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कोरोना शारीरिक ही नहीं मानसिक बीमारी भी लेकर आएगी साथ! बचने के लिए उठाए ये कदम

कोरोना अब ना सिर्फ हमें शारीरिक रूप से परेशान कर रहा है, बल्कि मानसिक रूप से भी लोगों को विचलित करने लगा है.मानसिक स्वास्थ्य को लेकर डब्लूएचओ ने एक गाइड लाइन जारी की है.

Updated on: 21 Mar 2020, 09:43 PM

नई दिल्ली:

कोरोना वायरस को भले ही हम अपनी आंखों से नहीं देख पा रहे हो...लेकिन इसका डर एक राक्षक की छवि ले चुका है. दुनिया के 176 मुल्क कोरोना रूपी राक्षस की जद में है. हर तरफ इसी की बात हो रही है. इस राक्षस को मात देने के लिए सोशल डिस्टेंसिंग (आसपास के लोगों से दूरी) और आइसोलेशन (खुद को भीड़ से अलग करना) जैसे शब्द लगातार सुनने को मिल रहा है. लोग खुद को घर में कैद भी करने लगे हैं, क्योंकि कोरोना राक्षस को हराना है तो इसका उपाय सीधा यही है कि खुद को लोगों से अलग-थलग कर लो और हाथों को साफ करते रहो.

कोरोना (Corona) अब ना सिर्फ हमें शारीरिक रूप से परेशान कर रहा है, बल्कि मानसिक रूप से भी लोगों को विचलित करने लगा है. एक डर जो अवचेतन में बैठ गया है उसका क्या करें. हर तरफ कोरोना की चर्चा, खबरों में कोरोना. संक्रमण से ज्यादा खतरनाक कहीं मेंटल हेल्थ ना हो जाए. विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने भी इसपर चिंता जाहिर कर दिया है. मानसिक स्वास्थ्य को लेकर डब्लूएचओ ने एक गाइड लाइन जारी की है. WHO ने लोगों को सलाह दी है कि ज्यादा न्यूज देखने से बचें. दिन में एक या दो बार न्यूज चैनल या फिर न्यूज वेबसाइट देखें. आधिकारिक सूचनाओं के बारे में ही जानकारी लें.

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क्योंकि चैनल्स और वेबसाइट आगे आने की होड़ में आकंड़ों में हेराफेरी करने से बाज नहीं आते हैं. वो लोगों सतर्क कम डराने का काम ज्यादा करते हैं. इसलिए न्यूज चैनल ज्यादा मत देखें. कोरोना वायरस उन्हें और ज्यादा प्रभावित कर सकता है जो एंग्जायटी या फिर ऑब्सेसिव कंपल्शन के शिकार हैं. उनके लिए यह वक्त बेहद ही भयानक है.

नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ न्यूरो साइंसेज (NIMHANS)के मनोवैज्ञानियों ने इन खतरों को लेकर अध्ययन किया. इस टीम के सदस्य डॉ मनोज शर्मा का कहना है कि कोरोना से लोग बच जाएंगे लेकिन इससे बड़ा खतरा मानसिक स्वास्थ्य को लेकर है. मन में ऐसा डर पैदा होगा जिसे अनदेखा करना सही नहीं होगा.

एक वेबसाइट पर बातचीत के दौरान मनोज शर्मा का कहना है कि यह डर सबसे ज्यादा टीवी चैनल्स और इंटरनेट बढ़ा रहे हैं. जो लोग होम आइसोलेशन में हैं. काम बंद कर घर में हैं उनका ज्यादातर वक्त इंटरनेट पर न्यूज देखने में जा रहा है. वो लगातार न्यूज चैनल्स देख रहे हैं. इसकी वजह से उनके अंदर डर और बढ़ता जा रहा है.

एशियन जर्नल ऑफ साइकियाट्री में यह रिसर्च पेपर रिव्यू के बाद प्रकाशित होगा. इसमें मेंटल हेल्थ को लेकर उपजे खतरों से निपटने के लिए कुछ सलाह भी दी गई हैं.

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उनका कहना है कि जो लोग आइसोलेशन में हैं उनकी मेंटल हेल्थ की स्क्रिनिंग करनी चाहिए. उन्हें डायग्नोस करना चाहिए कि उन्हें एंग्जायटी या ओसीडी जैसे डिसार्डर तो नहीं. अगर वो हैं तो उनकी ठीक होने के बाद काउंसलिंग करनी चाहिए. परिवार में उन लोगों को भी ध्यान रखना होगा कि कहीं घर का कोई सदस्य डिप्रेशन का शिकार तो नहीं है. उन्हें ऐसी खबरों से दूर रखें. घर में माहौल ठीक रखें.

हाल ही में सफदरजंग में एक कोरोना संक्रमित शख्स ने छत से कूद कर जान दे दी. इसके पीछे डर वजह है जो उसके मानसिक स्थिति को लगातार खराब कर रही थी. इसलिए देश में एक मनोवैज्ञानिकों की टीम तैयार करनी चाहिए जो सोशल डिस्टेंसिंग , आइसोलेशन से उपजा तनाव को कम करने में लोगों की मदद करें.

कई देशों ने इसपर काम भी शुरू कर दिया है. काउंसलर तैनात किए गए हैं. मनोविश्लेषकों की टीम को सजग कर दिया गया है.लोगों की काउंसलिंग की जा रही है. भारत को भी इसी तरह की पहल शुरू करनी होगी. इसके साथ ही घर में रहने वाले लोग अपने शौक पूरे करें. गार्डनिंग करें.. डांस करें...किताबें पढ़ें...यानी जो आपको अच्छा लगें वही काम करें. आशंकाओं और अफवाहों पर बिल्कुल ध्यान मत दें.