परेशानी भरे बचपन से 'इरिटेबल बॉउल सिंड्रोम' की बढ़ जाती है संभावना
परेशानी या तनाव भरे बचपन की वजह से इरिटेबल बॉउल सिंड्रोम होने की संभावना बढ़ जाती है। इस तरह के सिंड्रोम वाले लोगों में आंत और दिमाग के बीच में संबंध पाया गया है।
नई दिल्ली:
परेशानी या तनाव भरे बचपन की वजह से 'इरिटेबल बॉउल सिंड्रोम' होने की संभावना बढ़ जाती है। इस तरह के सिंड्रोम वाले लोगों में आंत और दिमाग के बीच में संबंध पाया गया है।
शोध के निष्कर्षो से पता चलता है कि दिमाग से पैदा हुए संकेतों से आंत में रहने वाले जीवाणुओं पर असर पड़ता है और आंत के रसायन मानव दिमाग की संरचना को आकार दे सकते हैं। दिमाग के संकेतों में शरीर की संवेदी जानकारी की प्रोसेसिंग शामिल होती है।
न्यूजवीक से लॉस एंजिल्स-कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के ईमरान मेयर ने कहा, 'आंत के जीवाणुओं के संकेत संवेदी प्रणाली विकसित करने के तरीके को आकार देते हैं।'
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मेयर ने पाया, 'गर्भावस्था के दौरान बहुत सारे प्रभाव शुरू होते हैं और जीवन के पहले तीन सालों तक चलते हैं। यह आंत माइक्रोबॉयोम-ब्रेन एक्सिस की प्रोग्रामिंग है।'
इस शोध का प्रकाशन पत्रिका 'माइक्रोबायोम' में किया गया है।
लक्षण
दस्त और कब्ज
कुछ भी खाने के बाद पेट के निचले हिस्से में दर्द
बार-बार गैस की शिकायत
तकरीबन 70 फीसदी लोगों को डायजेस्टिव प्रॉब्लम होने लगी है। बाउल में मसल्स स्पैज्म होने के कारण इरिटेबल बॉउल सिंड्रोम हो जाता है। वैसे इसके लक्षण हर व्यक्ति के अलग-अलग होते हैं।
सामान्य सिम्टम्स में डायरिया, कॉन्स्टिपेशन, एबडोमिनल पेन होने लगता है। एक्सपर्ट्स कहते हैं कि इरिटेबल बॉउल सिंड्रोम होने का सही कारण तो नहीं पता लेकिन स्ट्रेस इस सिंड्रोम का एक बड़ा कारण माना जाता है।
इरिटेबल बोवेल सिंड्रोम आंतों का रोग हैं। जिसमे अचानक बैठे-बैठे एक दम से आंतो में दर्द होने से पेट में दर्द होने लगता हैं।
(इनपुट आईएएनएस)
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