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गर्भ में पल रहे बच्चे की बीमारी के बारे में बताएगा ये TEST

इस अध्ययन में एनआईपीटी स्क्रीनिंग 516 गर्भवतियों पर किया गया, जिनमें पहली और दूसरी तिमाही में पारंपरिक स्क्रीनिंग टेस्ट (डबल मार्कर, क्वॉड्रपल मार्कर टेस्ट) में अत्यधिक जोखिम की जांच की गई।

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Sonam Kanojia
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गर्भ में पल रहे बच्चे की बीमारी के बारे में बताएगा ये TEST

गर्भ में पल रहे बच्चे की बीमारी के बारे में बताएगा ये TEST

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शोध कंपनी मेडजेनोम ने गर्भावस्था में सटीक जांच के लिए नॉन-इनवैसिव प्रीनैटल टेस्टिंग (NIPT) पेश किया है, जो गर्भस्थ शिशु के जन्म से काफी पहले डाउन सिंड्रोम जैसी असामान्य क्रोमोसोम संबंधी गड़बड़ियों का पता लगाने का प्रभावी, सटीक और सुरक्षित तरीका साबित होगा।

मेडजेनोम में एनआईपीटी की कार्यक्रम निदेशक प्रिया कदम ने नुकसानरहित जांच प्रक्रिया के महत्व के बारे में बताया, 'एनआईपीटी किसी खास उम्र के लोगों के लिए नहीं है। इसे बच्चे की सेहत सुनिश्चित करने के लिए सभी गर्भवती महिलाओं को मुहैया कराया जा सकता है। इसके अलावा अधिक सटीक होने, सुरक्षा और गड़बड़ी की कमी की कम दर के कारण एनआईपीटी किसी भी गर्भवती महिला के लिए उपयुक्त विकल्प है। इसे गर्भावस्था के 9वें सप्ताह में ही कराया जा सकता है।'

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उन्होंने कहा, 'एनआईपीटी एक क्रांतिकारी जांच है। बेहतर जागरूकता और स्वीकृति के साथ यह टेस्ट हमारे देश की जेनेटिक गड़बड़ी के बोझ को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।'

कंपनी ने एक बयान में कहा कि मां की बांह से लिए गए खून के मामूली नमूने से एनआईपीटी स्क्रीनिंग टेस्ट में भ्रूण के कोशिकामुक्त डीएनए का विश्लेषण और क्रोमोसोम संबंधी दिक्कतों की जांच की जाती है। यह परीक्षण पूरी तरह सुरक्षित है। इसमें कोई नुकसान नहीं होता है।

99 फीसदी से अधिक स्तर तक बीमारी का पता लगाने की दर और 0.03 फीसदी से भी कम गलती के साथ यह जांच काफी हद तक सटीक है। जिन परिस्थितियों में एनआईपीटी को लागू किया गया, वहां नुकसानदायक प्रक्रियाओं में 50-70 फीसदी तक की महत्वपूर्ण गिरावट दर्ज की गई।

इस अध्ययन में एनआईपीटी स्क्रीनिंग 516 गर्भवतियों पर किया गया, जिनमें पहली और दूसरी तिमाही में पारंपरिक स्क्रीनिंग टेस्ट (डबल मार्कर, क्वॉड्रपल मार्कर टेस्ट) में अत्यधिक जोखिम की जांच की गई।

इन परीक्षणों की पुष्टि नुकसानदायक परीक्षण या जन्म के बाद क्लिनिकल परीक्षण के माध्यम से हुई। जांच के परीक्षणों के लिए 98 फीसदी से अधिक मामलों में कम जोखिम और 2 फीसदी में अधिक जोखिम की जानकारी मिली।

इस बात पर गौर करना चाहिए कि पारंपरिक जांच के माध्यम से अधिक जोखिम वाली गर्भावस्थाओं को एनआईपीटी के साथ कम जोखिम वाला पाया गया। इसका मतलब है कि बड़ी तादाद में महिलाएं (98.2 फीसदी) एमिनोसेंटेसिस जैसी नुकसानदायक प्रक्रियाओं से बच सकती हैं जिससे भावनात्मक परेशानी होती है और इनमें गर्भपात का भी मामूली जोखिम होता है।

मेडजेनोम फिलहाल बेंगलुरू स्थित अपनी सीएपी प्रमाणित प्रयोगशाला में विभिन्न प्रमुख बीमारियों के लिए विभिन्न प्रकार के परीक्षणों की पेशकश कर रही है जिनमें एक्जोम सीक्वेंसिंग, लिक्विड बायोप्सी और करियर स्क्रीनिंग शामिल है।

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Source : IANS

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