Why Prime Minister Narendra Modi likes Gucchi: पहाड़ों पर बेहद मुश्किल से पायी जाने वाली सब्जी गुच्छी को पसंद करने वाले लोग दुनियाभर में है. यही वजह है कि इसकी कीमत 10,000 रुपये प्रति किलोग्राम से लेकर 30,000 रुपये प्रति किलोग्राम तक रहती है. कई बार मौसम में आए बदलाव के कारण ये कीमत और भी बढ़ जाती है. मीडिया में आयी खबरों के अनुसार प्रधानमंत्री हर दिन सुबह ब्रेकफास्ट में 4 गुच्छी खाते हैं. खबरों के अनुसार जब वो हिमाचल में कार्यकर्ता के रूप में काम करते थे उस समय यहां के स्थानीय मित्रों से उन्हें इस सब्जी के बारे में पता चला. भले ही ये सब्जी बेहद कीमती है, इसे दुनिया की सबसे महंगी सब्जी भी कहा जाता है लेकिन तब से मोदी जी को इसका स्वाद इतना पसंद आया कि अब वो इसे रोज़ाना खाना पसंद करते हैं. वैसे "गुच्छी" एक प्रकार की जड़ी-बूटी भी कही जाती है जो कई आयुर्वेदिक औषधियों में सबसे महत्वपूर्ण घटकों में से एक होती है. गुच्छी के कई स्वास्थ्य लाभ भी हैं -
शक्तिवर्धन: गुच्छी में कई प्रकार के पौष्टिक तत्व पाए जाते हैं जैसे कि प्रोटीन, विटामिन्स, और मिनरल्स, जो शरीर को ऊर्जा प्रदान कर सकते हैं और शक्तिवर्धन में मदद कर सकते हैं.
मानसिक स्वास्थ्य: गुच्छी को मानसिक स्वास्थ्य के लिए भी उपयोगी माना जाता है। इसमें मौद्रिक सत्व होता है, जो मानसिक तनाव को कम करने में मदद कर सकता है और ध्यान को बढ़ा सकता है.
शारीरिक समर्थन: गुच्छी का सेवन शारीरिक समर्थन में मदद कर सकता है, जैसे कि सूजन को कम करना, जोड़ों की स्थिति को सुधारना और शरीर को बल मिलना.
श्वासरोग में सहारा: गुच्छी को श्वासरोग (एस्थमा और ब्रोंकाइटिस जैसे रोगों) में सहारा प्रदान करने के लिए भी जाना जाता है। इसमें एंटी-इन्फ्लेमेटरी गुण हो सकते हैं जो श्वासनली तंतु को शांत करने में मदद कर सकते हैं.
ब्लड प्रेशर कंट्रोल: गुच्छी का नियमित सेवन ब्लड प्रेशर को कंट्रोल करने में मदद कर सकता है और एक स्वस्थ हृदय के लिए फायदेमंद हो सकता है.
आंतरिक शुद्धि: गुच्छी को आंतरिक शुद्धि के लिए भी उपयोगी माना जाता है। इसमें विषाणुक्रिमि नामक एक एंटीबैक्टीरियल गुण हो सकता है जो शरीर को साफ रखने में मदद कर सकता है.
बालों के स्वास्थ्य: गुच्छी के तेल का उपयोग बालों के स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए किया जा सकता है, जिससे बाल मुलायम, चमकीले, और स्वस्थ रह सकते हैं.
गुच्छी एक प्रकार से मशरूम की ही एक प्रजाति है. लेकिन इसकी खेती नहीं होती ये प्राकृतिक रूप से हिमाचल और उत्तराखंड के पहाड़ों में बर्फ पड़ने के दौरान पैदा होती है और मौसम के बाद इसे यहां के स्थानीय लोग जमा करके घर में बनाते हैं. ये इतनी गर्म होती है जिसे खाने से पहाड़ी लोग पहाड़ों की सर्दी में भी आसानी से जीवन जी पाते हैं.
Source : News Nation Bureau