logo-image

पैदा होने से पहले ही कम्पटीशन, सफलता के लिए स्पर्म भी देते हैं अपने प्रतियोगी को जहर

किसी जीव के जन्म की शुरूआत एक भयानक प्रतियोगिता से ही हो रही है. एक शोध में स्पर्म यानी शुक्राणु को लेकर ये जानकारी सामने आई है.

Updated on: 05 Feb 2021, 05:16 PM

नई दिल्ली:

किसी जीव के जन्म से पहले ही प्रतियोगिता का दौर शुरू हो जाता है. एक स्पर्म यानी शुक्राणु, जिसकी बदौलत पूरा शरीर बनता है, हो सकता है उसने एग सेल यानी अंडा कोशिका से मिलने के लिए बहुत से प्रतियोगियों को जहर देकर खत्म कर दिया हो. यानी किसी जीव के जन्म की शुरूआत एक भयानक प्रतियोगिता से ही हो रही है. एक शोध में स्पर्म यानी शुक्राणु को लेकर ये जानकारी सामने आई है. बर्लिन स्थित मैक्स प्लैंक इंस्टीट्यूट फॉर मॉलिक्यूलर जेनेटिक्स में इसको लेकर अध्ययन किया है, जिसमें स्पर्म यानी शुक्राणु को लेकर हैरान करने वाली कई बातें सामने आईं.

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, शोधकर्ताओं ने बताया कि प्रजनन प्रक्रिया के समय जब नर से वीर्य छूटते हैं, तब लाखों शुक्राणु बेहद तेजी में अंडा कोशिका की ओर बढ़ते हैं. सभी शुक्राणु यह चाहते हैं कि वह अंडा कोशिका से मिलकर एक नया जीव पैदा करें. मगर इसमें किसी एक को ही सफलता मिल पाती है. शोधकर्ताओं ने बताया कि शुक्राणुओं के अंडा कोशिका तक पहुंचने के लिए उनके पास मौजूद प्रोटीन RAC1 की मात्रा पर ही सब कुछ निर्भर करता है. RAC1 प्रोटीन की मात्रा उपयुक्त होने पर किसी एक शुक्राणु की ताकत और गति अच्छी होती है.

शोध में पता चला कि अगर शुक्राणुओं के अंडा कोशिका तक पहुंचने उनके पास RAC1 प्रोटीन नहीं है, तो इसकी वजह से नपुंसकता पैदा होती है. जब शुक्राणु अंडा कोशिका की ओर तैरना शुरू करते हैं तो उसके लिए किस्मत ही नहीं, उस समय हर शुक्राणु की प्रतियोगी क्षमता भी मायने रखती है. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, इसको लेकर चूहों पर यह अध्ययन किया गया. शोध के अनुसार, कुछ शुक्राणु बेहद स्वार्थी होते हैं या फिर सेल्फिश होते हैं. इसमें उनकी मदद एक खास तरह का DNA सेगमेंट करता है. ये सेगमेंट जेनेटिक इनहेरीटेंस यानी अनुवांशिक उत्तराधिकार के नियमों को तोड़ देता है. जिससे शुक्राणुओं की सफलता की दर तय होती है.

इस अध्ययन में यह भी पाया गया कि जेनेटिक फैक्टर, जिसे 'टी-हैप्लोटाइप' (t-haplotype) कहते हैं, वह किस तरह से फर्टिलाइजेशन की सफलता को तय करता है. जिस स्पर्म के पास 'टी-हैप्लोटाइप' (t-haplotype) जेनेटिक फैक्टर होता है, वह ज्यादा ताकतवर होता है. 'टी-हैप्लोटाइप' जेनेटिक फैक्टर वाले शुक्राणु अपने प्रतियोगियों से ज्यादा तेज और फर्टिलाइजेशन में ज्यादा आक्रामक होते हैं. ये अपने लक्ष्य तक एक दम से सीधे पहुंचते हैं. इनको किसी से किसी तरह का मतलब नहीं होता.

'टी-हैप्लोटाइप' जेनेटिक फैक्टर और RAC1 प्रोटीन वाले स्पर्म के अंदर से केमिकल सिग्नल निकलते हैं. यह अंडा कोशिका तक जाने के के लिए उन्हें सीधा और सुरक्षित रास्ता बताते हैं. मैक्स प्लैंक इंस्टीट्यूट फॉर मॉलिक्यूलर जेनेटिक्स के निदेशक बर्नहार्ड हर्मेन की मानें तो 'टी-हैप्लोटाइप' जेनेटिक फैक्टर वाले शुक्राणु उन प्रतियोगियों को निष्क्रिय करते हैं, जिनके पास ये जेनेटिक फैक्टर नहीं होते हैं. यानी वह उनको जहर देकर मार देते हैं.

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, इस पूरे शोध का नतीजा यह निकलता है कि जिस स्पर्म के पास 'टी-हैप्लोटाइप' फैक्टर और मजबूत RAC1 होता है, वह ज्यादा तेजी से प्रतियोगिता जीत जाते हैं. लेकिन सामान्य शुक्राणु ऐसा नहीं कर पाते हैं और तेजी से जा रहे स्पर्म की ओर से छोड़े गए जहर की वजह से बीच रास्ते में मारे जाते हैं. बर्नहार्ड कहते हैं कि हमारी स्टडी बताती है कि जब गर्भाधान का समय आता है, तब ये शुक्राणु बेहद क्रूर होते हैं. 'टी-हैप्लोटाइप' जेनेटिक फैक्टर वाले शुक्राणु जीतने के लिए मारकाट मचाते हैं. यानी कि ये स्पर्म प्रतियोगियों को जहर देकर मारते हुए चले जाते हैं.