logo-image

‘भारतीयों में Diabetes का पता लगाने में मददगार हो सकता है जीन का अध्ययन’

भारतीयों में टाइप-1 मधुमेह (Type-1 Diabetes) का पता लगाने में 'आनुवंशिक जोखिम अंक' प्रभावशाली हो सकता है. एक नए अध्ययन में यह बात सामने आई है. आनुवंशिक जोखिम अंक जीन से जुड़े खतरों का आकलन होता है.

Updated on: 13 Jun 2020, 01:27 PM

हैदराबाद:

भारतीयों में टाइप-1 मधुमेह (Type-1 Diabetes) का पता लगाने में 'आनुवंशिक जोखिम अंक' प्रभावशाली हो सकता है. एक नए अध्ययन में यह बात सामने आई है. आनुवंशिक जोखिम अंक जीन से जुड़े खतरों का आकलन होता है. शुक्रवार को जारी अध्ययन के परिणामों के अनुसार मधुमेह का पता लगाने के दौरान इस अंक से यह मालूम करने में मदद मिलती है कि क्या कोई व्यक्ति टाइप-1 मधुमेह से ग्रसित है या नहीं.

ये भी पढ़ें: Diabetes मरीजों को डॉक्टरों की सलाह, कोरोना काल में रहें अधिक सतर्क

अध्ययन के अनुसार मधुमेह के दोनों प्रकारों के लिए अलग-अलग उपचार की आवश्यकता होती है. टाइप-1 मुधमेह के लिए जीवनभर इन्सुलिन इन्जेक्शन लेने की आवश्कता होती है, जबकि टाइप-2 मधुमेह (Type-2 Diabetes) को आहार में बदलाव या गोलियां खाकर नियंत्रित किया जा सकता है. इस संबंध में यूरोपीय लोगों पर कई अनुसंधान किए जा चुके हैं.

‘साइंटिफिक रिपोर्ट्स’ में प्रकाशित शोधपत्र के अनुसार अनुसंधानकर्ताओं के दल ने टाइप-1 मधुमेह से ग्रसित 262 और टाइप-2 मधुमेह से ग्रसित 352 लोगों के अलावा 334 ऐसे लोगों पर अध्ययन किया, जिन्हें मधुमेह नहीं है.

ये भी पढ़ें: आने वाले 5 सालों में 6.9 करोड़ लोग होंगे Diabetes के शिकार

ये सभी भारतीय मूल के थे. इस परिणाम की यूरोपीय लोगों पर हुए अध्ययन से तुलना की गई. पुणे स्थित केईएम अस्पताल, हैदराबाद स्थित सीएसआईआर-कोशिकीय एवं आणविक जीवविज्ञान केंद्र (सीसीएमबी) और ब्रिटेन स्थित यूनिवर्सिटी ऑफ एक्सेटर के अनुसंधानकर्ताओं ने यह अध्ययन किया.