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डायबिटीज और हाइपरटेंशन के कारण भारत में हर साल किडनी फेल के 1,75,000 मामले दर्ज

क्रोनिक किडनी रोग (सीकेडी) मामलों में से लगभग 60 से 70 प्रतिशत मामले डायबिटीज और हाइपरटेंशन के कारण होते हैं।

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Aditi Singh
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डायबिटीज और हाइपरटेंशन के कारण भारत में हर साल किडनी फेल के 1,75,000 मामले दर्ज
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भारत में प्रति वर्ष किडनी फेल होने के लगभग 1,75,000 नए मामले सामने आते हैं और इन्हें डायलिसिस या गुर्दा प्रत्यारोपण की आवश्यकता होती है। क्रोनिक किडनी रोग (सीकेडी) मामलों में से लगभग 60 से 70 प्रतिशत मामले डायबिटीज और हाइपरटेंशन के कारण होते हैं।

इंडियन सोसायटी ऑफ नेफ्रोलॉजी की 48वीं वार्षिक कांग्रेस - 'इस्नकॉन 2017' सम्मेलन में क्रोनिक किडनी रोग (सीकेडी) पर विशेषज्ञों ने विस्तार से चर्चा की। गुरुवार को शुरू हुए तीन दिवसीय इस सम्मेलन में लगभग 1500 राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय प्रतिनिधि दुनिया भर में किडनी रोग के खतरे से निपटने सहित अन्य कई मुद्दों पर विचार विमर्श किया।

सम्मेलन के पहले दिन किडनी की उम्र बढ़ने संबंधी मौजूदा सिद्धांतों और विवादों पर चर्चा की गई। बताया गया कि आनुवंशिक या जेनेटिक टेस्ट के नतीजे समय के साथ नहीं बदलते। मैग्नीशियम से नेफ्रोलॉजिस्ट कब परेशान होते हैं वाले सत्र में संकेत मिला कि हाइपो और हाइपर मैग्नेसेमिया होना आम बात है, विशेष रूप से अस्पताल में भर्ती मरीजों में, और इसका जांच के लक्षणों में शामिल होना जरूरी नहीं है।

इस्नकॉन के आयोजन सचिव एवं मेदांता - दि मेडिसिटी में नेफ्रोलॉजी, किडनी एंड यूरोलॉजी इंस्टीट्यूट के निदेशक डॉ. श्याम बिहारी बंसल ने बताया, 'गुर्दे की बीमारियों की जांच गुर्दे के आकार और बनावट, ईकोजेनिसिटी, मूत्र-स्थान, रीजनल टेक्चर और वास्क्यूलेचर (प्रतिरोधक सूचकांक) पर निर्भर करती है।'

ऑर्गनाइजिंग चेयरमैन डॉ. संजीव सक्सेना ने कहा, 'सीकेडी एक छिपा हत्यारा है और यदि इसे ठीक से ट्रीट न किया जाए, तो यह हृदय रोग और किडनी फेल होने का खतरा बढ़ा सकता है। किडनी के पुराने रोगियों को अक्सर आखिरी स्टेज में किडनी की विफलता वाले रोगियों की अक्सर आखिरी स्टेज में ही पहचान हो पाती है। गुर्दा संबंधी कुछ रोग गर्भवती महिलाओं को भी प्रभावित कर सकते हैं। इस क्षेत्र में हो रहे शोध के लिहाज से यह सम्मेलन अत्यंत महत्वपूर्ण है। ज्ञान साझा करने के इस मंच के माध्यम से, हम सीकेडी के बढ़ते खतरे से निपट सकते हैं और समाज के एक बड़े हिस्से में जागरूकता पैदा कर सकते हैं।'

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हाइपो और हाइपर मैग्नेसेमिया लक्षणों में भिन्नता दर्शाते हैं, जिससे सीरम मैग्नीसियम का आकलन किए बिना रोग की पहचान करना मुश्किल हो जाता है। कुछ अन्य दिलचस्प सत्र भी हुए, जैसे कि सेप्सिस एवं पीडियाट्रिक एक्यूट किडनी चोट, प्रमुख जांच, एक नेफ्रोलॉजिस्ट को क्या-क्या मालूम होना चाहिए, और सीकेडी के निदान में कम और अधिक जांच से कैसे बचाव किया जाये।

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Source : IANS

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