वैक्सीन डिप्लोमेसी के साथ सहयोगी देशों का दिल जीतने में लगा भारत
चीन की आक्रामक छवि के विपरीत भारत वैक्सीन डिप्लोमेसी की मदद से करुणा और उदारता के साथ अपनी नरम शक्ति (सॉफ्ट पावर) और मूल दार्शनिक मूल्यों को मजबूत कर रहा है.
नई दिल्ली:
चीन की आक्रामक छवि के विपरीत भारत वैक्सीन डिप्लोमेसी की मदद से करुणा और उदारता के साथ अपनी नरम शक्ति (सॉफ्ट पावर) और मूल दार्शनिक मूल्यों को मजबूत कर रहा है. सरकार ने दुनिया भर में कम से कम 20 देशों को आपूर्ति की गई 170 लाख खुराक में से अब तक कोविड-19 टीकों (वैक्सीन) की 62 लाख से अधिक खुराक अपने पड़ोसी देशों को प्रदान की हैं. विदेश मंत्रालय के आधिकारिक आंकड़ों से यह जानकारी मिली है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विजन के अनुसार, बांग्लादेश (20), म्यांमार (15), नेपाल (10) श्रीलंका (5), अफगानिस्तान (5), भूटान (1.5) और अन्य स्थानीय रूप से निर्मित एस्ट्राजेनेका पीएलसी वैक्सीन की 62 लाख से अधिक खुराक वितरित की हैं.
विस्तारित पड़ोसी देशों की बात की जाए तो भारत ने मालदीव, मॉरीशस, सेशेल्स, बहरीन, ओमान, बारबाडोस और डोमिनिका को वैक्सीन की खुराक दी है. वैश्विक वैक्सीन उत्पादन में लगभग 60 प्रतिशत भारत का योगदान होता है, जो इस क्षेत्र में टीकों का सबसे बड़ा उत्पादक है. कोविड-19 टीकों के अलावा भारत विश्व स्तर पर डीपीटी, बीसीजी और मीजल्स टीकों का सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता है. डब्ल्यूएचओ ने अपने जरूरी टीकाकरण का 70 प्रतिशत हिस्सा भारत से ही मंगवाया है.
अनुदान के अलावा, भारत ने बांग्लादेश (50), ब्राजील (20), मोरक्को (20), मिस्र (0.5), अल्जीरिया (0.5), दक्षिण अफ्रीका (10), कुवैत (2) और यूएई (2) सहित 105 लाख खुराक बेची हैं. जब पिछले साल जनवरी में कोरोनावायरस महामारी फैली, तो सभी बड़ी और उन्नत अर्थव्यवस्थाओं में घातक वायरस का टीका विकसित करने की होड़ मच गई. खतरनाक वायरस से अभी तक विश्व भर में लाखों लोग संक्रमित हो चुके हैं. दुनिया भर में अब तक 23 लाख से अधिक लोगों ने अपनी जान गंवाई है.
अब तक, केवल दस टीके, जिनमें ब्रिटेन और स्वीडन द्वारा उत्पादित ऑक्सफोर्ड-एस्ट्राजेनेका वैक्सीन और भारत में भारत बायोटेक द्वारा उत्पादित बीबीवी 152 शामिल हैं, सार्वजनिक उपयोग के लिए अधिकृत हैं. भारत का कड़ा प्रतिद्वंद्वी चीन भी वैक्सीन निर्माण की दौड़ में रहा है. संयुक्त राज्य अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन ने महामारी के लिए बीजिंग को जिम्मेदार ठहराया था. इसके बाद चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (सीसीपी) ने दुनिया में अपनी छवि को सुधारने का काम शुरू किया.
हालांकि दक्षिण चीन सागर में तेजी से किए गए सैन्यीकरण और लगातार अपनाई जा रही आक्रामकता, हांगकांग में लोकतंत्र समर्थक की आवाज उठना, ताइवान पर कब्जा करने की धमकी, शिनजियांग प्रांत में उइगर मुसलमानों का उत्पीड़न, तिब्बत पर कब्जा और वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) के पास भारतीय क्षेत्र में यथास्थिति को बदलने जैसे प्रयास चीन के मंसूबों को जगजाहिर कर रहे हैं. इसके विपरीत नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार ने अपने पड़ोसियों के साथ भारत के संबंधों को मजबूत करने के लिए 'वैक्सीन कूटनीति' के साथ तेजी से और चतुराई से कदम उठाए हैं.
यहां सरकार में वरिष्ठ अधिकारियों का मानना है कि चीन के प्रभुत्व का मुकाबला करने के लिए भारत द्वारा उठाए गए इन कदमों का दीर्घकालिक प्रभाव पड़ेगा. सरकार के सूत्रों ने कहा कि चीन का प्रभाव धीरे-धीरे खत्म हो रहा है और हाल ही में उसकी नकारात्मक छवि की वजह से केवल उसकी साम्राज्यवादी नीतियों का प्रभाव ही बढ़ रहा है.
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