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Omicron को माइल्‍ड समझना बड़ी भूल होगी, WHO ने किया आगाह

अभी भी एक बड़ी आबादी कोरोना की दोनों डोज से वंचित है. यह बीते साल की सबसे बड़ी नाकामी करार दी जा सकती है.

Updated on: 07 Jan 2022, 06:51 AM

highlights

  • 109 देशों की 70 फीसदी आबादी को वैक्सीन की दोनों डोज नहीं मिली
  • टीकाकरण की दोनों डोज लेने वालों के लिए ओमीक्रॉन जानलेवा नहीं
  • ओमीक्रॉन वैक्सीन से बच निकलने में सक्षम, बूस्टर डोज है जरूरी

लंदन/जेनेवा:

कोविड-19 का ओमीक्रॉन (Omicron) वेरिएंट डेल्टा वेरिएंट की तुलना में कम घातक प्रतीत हो रहा है. हालांकि इसका यह मतलब भी कतई नहीं है कि इसे हल्के में लिया जाए. कोरोना महामारी (Corona Epidemic)  की शुरुआत से दुनिया भर में पिछले हफ्ते सबसे ज्यादा संक्रमण के मामले सामने आए हैं. इन्हें देख कह सकते हैं कि ओमीक्रॉन वेरिएंट डेल्टा की तुलना में कम खतरनाक प्रतीत हो रहा है. खासकर जिन लोगों ने कोरोना वैक्सीन (Corona Vaccine) की दोनों डोज ली हुई हैं, उनके लिए ओमीक्रॉन जानलेवा करार नहीं दिया जा सकता है. इस आलोक में यह भी कम गंभीरता वाली बात नहीं है कि 109 देशों में 70 फीसदी आबादी को वैक्सीन की दोनों डोज नहीं मिल सकी है. 

वैक्सीन की सभी को उपलब्धता नहीं होना बड़ी नाकामी
विश्व स्वास्थ्य संगठन के महानिदेशक टैड्रॉस एडहेनॉम घेबरेयेसस ने कहा है कि ओमीक्रॉन ने भी दुनिया भर में कोरोना संक्रमण के नए मामलों की झड़ी लगा रखी है. यह भी डेल्टा वेरिएंट की ही तरह लोगों को संक्रमित कर उन्हें अस्पताल में भर्ती कराने लायक स्थितियां बना रहा है. फिर भी वैक्सीन की पूरी खुराक लेने वालों के लिए यह डेल्टा वेरिएंट जितना जानलेवा नहीं है. वैक्सीन की उपलब्धता और आबादी के लिहाज से उन्होंने चिंता जताई कि अभी भी एक बड़ी आबादी कोरोना की दोनों डोज से वंचित है. यह बीते साल की सबसे बड़ी नाकामी करार दी जा सकती है. 

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कैंब्रिज यूनिवर्सिटी ने किया ओमीक्रॉन पर शोध
इस बीच कैंब्रिज विश्वविद्यालय के भारतीय मूल के एक प्रमुख वैज्ञानिक ने कोरोना के नए वेरिएंट ओमीक्रॉन को लेकर आगाह किया है. उन्‍होंने कहा है कि ओमीक्रॉन की कम गंभीरता अभी के लिए अच्छी बात है, लेकिन यह परिस्थिति से उत्पन्न ‘एक चूक’ का नतीजा है. यह संकेत नहीं देता कि कोविड-19 के लिए जिम्मेदार वायरस कम संक्रामक होता जा रहा है. कैंब्रिज इंस्टीट्यूट फॉर थेरप्यूटिक इम्युनोलॉजी एंड इन्फेक्शस डिसीजेस (सीआईटीआईआईडी) में क्लीनिकल माइक्रोबायोलॉजी के प्रोफेसर रवींद्र गुप्ता ने ओमीक्रॉन वेर‍िएंट पर हाल में हुए एक अध्ययन का नेतृत्व किया है.

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फेफड़ों की कोशिकाओं को कम नुकसान पहुंचा रहा ओमीक्रॉन
अध्ययन में सामने आया कि ब्रिटेन में इस समय प्रकोप फैलाने वाला और भारत में भी फैलता जा रहा वायरस का नया स्वरूप फेफड़ों में पाई जाने वाली कोशिकाओं को कम नुकसान पहुंचा रहा है, लेकिन वायरस अपने आप में हल्का होने वाला नहीं है. प्रोफेसर गुप्ता ने कहा, ‘धारणा है कि वायरस समय के साथ अधिक हल्का होता जा रहा है ,लेकिन यहां ऐसा नहीं हो रहा क्योंकि ये लंबे समय में उत्पन्न हुई प्रवृत्तियां हैं.’ उन्होंने कहा, ‘सार्स-सीओवी-2 (कोविड-19) के साथ यह मुद्दा नहीं है क्योंकि यह बहुत आसानी से फैल रहा है इसलिए इसका खासतौर पर टीकाकरण के दौर में हल्का होने का कोई कारण नहीं है. मुझे लगता है कि यह उत्पन्न स्थिति के लिहाज से हुई चूक है. वायरस स्वत: अपने जीवविज्ञान को बदलने की कोशिश नहीं कर रहा.’ गुप्ता ने कहा, ‘भारत में टीकाकरण बहुत अच्छी तरह शुरू किया गया है. हम जानते हैं कि ओमीक्रोन टीकों से बच निकलने में सक्षम है और तीसरी बूस्टर खुराक आवश्यक है.’