कोरोना संक्रमण पर विशेषज्ञों की राय, कहा- अभी भी दूसरी लहर का खतरा बरकरार
महामारी के दौरान पिछले वर्ष सितंबर का महीना सबसे खराब महीना था जब एक दिन में 97,000 तक मामले दर्ज किए गए और कई दिनों तक यह आंकड़ा एक लाख के करीब भी पहुंच गया. इसके कारण कई लोगों ने अपनी जान भी गंवाई.
नई दिल्ली:
भारत में कोरोनोवायरस के मामलों में तेज गिरावट नाटकीय और हैरान कर देने वाली है, क्योंकि यह शुरुआती आंकड़ों के बिल्कुल विपरीत है जिसमें कोविड-19 के कारण लाखों लोगों की मौत की भविष्यवाणी की गई थी. महामारी के दौरान पिछले वर्ष सितंबर का महीना सबसे खराब महीना था जब एक दिन में 97,000 तक मामले दर्ज किए गए और कई दिनों तक यह आंकड़ा एक लाख के करीब भी पहुंच गया. इसके कारण कई लोगों ने अपनी जान भी गंवाई. कई लोगों का मानना था कि महामारी नियंत्रण से बाहर हो जाएगी और घनी आबादी वाले अधिकांश शहरों में तबाही मचाएगी.
पिछले साल दिसंबर तक कोविड के परीक्षण में तेजी आई और धीरे-धीरे मामलों में गिरावट दर्ज होने लगी. बाद में ऐसी भी बातें फैलाई गईं कि देश में महामारी कम होने लगी है. हालांकि पहले भविष्यवाणी की गई थी कि इस वायरस से बहुत ही गंभीर परिणाम सामने आ सकते हैं. उदाहरण के लिए दिल्ली, जिसे कोरोनोवायरस का हॉटबेड माना जाता था, में दिवाली के बाद कोरोना मामलों की संख्या में निरंतर गिरावट दर्ज की गई. हालांकि दिवाली से पहले ऐसे हालात नहीं थे. राष्ट्रीय राजधानी में हाल ही में 10 महीने के अंतराल के बाद मौत का आंकड़ा लगभग नगण्य हो गया है.
केवल दिल्ली ही नहीं, कई अन्य शहरों में भी कोरोना के मामलों में गिरावट देखी गई. फरवरी से भारत में औसतन प्रतिदिन 10,000 मामले दर्ज हो रहे थे. लेकिन ये गिरावट कुछ अजीब प्रतीत हो रही है क्योंकि यह स्थिर नहीं है और कई राज्यों में फिर से अचानक मामले सामने आने लगे हैं. आईसीएमआर के पूर्व उप निदेशक रमन गंगाखेड़कर ने कहा कि अब तक हम उस स्थिति में नहीं पहुंचे हैं (जिसका अर्थ है कि 75 प्रतिशत आबादी वायरस से संक्रमित हो गई है). एक सर्वे के मुताबिक, केवल 22 प्रतिशत लोग ही संक्रमित हुए, इसलिए आबादी का एक बड़ा हिस्सा अभी भी असुरक्षित है.
उन्होंने कहा कि सभी प्रतिबंधों को हटा दिए जाने के बाद और जीवन के पटरी पर वापस आने के बाद लोग दोबारा संक्रमित हो सकते हैं और वायरस की चपेट में आ सकते हैं.गंगाखेड़कर ने कहा कि लोगों को कोविड के सभी नियमों को अपनाने की जरूरत है क्योंकि लॉकडाउन को हमेशा के लिए लागू नहीं किया जा सकता. हमें स्कूल और कॉलेज खोलने के लिए विकेंद्रीकृत दृष्टिकोण अपनाने की जरूरत है. महामारी का यह उभरता चलन अधिक जटिल होता जा रहा है. कोविड मामलों में लगभग तीन महीनों में पहली बार लगातार चार दिनों तक वृद्धि दर्ज की गई है. वायरस से सबसे ज्यादा प्रभावित महाराष्ट्र में फिर से नए मामले उजागर होने के बाद इस बात के संकेत मिल रहे हैं कि महामारी फिर से उभर सकती है.
सेल्युलर एंड मॉलिक्यूलर बायोलॉजी (सीएसआईआर-सीसीएमबी), हैदराबाद के वैज्ञानिक व औद्योगिक अनुसंधान केंद्र में निदेशक राकेश मिश्रा ने कहा कि मुझे लगता है कि महाराष्ट्र और केरल में लोग बहुत ढिलाई बरत रहे हैं. हालांकि कोरोना मामलों में गिरावट उत्साहजनक है (विशेष रूप से घनी आबादी वाले हॉटस्पॉट में, जहां शायद 50 फीसदी लोग संक्रमित हुए हैं), लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि महामारी दूर हो गई है. दिल्ली स्थित एक थिंक-टैंक, पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष के. श्रीनाथ रेड्डी ने कहा कि यह तीन कारकों पर निर्भर करेगा: कितने लोग कोविड नियमों का पालन नहीं कर रहे हैं; कितने व्यक्तियों ने टीका लगवाया है, और क्या वायरस के अधिक संक्रामक म्यूटेंट को फैलने के अवसर दिए गए?
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