभीर दुर्व्यवहार से शोषित व्याक्ति द्वारा आत्महत्या करने केपरिणाम देखने को मिलते हैं।
- दहेज प्रथा के कारण कितनी ही अविवाहित लड़कियां तथा नवविवाहित स्त्रियों के द्वारा आत्महत्या की घटनाएं सामने आती हैं। कभी लोग सामाजिक प्रतिष्ठा के पद की हानि के क्षोभ में आत्महत्या कर लेते हैं। राजनैतिक उथल-पुथल और व्यापार बैठ जाने से यह ज्यादा देखने को मिलता है।
- आर्थिक तंगी भी आत्महत्या का कारण बनती है जब निर्धनता के कारण व्यक्ति अपने आश्रितों की अनिवार्य जरूरते पूरी नहीं कर पाता अपने ही बच्चों के सामने तिरस्कृत जीवन व्यतीत करता है। वर्तमान समय में बेकारी की समस्या के चलते युवा बेरोजगार अधिक आत्महत्या करते पाये जाते हैं। साधन सम्पन्न व्यक्ति अचानक व्यापारिक असफलता के कारण से आत्महत्या के लिए विविश हो जाते हैं।
- किसानों की फसल की तबाही और कर्ज की अदायगी की चिंता से हो रही आत्महत्या भी गंभीर समस्या बन गई है। उन्हें केवल कृषि पर निर्भरता के बजाय कोई कृषि आधारित या अन्य उद्योगों से जोड़ना होगा।
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भारत में औद्योगीकरण तथा नगरीकरण में वृद्धि होने के कारण आत्महत्या की घटनाओं में निरंतर वृद्धि होती जा रही है। आज गांवों से शहरों की ओर जाने वाले लाखों श्रमिक एकाकी जीवन व्यतीत करते हैं। मशीनों के शोर में काम करने वाले लाखों लोग जल्दी ही मानसिक विकारो तथा तनाव का शिकार हो जाते हैं।
हजारों दांपत्य बंधन शिथिल पड़ गए हैं, औपचारिक तथा स्वार्थपूर्ण संबंधों के चलते एक औसत आदमी की मानसिक शांति को समाप्त कर देते हैं, भौतिक मूल्यों के बढ़ते हुए प्रभाव ने सामाजिक सामंजस्य की नई समस्याओं को जन्म दिया है।
अन्य समस्याओं की तरह आत्महत्या की समस्या का समाधान करना भी आवश्यक है। इसके लिए अवसाद या आत्महत्या की प्रवृत्ति से ग्रसित व्यक्ति से संपर्क करना होगा। उनके साथ खुलकर संवाद करना होगा, उनके विचार और दृष्टिकोण सहानुभूति पूर्वक जानना होगा, इसके बाद उनकी उचित देखभाल भी करना जरूरी होगा। उनकी मन:स्थिति बदलेगी तो परिस्थितियां भी बदलेंगी।
आत्महत्या की ओर झुके व्यक्ति से सहानुभूतिपूर्वक व्यवहार करके उसकी मन:स्थिति को समझना होगा, उसके भावावेश को कम किया जाय तथा उसे किसी मनोचिकित्सक के पास ले जाना चाहिए।
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रोकथाम
आत्महत्या को रोका जा सकता है। इस वर्ष की विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस की विषय है- संपर्क, संवाद और देखभाल। यह तीन शब्द आत्महत्या की रोकथाम में मूल मंत्र साबित हो सकते हैं। आत्महत्या के पीछे मनोवैज्ञानिक, सामाजिक, आर्थिक, पारिवारिक, व्यक्तिगत, सांस्कृतिक एवं परिस्थकीय कारण होते हैं।
आत्महत्या वैयक्तिक विघटन की चरम अभिव्यक्ति है। व्यक्ति का आत्म जब विभिन्न सामाजिक दबावों के इतना अधीन हो जाता है कि वह अपना जीवन समाप्त कर लेता है, इसी स्थिति को हम आत्महत्या कहते हैं। आत्महत्या व्यक्ति की मानसिक दुर्बलता का परिणाम है, इसलिए इस घटना को एक मानसिक विकार के रूप में देखा जाना चाहिए।
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मनोचिकित्सक से ले सलाह
मनोचिकित्सक उसका समाधान बातचीत से सुझाएंगे और आवश्यक दवाएं भी देंगे। ऐसी समितियों का गठन करना चाहिए जो जीवन में निराश लोगों की समस्याओं का सहानुभूतिपूर्वक विश्लेषण करके उनकी सामाजिक-आर्थिक सुरक्षा का कुछ प्रबंध कर सके। आत्महत्या कम करने के लिए आवश्यक है कि समाज में विभिन्न वर्गों के बीच तथा परिवार में सदस्यों के बीच स्वस्थ संबंधों का विकास हो।
विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस पर रात को 8 बजे लोग अपने घर की खिड़की पर मोमबत्ती जलाकर आत्महत्या के रोकथाम को समर्थन व्यक्त करेंगे। आत्महत्या से बिछड़े प्रियजन को याद करेंगे और आत्महत्या की प्रवृत्ति ग्रसित लोगों के उबरने व उनके खुशहाल जीवन लिए रोशनी का एक दीप रखेंगे।
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