'हेल्थ इज वेल्थ' अच्छी सेहत ही सबसे बड़ा धन है। दुनिया भर में लोगों को जागरुक करने के लिए विश्व स्वास्थ्य दिवस पर संयुक्त राष्ट्र ने 'डिप्रेशन' विषय पर फोकस किया। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) डिप्रेशन पर एक साल का कैंपेन लीड कर रहा है। इस कैंपेन का उद्देश्य है कि दुनिया भर में जितने भी लोग डिप्रेशन का शिकार है उनकी सहायता करना। इस साल की थीम 'डिप्रेशन: lets talk' है।
WHO के अनुमानों के मुताबिक दुनियाभर में 30 करोड़ से ज्यादा लोग डिप्रेशन से ग्रस्त हैं। WHO के मुताबिक डिप्रेशन से ग्रस्त लोगों की संख्या 2005 से 2015 के दौरान 18 फीसदी से अधिक बढ़ी है।
डिप्रेशन बढ़ने पर यह आत्महत्या के लिए मजबूर कर देता है जिसकी वजह से हर साल हजारों की संख्या में लोगों की मौत होती है। कभी -कभी जब तनाव बहुत ज्यादा बड़ जाता है तो वह डिप्रेशन का रूप ले लेता है।
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डिप्रेशन में दिमाग में नकारात्मक सोच बढ़ने लगती है। डिप्रेशन बूढ़े या ज्यादा उम्र के लोगों में तेजी से बढ़ता है। डिप्रेशन को अक्सर अनदेखा कर दिया जाता है। अकेले रहना, दूसरों के साथ न घुलना- मिलना, ज्यादातर अकेले रहना, दूसरों पर निर्भर रहना डिप्रेशन के कारणों की तरफ इशारा करते है।
डिप्रेशन लाइलाज नहीं है। डिप्रेशन से निकलने के लिए बात करें और अपनी परेशानियों के बारे में अपने करीबी, परिजन, दोस्त, डॉक्टर के साथ बात करें।
- WHO के मुताबिक पांच में से एक व्यक्ति तनाव और डिप्रेशन से जूझ रहा है।
- डिप्रेशन और चिंता के कारण अमेरिका की वैश्विक आर्थिक को एक ट्रिलियन डॉलर नुकसान होता है।
- दुनिया भर में डिप्रेशन विकलांगता का सबसे बड़ा कारण है।
- सरकारी स्वास्थ्य बजट का सिर्फ 3 प्रतिशत मानसिक स्वास्थ्य में निवेश किया जाता है।
- एंटीडेप्रेस्सेंट मेडिकेशन और टॉकिंग थेरेपी से डिप्रेशन से बाहर निकला जा सकता है।
- जिसपर सबसे ज्यादा विश्वास करते है उनसे बात करें क्यूंकि चुप रहना इसका समाधान नहीं है।
- किसी प्रोफेशनल डॉक्टर की मदद लें।
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Source : News Nation Bureau