सावधान! बच्चों को मोबाइल की लत बड़े खतरे की आहट

कहते सोशल मीडिया दुधारी तलवार है, अब यही हाल घरों में मोबाइल, लैपटॉप, कंप्यूटर के साथ हो रहा. एक ओर जहां ये तमाम साधन जीवन शैली का अनिवार्य हिस्सा बन चुके हैं, वहीं मोबाइल समेत तमाम माध्यमों के जरिए बच्चों में वीडियो गेम्स की लत खतरे का संकेत है.

कहते सोशल मीडिया दुधारी तलवार है, अब यही हाल घरों में मोबाइल, लैपटॉप, कंप्यूटर के साथ हो रहा. एक ओर जहां ये तमाम साधन जीवन शैली का अनिवार्य हिस्सा बन चुके हैं, वहीं मोबाइल समेत तमाम माध्यमों के जरिए बच्चों में वीडियो गेम्स की लत खतरे का संकेत है.

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nitu pandey
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UP के यूनिवर्सिटी और कॉलेजों में मोबाइल के इस्तेमाल पर लगा प्रतिबंध

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कहते सोशल मीडिया दुधारी तलवार है, अब यही हाल घरों में मोबाइल, लैपटॉप, कंप्यूटर के साथ हो रहा. एक ओर जहां ये तमाम साधन जीवन शैली का अनिवार्य हिस्सा बन चुके हैं, वहीं मोबाइल समेत तमाम माध्यमों के जरिए बच्चों में वीडियो गेम्स की लत खतरे का संकेत है. बच्चे अधिक समय अगर वीडियो गेम खेल रहे हैं...मोबाइल के लिए जिद कर रहे हैं...मोबाइल नहीं देने पर गुस्सा कर रहे हैं तो ये संकेत आहट है उस खतरे की जो मासूम में गेमिंग डिसऑर्डर के लक्षण बता रहा है. चाइल्ड स्पेशलिस्ट अशोक गुप्ता की माने तो बच्चों में यह खतरा बड़ी तेजी से फैल रहा है.

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बच्चों में मोबाइल की लत को विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने बीमारी माना है. मोबाइल पर गेम खेलते हुए अगर बच्चे से मोबाइल छीनने पर वह गुस्से में रिएक्ट करे तो समझिए वह गेमिंग डिसऑर्डर का शिकार हो रहा है. वहीं, बच्चों में तेजी से ओबेसिटी नजर आने लगे, बिहेवियर चेंज भी दिखे और खान-पान में अरुचि या जिद दिखाए तो सावधान हो जाइए, जयपुर के डॉक्टर्स का भी ऐसा ही मानना है. वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन ने ऑफिशियल तौर पर अपने इंटरनेशनल क्लासिफिकेशन ऑफ़ डिजीज के ग्यारहवें एडिशन में गेमिंग को डिसऑर्डर की तरह जोड़ा है यानी अब से गेमिंग की लत को मानसिक बीमारी के रूप में देखा जा सकता है. हाल ही हुई 72वी असेंबली में डब्ल्यूएचओ के 194 मेंबर्स ने इस प्रस्ताव पर हामी भर इसे बीमारी की तरह मंजूर किया. क्या कहते हैं शहर के डॉक्टर्स.

आमतौर पर हम बच्चों में मौसम और दूसरी परेशानी समझ कर डॉक्टर्स के पास ले जाते हैं, लेकिन असल में डॉक्टर्स खुद ही आजकल पूछते हैं...क्या बच्चा मोबाइल पर ज्यादा समय तो नहीं बिताता. गेम तो ज्यादा नहीं खेलता. एक साथ डॉक्टर्स के कई सवाल पूछने पर आखिर पेरेंट्स भी कहते हैं कि हां ऐसा तो हो रहा है.

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चिड़चिड़ापन, अबेसिटी, बिहेवियर चेंज, अरुचि, नींद कम अना और खोया-खोया रहना, ये सब मोबाइल के ज्यादा इस्तेमाल से हो सकते हैं. परफॉरमेंस प्रेशर के चलते 15 से 25 साल की उम्र के बीच गेमिंग डिसऑर्डर डेवलप होने की संभावना रहती है.

वही सोशल मीडिया पर रिसर्च कर रहे एक्सपर्ट राजेन्द्र सिंह का कहना आगे चलकर यही लत बच्चो में अपराध को जन्म देता है,बच्चे आत्महत्या तक कर लेते हैं. बच्चों में यह तेजी से फैल रही बीमारी है जिसका इलाज परिवार के सहयोग से ही सम्भव है.

Source : News Nation Bureau

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