logo-image

कोरोना से संक्रिमत मरीज तीन तरह के, स्वास्थ्य मंत्रालय ने बताया- क्या करें तीनों 

केंद्र सरकार ने कोरोना से संक्रमित मरीजों के इलाज के लिए क्लीनिकल गाइडलाइन में संशोधन किया है. इस दिशा-निर्देशों के मुताबिक, डॉक्टरों को स्टेरॉयड देने से मरीजों को बचना चाहिए.

Updated on: 18 Jan 2022, 06:09 PM

नई दिल्ली:

केंद्र सरकार ने कोरोना (corona virus) से संक्रमित मरीजों के इलाज के लिए क्लीनिकल गाइडलाइन में संशोधन किया है. इस दिशा-निर्देशों के मुताबिक, डॉक्टरों को स्टेरॉयड देने से मरीजों को बचना चाहिए. अगर मरीजों को लगातार खांसी आ रही है तो उन्हें ट्यूबरक्लोसिस की जांच कराने की सलाह देनी चाहिए. टास्क फोर्स चीफ के दूसरी लहर के दौरान दवाओं के ओवर डोज़ पर खेद जताने के कुछ दिन बाद यह गाइडलाइन जारी की गई है.

केंद्र की संशोधित गाइडलाइन के अनुसार, स्टेरॉयड म्यूकरमाइकोसिस यानी ब्लैक फंगस जैसी खतरनाक बीमारी सेकेंडरी इंफेक्शन को बढ़ावा दे सकती है. समय से पहले स्टेरॉयड का प्रयोग या लंबे समय तक स्टेरॉयड का हाई डोज देने की गलती इस तरह की जोखिम को बढ़ा सकती है. सिर्फ जरूरत पड़ने पर हल्के, मध्यम या गंभीर लक्षणों के आधार पर ही स्टेरॉयड दिए जाने चाहिए.

गाइडलाइन के मुताबिक, अगर किसी को दो-तीन सप्ताह से अधिक समय तक खांसी आ रही है तो मरीजों की ट्यूबरक्लोसिस या किसी दूसरी समस्या को भी जांच होनी चाहिए. आपको बता दें कि पिछले सप्ताह एक कॉन्फ्रेंस में नीति आयोग के सदस्य डॉ. वीके पॉल ने स्टेरॉयड के मिसयूज और ओवरयूज पर चिंता जताई थी.

कब केस माइल्ड समझा जाएगा?

संशोधित गाइडलाइन के मुताबिक, माइल्ड डिसीज में सांस में तकलीफ या हाइपोक्सिया जैसी समस्याओं के बिना अपर रेस्पिरेटरी ट्रैक्ट (गले-नाक से जुड़े लक्षणों) के लक्षणों को गिना जाता है. ऐसी स्थिति में सिर्फ होम आइसोलेशन की सलाह दी जाती है. माइल्ड कोरोना से संक्रमित मरीज तभी मेडिकल सहायता ले सकते हैं जब उन्हें सांस में तकलीफ, तेज बुखार या 5 दिन से ज्यादा खांसी है.

मॉडरेट कैटेगरी के लिए ये लक्षण जरूरी

अगर सांस में तकलीफ के साथ किसी मरीज का ऑक्सीजन सेचुरेशन 90-93 फीसदी के बीच है तो अस्पताल में उन्हें दाखिल किया जा सकता है और ऐसे केसों को मॉडरेट मामले के रूप में देखा जा सकता है. जरूरत पड़ने पर कुछ मरीजों को ऑक्सीजन सपोर्ट पर भी रखा जा सकता है.

गंभीर केसों की ऐसे पहचान होगी 

रेस्पिरेटरी रेट प्रति 30 मिनट से ज्यादा, सांस लेने में दिक्कत या रूमएयर में ऑक्सीजन सैचुरेशन 90 फीसदी से कम होने पर कोई मामला गंभीर समझा जाना चाहिए. ऐसी दिक्कत होने पर आईसीयू में मरीज को भर्ती करना होगा, क्योंकि उन्हें रेस्पिरेटरी सपोर्ट की जरूरत होगी. नॉन इनवेसिव वेंटीलेशन (NIV), हेलमेट या फेस मास्क इंटरफेस की सुविधा उपस्थिति पर निर्भर होगी. इसमें सांस में तकलीफ वाले मरीजों को प्राथमिकता दी जा सकती है.

मध्यम से गंभीर लक्षण वाले मरीज या फिर जिन्हें लक्षण दिखने के दस दिन बाद से रेनल या हेपेटिक डिसफंक्शन (गुर्दे-जिगर से जुड़ी समस्या) नहीं हुआ है, रेमेडिसविर के आपातकालीन उपयोग की सिफारिश को उनके लिए जारी रखा गया है. ऑक्सीजन या होम सेटिंग्स में न रहने वाले मरीजों के उपचार में ड्रग के इस्तेमाल को लेकर चेतावनी दी गई है. 

किन लोगों को खतरा

संशोधित गाइडलाइन के अनुसार, 60 से अधिक आयु के लोगों या कार्डियोवस्कूयलर डिसीज, हाइपरटेंशन, कोरोनरी आर्टरी डिसीज, डायबिटिज या इम्यूनोकॉम्प्रोमाइज्ड स्टेट जैसे कि एचआईवी, क्रॉनिक लंग, ट्यूबरक्लोसिस, किडनी या लिवर डिसीज, केयरब्रोवस्कयूलर डिसीज और मोटापे से ग्रस्त लोगों में गंभीर रूप से बीमार पड़ने या मौत की आशंका ज्यादा रहती है.